आईआईवीआर द्वारा विकसित मिर्च की किस्में बढ़ाएंगी किसानों की आमदनी, मिलेगी बढ़िया पैदावार

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने मिर्च कई किस्में विकसित हैं, सबकी कुछ न कुछ खासियतें हैं, जिनकी खेती करके किसान अच्छा उत्पादन पा सकते हैं।
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देश एक बड़े हिस्से में मिर्च की खेती जाती है, भारत में न केवल मिर्च की अच्छी खपत होती है, साथ ही दूसरे देशों में मिर्च का निर्यात किया जाता है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने मिर्च की कुछ ऐसी किस्में विकसित की है, जिन्हें लगाकर किसान अच्छा उत्पादन पा सकते हैं।

भारत में लगभग 7.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मिर्च की खेती होती है। प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। भारत ने साल 2019-20 में यूएई, यूके, कतर, ओमान जैसे देशों में 25,976.32 लाख रुपए मूल्य की 44,415.73 मीट्रिक टन मिर्च का निर्यात किया था।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आयोजित 13-16 नवंबर चार दिवसीय कृषि विज्ञान कांग्रेस में खेती-किसानी के प्रति जागरूकता के लिए प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। जहां पर कई किस्मों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, यहां पर मिर्च की आठ किस्मों ने सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान खींचा।

काशी तेज (सीसीएच-4)

यह किस्म सूखी और हरी दोनों तरह के उत्पादन के सही होती है। यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली, तीखी और एन्थ्राक्रोज, फल सड़न रोग और थ्रिप्स जैसे रोगों के प्रतिरोधक होती है।

इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश में की जा सकती है और प्रति हेक्टेयर 14.2 टन उत्पादन मिलता है।

इसकी नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेयर 300-400 ग्राम बीज की जरूरत होती है। फल जल्दी परिपक्व होते हैं और पौधे लगाने के 35-40 दिन बाद पहली तोड़ाई की जा सकती है।

खेत की तैयारी के दौरान 20-30 टन/हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। मिर्च की खेती के लिए N:P:K @ 120:80:80 किलो/हेक्टेयर की सिफारिश की गई है।

काशी रत्न सीसीएच-12 (F1) हाइब्रिड

यह किस्म 22-22 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है और एन्थ्रेक्नोज और थ्रिप्स के प्रति सहनशील होती है। इसकी खेती हरी मिर्च के लिए की जाती है। जल्दी तैयार होने वाली किस्म को उत्तर प्रदेश में खेती के लिए विकसित किया गया है।

इस किस्म की रोपाई करते समय एनपीके @ 150:80:80 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। काशी रत्न किस्म के बीज की बुवाई जुलाई से अगस्त के महीने की जाती है और पौधों की रोपाई अगस्त-सितम्बर में करनी चाहिए।

काशी आभा (वीआर -339)

इस किस्म के फल छोटे आकार के अत्यधिक तीखे होते हैं। जैविक (एंथ्रेक्नोज, सीएलसीवी, थ्रिप्स और माइट्स) और अजैविक तनाव (कम और उच्च तापमान) के प्रति सहिष्णु होती है। इसमें उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 टन मिलता है।

यह किस्म उत्तर प्रदेश में खेती के लिए विकसित की गई है।

काशी आभा किस्म की नर्सरी में बुवाई जुलाई से अगस्त महीने में करनी चाहिए और बीज बोने के 30 दिन बाद पौधों की रोपाई करनी चाहिए। पौधों की रोपाई पौधे से पौधे से 45 सेमी और पंक्ति से पंक्ति 60 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए।

एक हेक्टेयर मिर्च की रोपाई के लिए 450 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। खेत की तैयारी के दौरान 20-30 टन/हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। एन: पी: के @ 120:80:80 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए।

काशी सिंदूरी

इस किस्म के पौधे फैले हुए होते हैं और यह एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रतिरोधी होती है। बुवाई के 95-100 दिन में फल पकने लगते हैं और इसके फल 10-12 सेमी लंबे और 1.1-1.3 सेमी मोटे होते हैं।

इसकी औसत उपज 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। यह किस्म कर्नाटक, तमिलानाडु और केरल राज्यों के लिए विकसित की गई है।

एक हेक्टेयर में मिर्च की रोपाई के लिए 450 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। खेत की तैयारी के दौरान 20-30 टन/हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। मिर्च की खेती के लिए N:P:K @ 120:80:80 किलो प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की गई है।

काशी गौरव

इस किस्म के पौधे झाड़ीदार, गहरे हरे पत्ते और रोपाई के 35-40 दिनों में 50% फूल, फल गहरे हरे और बुवाई के 95-100 दिनों के बाद पकने पर गहरे लाल हो जाते हैं। इसके फल 9-11 सेमी लंबे और 1.1- 1.2 सेमी मोटे होते हैं।

औसत लाल पके फल की उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। एन्थ्रेक्नोज, थ्रिप्स और माइट्स के प्रति सहनशील होती है।

यह किस्म सर्दियों में मौसम में पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों के लिए विकसित की गई है।

एक हेक्टेयर में रोपाई के लिए 450 ग्राम बीज की पर्याप्त होते हैं।

खेत की तैयारी के दौरान 20-30 टन प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। मिर्च की खेती के लिए N:P:K @ 120:80:80 kg/ha की सिफारिश की गई है।

काशी सुर्ख

इस किस्म के पौधे 1 से 1.2 मीटर लंबे और तने सीधे खड़े होते हैं। फलों का रंग हल्का हरा और आकार सीधा होता है, इनकी लंबाई 11-12 सेमी होती है।

काशी सुर्ख किस्म की खेती लाल और हरे फलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है। पहले तुड़ाई पौधों की रोपाई के 55 दिनों के बाद शुरू होती है।

हरे फल की उपज 240 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जबकि लाल फलों की उपज लगभग 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है।

काशी अनमोल

इस किस्म के पौधे बौने आकार में लगभग 60-70 सेमी लंबे होते हैं। पहली तुड़ाई रोपाई के 55 दिनों बाद शुरु हो जाती है। उत्पादन 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 120 दिनों में लगभग 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिल जाता है।

हाइब्रिड-काशी अर्ली

इस किस्म के पौधे 100 से 110 सेमी लंबे और तने का रंग हल्का हरा होता है। इनके फल 8-9 सेमी लंबे और 1 से 1.2 सेमी मोटे होते हैं। गहरे हरे रंग के फल पकने के बाद चमकीले लाल रंग के होते हैं। पौधों की रोपाई के 45 दिनों के बाद फल तुड़ाई कर सकते हैं।

इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में की जा सकती है। 

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