मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के सुदूर गाँव अगरा में एक स्कूल सहरिया जनजाति के बच्चों के सपनों को पंख दे रहा है।
आधारशिला हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों में से 1,500 से अधिक सहरिया परिवारों से हैं, जिन्होंने लगभग 25-30 साल पहले कुनो राष्ट्रीय उद्यान बनाने के लिए अपने जँगल के घरों को छोड़ दिया था, जो श्योपुर और मुरैना जिलों में फैला हुआ है।
संरक्षित क्षेत्र का लक्ष्य गुजरात में गिर के बाहर एशियाई शेरों की दूसरी स्वतंत्र आबादी स्थापित करना है, ताकि इनके विलुप्त होने की संभावना कम हो सके। सहरिया समुदाय के लोग जो मूल रूप से जँगल में ही रहते आ रहे थे, सरकार की पहल का साथ देने के लिए बाहर आ गए।
लेकिन विस्थापन अक्सर आदिवासी समूहों के लिए नई चुनौतियाँ पैदा करता है, जो पहले से ही गरीबी, अशिक्षा, कम उम्र में बाल विवाह और कुपोषण का सामना करते हैं। इन सामाजिक कुरीतियों के अलावा, मध्य भारत की सहरिया जनजाति को भारत में टीबी की सबसे अधिक घटनाओं के लिए भी जाना जाता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान के कारण विस्थापित सहरिया परिवारों के बच्चों को शिक्षा और बेहतर जीवन मिले, आधारशिला हायर सेकेंडरी स्कूल इनके लिए उम्मीद की एक किरण बनकर आया है।
संजना 9वीं कक्षा में पढ़ती हैं। उनके पिता एक एम्बुलेंस ड्राइवर हैं। “मैंने अपने पिता को संघर्ष करते देखा है और मैं नहीं चाहती कि हम उन सब से गुजरें जिनसे वह गुजरे हैं, इसलिए मैं कड़ी मेहनत से पढ़ाई ककरुँगी ताकि मैं एक पुलिस अधिकारी बन सकूँ। ” संजना, जिनका दूसरा प्यार हिंदी में कविता लिखना है ने गाँव कनेक्शन को बताया।
राज्य की राजधानी भोपाल से लगभग 230 किलोमीटर दूर स्थित इस स्कूल की स्थापना 2005 में आधारशिला शिक्षा समिति द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य वंचित बच्चों को जीवन के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने के लिए प्रशिक्षित करना और उन्हें सीखने के अवसर प्रदान करना है।
स्कूल कक्षा एक से 12 तक है और इसमें 523 छात्र मुख्य रूप से सहरिया आदिवासी समुदाय से हैं। छात्रों को स्कूल से मुफ्त यूनिफार्म, किताबें, मध्याह्न भोजन और स्टेशनरी मिलती है। एक स्कूल बस भी है जो उन्हें उनके गाँवों से लाती है और वापस छोड़ती है।
आधारशिला शिक्षा समिति की संस्थापक अस्मिता काबरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कूनो से आए आदिवासी परिवार अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए बहुत उत्सुक थे, इसलिए हमने उन्हें एक मंच देने का फैसला किया।” वह एक अर्थशास्त्री और दिल्ली में डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ह्यूमन इकोलॉजी में प्रोफेसर हैं।
“आधारशिला स्कूल उन गैर-विस्थापित गाँवों के बच्चों को भी शिक्षा प्रदान करता है; इन गाँवों – अगरा, चेंतीखेड़ा, लार्डे – में भी मुख्य रूप से आदिवासी, दलित और ओबीसी परिवार रहते हैं।” काबरा ने कहा। उन्होंने गर्व के साथ कहा, “हम खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।”
स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी पीवीटीजी से हैं, जो उन्हें छात्रों से जुड़ने में मदद करता है।
केदार आदिवासी आधारशिला स्कूल के पूर्व छात्र हैं, जो अब वहाँ शिक्षक हैं। वह कक्षा छह से दसवीं तक के विद्यार्थियों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाते हैं।
केदार ने एनआईओएस (द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग) से बी.एड पूरा किया और बी.ए. किया है। वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ स्कूल से लगभग 10 किलोमीटर दूर सारण अहरवानी गाँव में रहते हैं। विस्थापित सहरिया जनजाति से आने के कारण, वह विशेष रूप से समुदाय के लिए अपना योगदान देने के इच्छुक थे।
“मुझे लगता है कि समुदाय और उसके लोगों की सेवा करना हमारे अस्तित्व का सबसे ज़रूरी हिस्सा है; जब मैंने आधारशिला से अपनी पढ़ाई पूरी की तो मैं यह समझने और निर्णय लेने के लिए बहुत छोटा था कि मेरा जीवन कैसा होना चाहिए, लेकिन अंदर से मुझे पता था कि मैं सहरिया बच्चों को पढ़ाऊंगा ताकि वे अपने भविष्य पर काम कर सकें और गरीबी में जीवन न जी सकें। ” 30 वर्षीय केदार ने कहा।
“स्कूल में 23 शिक्षक हैं, जिनमें से अधिकांश सहरिया जनजाति से हैं; हमारा ध्यान बच्चों को इस तरह से पढ़ाना है जो उनके कौशल का निर्माण करे, उनकी रोज़गार क्षमता को बढ़ाए। ” आधारशिला स्कूल के सह-संस्थापक और सचिव सैयद मिराजुद्दीन ने गाँव कनेक्शन को बताया। वह 10 साल से अधिक समय से आदिवासी बच्चों के साथ काम कर रहे हैं।
45 वर्षीय सह-संस्थापक बिहार के पटना से हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के अगरा गाँव में बस गए हैं और ज़मीनी स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का फैसला किया।
“आधारशिला में हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समुदाय के बच्चे खुद को बनाए रखने के लिए खेत में मज़दूरी या छोटे-मोटे काम करने के लिए वापस न जाएँ; हम चाहते हैं कि वे ठीक से पढ़ाई करें और अच्छी नौकरियाँ ढूंढ़ें। ” मिराजुद्दीन ने आगे कहा।
स्कूल सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) पर चलता है और इसे धर्मपाल सत्यपाल ग्रुप द्वारा आर्थिक मदद भी मिलती है। कुछ व्यक्तिगत दाता भी हैं।