कश्मीर घाटी में यहाँ स्कूली बच्चों के लिए लगती हैं आपदाओं से निपटने की अनोखी क्लास

कश्मीर घाटी के सरकारी स्कूलों के बच्चों को अब पता है आग लगने या भूकंप आने पर क्या और कैसे करना चाहिए। एक गैर-लाभकारी सँस्था छात्रों को स्कूल सुरक्षा, आपदा प्रबँधन, मानसिक स्वास्थ्य और लिंग आधारित हिंसा के प्रति शिक्षित और जागरूक बनाने का काम कर रही है।
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सैयद अरीज़ सफवी खुद से कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखती हैं, उन्हें सुरों में ढालती हैं और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को सुनाती हैं। आज वह वही काम कर रही हैं जो कश्मीर घाटी में सैकड़ों साल पहले कई गीतकारों ने किया था।

फर्क बस इतना है कि जहाँ पुराने संगीतकार लाडी शाह नामक कहानी कहने की इस पारंपरिक संगीत शैली का इस्तेमाल सामाजिक और राजनीतिक मामलों पर तँज कसने के लिए किया करते थे। उनके गीत हास्य, आलोचना और व्यँग्य से भरे होते थे। वहीं 28 साल की सफवी गीतों के जरिए बच्चों के बीच मानसिक स्वास्थ्य, स्कूल सुरक्षा और आपदा प्रबँधन के बारे में जागरूकता बढ़ा रही हैं।

जम्मू और कश्मीर में लगभग 24,000 सरकारी स्कूल उस एक कार्यक्रम का हिस्सा बन गए हैं जहाँ छात्रों को स्कूल सुरक्षा, आपदा जोखिम प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य और लिंग आधारित हिंसा के बारे में पढ़ाया और जागरूक किया जाता है। और सफवी ने अपनी बात रखने के लिए बेहद प्रभावी लाडी शाह शैली का इस्तेमाल करने का फैसला किया।

एक गैर-लाभकारी संस्था ईएलएफए इंटरनेशनल (एजुकेशन एंड लाइवलीहुड फॉर ऑल) की शुरुआत 2017 में राज्य में 100 प्रतिशत साक्षरता दर के लक्ष्य के साथ हुई थी। इस सँस्था ने स्कूलों में इन संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए सफवी से सँपर्क किया।

ईएलएफए इँटरनेशनल के सँस्थापक मेहरान खान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ईएलएफए ने 24,000 से अधिक सरकारी स्कूलों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए और साल 2020 में यह छात्रों को सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम लेकर आया।”

उसी के एक हिस्से के तौर पर सफवी को इसमें शामिल किया गया और तब सफवी ने अपने इस नए सफर में लाडी शाह को अपना हथियार बनाने का फैसला किया।

सफवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे हमेशा से कला में रुचि रही है, और जब मैंने लाडी शाह के बारे में जाना तो मुझे लगा कि स्कूल की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य जैसे समसामयिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता है।” हर बार वह मानसिक स्वास्थ्य पर लगभग पाँच से दस पंक्तियां लिखती हैं और उन्हें बच्चों को सुनाती हैं।

सफवी ने श्रीनगर महिला कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से क्लीनिकल साइकलॉजी में मास्टर किया है।

श्रीनगर से लगभग 253 किलोमीटर दूर जम्मू के चन्नी हिम्मत में एक अन्य स्कूल शिक्षिका भी अपने छात्रों को सुरक्षा के इन्हीं मुद्दों पर शिक्षित कर रही हैं। लेकिन उनका तरीका सफवी से थोड़ा अलग और इनोवेटिव है।

45 साल की कमलदीप कौर 2012 से जम्मू के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में विज्ञान की शिक्षिका हैं। वह कक्षा 9 और 10 के छात्रों को पढ़ाती हैं। अप्रैल 2023 से वह अपने छात्रों को आपदा प्रबँधन, लिंग आधारित हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देती आ रही हैं।

समस्या सुलझाने के अनोखे तरीके

कमलदीप ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम जो कार्यशालाएँ आयोजित कर रहे हैं, वे छात्रों की समस्या सुलझाने की क्षमताओं को निखार रही हैं; पैनिक होने की बजाय, उन्हें यह सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि किसी समस्या से कैसे निपटा जाए।”

आपदाओं से निपटने के अनोखे तरीके से उन्होंने एक दिन अपने छात्रों को भी हैरान कर दिया था। टीचर ने खुश होते हुए बताया “मैंने खेल के मैदान के एक कोने में कुछ सूखी पत्तियों और बेकार कागजों में आग लगा दी, इसके बाद में अपनी क्लास की तरफ भागी और बच्चों से कहा कि वे खुद को बचाएँ क्योंकि स्कूल में आग लग गई है, बच्चे पैनिक नहीं हुए और बड़े ही व्यवस्थित तरीके से बाहर गए; यह देखकर मुझे काफी खुशी हुई।”

नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी सँस्था ‘सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी’ (SEEDS) ने हाल ही में अपने ‘नवाचार के माध्यम से जलवायु लचीलापन’ अभियान को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले 11 सँगठनों को अपने साथ जोड़ा है। ‘फ्लिप द नोशन’ नामक SEEDS ने नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में अपना काम प्रदर्शित किया। ईएलएफए इँटरनेशनल इस परियोजना के तहत चुने गए 11 इनोवेटर्स में से एक है।

जम्मू-कश्मीर में अपने स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम के बारे में बात करते हुए SEEDS की सह-सँस्थापक डॉ. मनु गुप्ता ने कहा, “जम्मू और कश्मीर में आग की घटनाओं के बढ़ने के पीछे कई कारण है; इनमें तेजी से से बढ़ती आबादी, अनियोजित शहरी विकास और भीड़भाड़ वाले पहुँच मार्ग शामिल हैं।”

ज्वलनशील पदार्थों के इस्तेमाल में लापरवाही और पुरानी वायरिंग भी समस्या को बढ़ा रही है। इसके अलावा, आग बुझाने वाले कर्मचारियों, वाहनों और अग्निशमन केंद्रों की कमी है, जिससे आग पर प्रभावी ढंग से काबू पाना मुश्किल हो जाता है।

ईएलएफए इँटरनेशनल ने स्कूल शिक्षा निदेशालय, कश्मीर के सहयोग से स्कूल शिक्षा निदेशालय में अपने ‘सुरक्षित और समावेशी स्कूल प्रोजेक्ट’ के हिस्से के रूप में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम का पहला लक्ष्य शिक्षकों के बीच स्कूल सुरक्षा और समावेशन के बारे में जागरूकता पैदा करना था, ताकि वे इसे अपने स्कूलों में प्रभावी ढँग से लागू कर सकें और अन्य शिक्षकों और छात्रों को इसकी ट्रेनिंग दे सकें।

गुप्ता ने कहा, यह पहली बार था कि जम्मू-कश्मीर के 100 स्कूलों को स्कूल सुरक्षा किट दिए गए। इससे शिक्षक और छात्र दोनों खुश थे। शिक्षा विभाग ने भी कार्यक्रम की सराहना की थी।

ट्रेनिंग सेशन के लिए तकनीकों का इस्तेमाल

उन्होंने आगे कहा, ” ट्रेनिंग सेशन में सभी लोगों को शामिल करने के लिए तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था; उदाहरण के तौर पर प्रशिक्षण सत्र विकलाँग और सामान्य दोनों तरह के बच्चों के साथ आयोजित किए गए थे, शिक्षकों और सँस्थानों के प्रमुखों को बताया गया कि किस तरह से स्कूल की इमारतों को विकलाँगों के अनुकूल बनाया जा सकता है ताकि ऐसे बच्चों की कुछ समस्याओं को कम किया जा सके।”

मेहरान खान ने बताया कि ईएलएफए का स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम लगभग 20 जिलों में चल रहा है और शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। उन्होंने कहा, “जब वे लिंग आधारित हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करते हैं तो इससे उन्हें इन मु्द्दों को समझने में मदद मिलती है; छात्रों ने भी रुचि दिखाई है और वे हमारी कार्यशालाओं में भाग ले रहे हैं।”

उनके अनुसार, उनकी ईएलएफए टीम में 42 लोग हैं, जिनमें से सभी को बच्चों के साथ काम करने की ट्रेनिंग दी गई है।

बांदीपोरा जिले के प्राँग गाँव में सरकारी मिडिल स्कूल के अंग्रेजी शिक्षक मुनीर अहमद अब एक मास्टर ट्रेनर हैं (उन्हें ईएलएफए ने ट्रेनिंग दी है)। 40 वर्षीय शिक्षक अन्य शिक्षकों को सड़क दुर्घटनाओं, स्कूल सुरक्षा, आग दुर्घटनाओं और बचाव कार्यों से निपटने के लिए स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम सँचालित करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। ऐसे 300 से अधिक स्कूल हैं जहाँ उन्होंने काम किया है और अन्य शिक्षकों को इसके लिए ट्रेनिंग दी है।

अहमद ने कहा, “हम अपनी कार्यशालाओं के बाद मॉक ड्रिल और ट्रेनिंग सेशन लेते हैं ताकि हमारे छात्र सिर्फ सुने ही नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप से इसका अनुभव भी कर सकें।”

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