खेती सिर्फ अनाज उगाने का काम नहीं है, बल्कि यह धरती की देखभाल और आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ भोजन देने की जिम्मेदारी भी है। आज रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग ने मिट्टी की उर्वरता, जलवायु और इंसानी सेहत पर नकारात्मक असर डाला है।
ऐसे में एक ऐसा समाधान सामने आता है जो न केवल फसलों को रोगमुक्त बनाता है बल्कि मिट्टी को भी पुनर्जीवित करता है — और वह है जीवामृत।
जीवामृत एक पारंपरिक भारतीय जैविक खाद और कीटनाशक है, जो पूर्णतः देसी और प्राकृतिक चीज़ों से बनाया जाता है। यह न केवल फसलों की बढ़वार में मदद करता है बल्कि मिट्टी के अंदर सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को बढ़ावा देकर मिट्टी की गुणवत्ता को भी सुधारता है। इसका उपयोग खास तौर पर सब्ज़ियों, फलों और फूलों की खेती में काफी फायदेमंद सिद्ध हुआ है।
क्या है जीवामृत?
जीवामृत एक ऐसा जैविक मिश्रण है जो देसी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन और थोड़ी उपजाऊ मिट्टी से तैयार किया जाता है। यह सूक्ष्मजीवों का भंडार होता है जो मिट्टी को जीवंत बनाते हैं। फसल को पोषण देने के साथ-साथ यह उसे बीमारियों और कीटों से लड़ने की शक्ति भी देता है।
उद्यानिक फसलों में कैसे करता है मदद?
उद्यानिकी में आने वाली फसलें जैसे टमाटर, मिर्च, भिंडी, खीरा, कद्दू आदि, अधिक देखभाल मांगती हैं और अक्सर पर्णदाग, उकठा, झुलसा, खैरा, और जड़ सड़न जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं। जीवामृत का नियमित छिड़काव इन रोगों के प्रकोप को कम करता है।

इसके अलावा यह एफिड्स और थ्रिप्स जैसे कीटों की संख्या को भी घटाता है क्योंकि पौधे स्वस्थ और कीटों के प्रति कम आकर्षक हो जाते हैं।
कैसे बनाएं जीवामृत?
तरल जीवामृत बनाने की विधि:
- 200 लीटर पानी में मिलाएं:
- 10 किलो देसी गाय का ताज़ा गोबर
- 10 लीटर गोमूत्र
- 2 किलो गुड़
- 2 किलो मूंग/चना/उड़द का आटा
- 1-2 मुट्ठी उपजाऊ मिट्टी
- 10 किलो देसी गाय का ताज़ा गोबर
इसे छायादार जगह पर रखें और रोज़ाना 2-3 मिनट हिलाएं। 3-5 दिनों में इसका किण्वन पूरा हो जाएगा। हल्की खट्टी गंध और बुलबुले इसके तैयार होने के संकेत हैं।
घन रूप में:
इन्हीं सामग्रियों को मिलाकर गोलियां बना लें, सुखाकर संग्रह करें और जरूरत के अनुसार खेतों में बिखेरें।
जीवामृत के लाभ
- मिट्टी में सुधार:
यह मिट्टी में लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ाकर उसकी संरचना, जलधारण क्षमता और जैविक गतिविधियों को बेहतर बनाता है। - फसलों को पोषण:
यह पौधों के लिए एक शक्तिवर्धक टॉनिक की तरह काम करता है, जिससे जड़ों का विकास, पत्तों की हरियाली, और फल-फूल की गुणवत्ता में सुधार होता है। - रोग प्रतिरोधक क्षमता:
पौधे खुद ही कई बीमारियों और कीटों से लड़ने में सक्षम हो जाते हैं। - कम लागत, अधिक मुनाफा:
जीवामृत बनाने की सामग्री स्थानीय रूप से मिलती है। इससे रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर खर्च कम होता है, और उत्पादकता बढ़ने से आय भी बढ़ती है। - स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा:
जैविक फसलें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होती हैं और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में मदद करती हैं।
इस्तेमाल करते समय रखें इन बातों का ध्यान
- सिर्फ देसी गाय के गोबर और गोमूत्र का प्रयोग करें।
- सामग्री रसायनमुक्त होनी चाहिए।
- क्लोरीनयुक्त पानी का प्रयोग न करें।
- रोजाना मिश्रण को हिलाना ज़रूरी है।
- पांच से सात दिनों में उपयोग कर लेना चाहिए।
- छिड़काव सुबह या शाम करें।
- प्रयोग के समय मिट्टी नम होनी चाहिए।
- फसल की अवस्था के अनुसार हर 15-25 दिन में छिड़काव करें।
जीवामृत भारतीय खेती को फिर से प्राकृतिक रास्ते पर ले जाने की एक प्रभावशाली विधि है। यह न केवल फसल को बेहतर बनाता है, बल्कि मिट्टी, किसान और उपभोक्ता – तीनों के लिए फायदेमंद है। यदि किसान जीवामृत का सही तरीके से नियमित रूप से उपयोग करें, तो रासायनिक खेती पर निर्भरता घटाई जा सकती है और टिकाऊ कृषि की ओर एक मजबूत कदम बढ़ाया जा सकता है।