पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है, लेकिन कई बार सही से ध्यान देने पर किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। इसलिए शुरू से ही कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, बाजार में मशरूम का अच्छा दाम मिल जाता है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ के गोसाईगंज ब्लॉक में रहने वाले प्रगतिशील किसान मुकेश कुमार पिछले कई वर्षों से मशरूम की खेती कर रहे हैं। मुकेश कुमार मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
मशरूम की खेती में सबसे जरूरी है कम्पोस्ट
मशरूम की खेती की शुरूआत सितंबर महीने से की जाती है, सबसे पहला काम कम्पोस्ट बनाने का होता है।
कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया 28 दिनों की होती है, 28 दिन में हमे आठ बार भूसे को पलटना होता है और हर बार हम कुछ न कुछ मिलाते हैं। जैसे कि पहले हम भूसे को भिगाते हैं, सबसे पहले हमारा काम जिस जगह पर हमें कम्पोस्ट बनाना है। उस जगह को हम साफ सुथरा करके उसपर फॉर्मेलिन का 2% प्रति लीटर पानी में मिलाकर 12 घंटे पहले उस जगह को स्टर्लाइज्ड कर देते हैं। फिर उसे किसी पॉलीथिन से ढक देते हैं, फिर अगले दिन उसमें भूसा डालते हैं।
इसके बाद 24-48 घंटे तक रुक-रुक कर उसमें पानी का स्प्रे करना होता है और इसकी गुड़ाई करते हैं। ताकि भूसा हमारा अच्छे से भीग जाए अगर हम पानी डालते हैं और अच्छे से मिलाते नहीं तो भूसा अच्छे से नहीं भीगता है। इसे भूसा अच्छे से डीकम्पोज्ड नहीं होगा, इसलिए इसे लगातार भिगोते रहना है।
फिर उसमें तीसरे दिन एक किलो प्रति कुंतल की दर से यूरिया मिलाते हैं और मिलाकर ढेर बनाते हैं और वी आकार में ढेर बनाते हैं जो एक मीटर ऊंचा और डेढ़ मीटर चौड़ा रहता है, लंबाई का कोई माप नहीं होता है अपने हिसाब से उसे ले सकते हैं।
अब उस ढेर को पांच दिनों के लिए पड़ा रखते हैं, छठें दिन हम ढेर तोड़ते हैं, ढेर तोड़ते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि हमें ऊपर की चार से छह इंच की लेयर उठाकर नीचे डालनी है। फिर उसको पलटना है। छठे दिन जब हम ढेर तोड़ते हैं तो उसमें एक किलो डीएपी, एक किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट, तीन किलो कैल्शियम कॉर्बानेट मिलाकर फिर से उसका ढेर बना देते हैं। फिर उसी तरह से इसे दबाकर ऐसे ही छोड़ देते हैं। ये ढेर फिर तीन दिन तक पड़ा रहेगा।
पहली पलटाई छठे दिन करते हैं, इस तरह नौवें दिन फिर हम ढेर तोड़ते हैं फिर उसे तोड़कर अच्छे मिलाकर उसी तरह से छोड़ देते हैं। इसके बाद 13वें दिन हमारी तीसरी पलटाई होती है, उसमें हम तीन किलो प्रति क्विंटल के हिसाब से गेहूं का चोकर मिलाते हैं।
चौथी पलटाई पर हम 10 किलो जिप्सम और एक किलो नीम की खली प्रति क्विंटल के हिसाब से मिलाते हैं और ढेर को हम उसी तरह पलटकर फिर उसी तरह से मिला देते हैं। हम देखते हैं कि अगर उसमें नमी कम है तो पलटते समय थोड़ा सा पानी का छिड़काव कर देते हैं।
पांचवीं पलटाई में हम कुछ नहीं मिलाते है, बस ऐसे ही पलटकर बस दोबारा ढेर बना देते हैं।
अब छठवीं पलटाई में 100 ग्राम फ्यूराडॉन प्रति क्विंटल के हिसाब से मिलाते हैं और सातवीं पलटाई हम ऐसे ही करते हैं। आठवीं पलटाई हमारी आखिरी पलटाई होती है, उस समय हम कम्पोस्ट उठाकर देखते हैं कि उससे कहीं अमोनिया की गंध तो नहीं आ रही है। अगर अमोनिया की गंध नहीं आ रही है तो हमारा कम्पोस्ट तैयार है। साथ ही कम्पोस्ट को हाथ में लेकर दबाने पर अगर उंगलियों के बीच से पानी ज्यादा मात्रा में निकलता है तो समझिए नमी ज्यादा है। तब हमें पटलाई एक दो-बार और करनी पड़ेगी।
अगर हम चाहें तो इसमें मुर्गी का बीट भी मिला सकते हैं। इसे हमें शुरूआत में ही मिलाना होता है पहली पलटाई के समय मिलाना होता है। अगर किसान भाई नहीं मिलाना चाहते हैं तो नहीं भी मिला सकते हैं।
ऐसे करें बुवाई
कम्पोस्ट तैयार हो जाने के बाद हम उसमें बिजाई करते हैं। बिजाई करने के बाद उसपर अखबार डालकर अगले 10-15 दिनों तक पानी स्प्रे करते हैं। पानी उतना ही डालना चाहिए, जिससे की पेपर सूखे न और पानी का स्प्रे करते समय पेपर फटने न पाए। 10-15 दिनों में पूरे बेड पर सफेद-सफेद फंफूदी दिखने लग जाती है। इसके बाद पेपर हटाकर हम उस पर डेढ़ से दो साल पुरानी अच्छी तरह से तैयार गोबर की खाद डालते हैं। गोबर डालने से पहले हम उसे कॉर्बंडजिम, डाइथेन M45, फ्यूराडॉन और फार्मलिन का चार प्रतिशत घोल मिलाकर हम उसे उपचारित करते हैं।
फिर उसके छोटे-छोटे ढेर बनाकर हम 10-12 घंटों के लिए रख देते हैं। अगले दिन उस ढेर की गुड़ाई करते हैं इसके बाद देखते हैं कि इससे कहीं फार्मलिन की गंध तो नहीं आ रही है, अगर फार्मलिन की गंध आ रही है तो एक-दो गुड़ाई और कर देनी चाहिए, जिससे की गंध उड़ जाए।
अब समझिए की गोबर की खाद तैयार इसकी डेढ़-दो इंच की परत पूरे बेड पर फैला देते हैं। बेड पर फैलाने पर हम पानी का स्प्रे उतनी करते हैं कि तो गोबर की खाद की लेयर है वो बस आधी भीगे, ये हम 10-12 दिन करते हैं, इसके बाद हम देखते हैं कि इसमें से छोटे-छोटे मशरूम आने लगते हैं, जोकि अगले तीन-चार दिनों में तोड़ने लायक हो जाते हैं।
स्पॉन लेते समय इन बातों का रखें ध्यान
स्पॉन लेते समय कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना, स्पॉन पूरी तरह से सफेद होना चाहिए। जरा सा भी काला-पीला धब्बा, गेहूं या जौ के दाने नहीं होने चाहिए।
मशरूम की तुड़ाई करते समय इन बातों का रखें ध्यान
मशरूम तोड़ते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि मशरूम को आसानी से तोड़ना चाहिए। कई बार किसान भाई एक साथ मशरूम तोड़ते जाते हैं बाद उसमें नीचे का हिस्सा काटते हैं, ऐसे में मशरूम गंदा हो जाता है। इसलिए मशरूम तोड़ते समय ही किसी तेज चाकू से नीचे का हिस्सा हटाते जाएं।
मशरूम को तोड़ने के बाद हम पौटेशियम मेटा बाई सल्फेट 1 पीपीएम प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बना लेते हैं। हम दो पानी का घोल बनाते हैं, पहले एक घोल में मशरूम डालेंगे फिर दोबारा दूसरे घोल में मशरूम डालकर अच्छी तरह से साफ कर लेंगे।
धुलाई करने के बाद इसे 15-20 मिनट तक सूखने के लिए रख देते हैं, इसके बाद इसे पैक करके गत्ते में रखना चाहिए कभी भी इसे बोरे में नहीं रखना चाहिए। मशरूम तोड़ने के बाद कभी भी इसे लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए, इसे जल्द से जल्द बाजार पहुंचा देना चाहिए।