गाँव कनेक्शन: ज़मीन की खरीद-बिक्री के दौरान किन कानूनी दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए?
करुणेश तिवारी: ज़मीन दो प्रकार की होती हैं – कृषक और गैर-कृषक। उसकी खरीद-बिक्री के लिए व्यक्ति को अधिकार अभिलेख जरूर देखना चाहिए। अधिकार अभिलेखों को हम खतौनी के नाम से भी जानते हैं। खतौनी में सबसे पहले यह जांच करनी चाहिए कि जो व्यक्ति ज़मीन बेच रहा है, क्या वह बेचने का अधिकार रखता है या नहीं। यदि खतौनी में उसका नाम है, तो वह अपनी ज़मीन बेच सकता है।
म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में उसका नाम टैक्स की रसीद पर अंकित हैं, प्राइमाफेसी में तो वह ज़मीन बेचने का हकदार है।
वसीहत से प्राप्त की हो, वरासत से संपत्ति प्राप्त की हो, या ज़मीन खरीदी हो।
अगर पिता से वरासत में मिली है, तो अधिकार अभिलेख देख लें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह ज़मीन बेचने का अधिकार रखता है। उपनिबंधक कार्यालय में जाकर, IGRS UP रजिस्ट्रेशनल मैनुअल, रजिस्ट्रेशन एक्ट, और भार मुक्त प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा सकता है। अगर पिछले 12 साल में खरीद-बिक्री की गई है, तो यह जानना जरूरी है कि ज़मीन कहीं विकृत है या बाधित नहीं है।
यह ऑनलाइन जाकर देखा जा सकता है या फिजिकली भी जांचा जा सकता है।
गाँव कनेक्शन: जैसे आपने कहा, ये बातें शहरों में भी लागू होती हैं, गाँव में कैसे होता है?
करुणेश तिवारी: गाँव और शहरों में कोई अंतर नहीं है। हालांकि, गाँव की आबादी से संबंधित ज़मीन की प्रकृति अलग हो सकती है।
गाँव कनेक्शन: ज़मीन की रजिस्ट्री प्रक्रिया क्या है, इसमें किन-किन कदमों का पालन करना जरूरी है?
करुणेश तिवारी: उत्तर प्रदेश स्टाम्प, संपत्ति मूल्यांकन नियमावली, 1997 के अनुसार, ज़मीन खरीदने से पहले उसके मूल्यांकन को जान लेना चाहिए।
अगर मूल्यांकन कम है और ज़मीन खरीदने वाला अधिक मूल्य की ज़मीन खरीद रहा है, तो उसे अधिक मूल्य पर स्टाम्प खरीदनी पड़ेगी। स्टाम्प की दर उत्तर प्रदेश में 5% है।
महिलाओं को 10 लाख रुपए तक 1% छूट मिलती है, जो उत्तर प्रदेश सरकार ने दी है।
अगर ज़मीन म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की सीमा में या डेवलपमेंटल एरिया में स्थित है, तो उसे 2% डेवलपमेंट चार्ज भी देना पड़ता है, जिससे कुल मिलाकर 7% देना पड़ेगा।
दस्तावेज़ की ड्राफ्टिंग की जाती है। उपनिबंधक उन दस्तावेज़ों की जांच करने के बाद, उन्हें पंजीकृत कर देता है। विक्रेता ने विक्रय की प्रक्रिया पूरी की है या नहीं, इसे लेकर उपनिबंधक बयान लेता है।
गाँव कनेक्शन: ज़मीन पर कोई विवाद हो, तो उसे सुलझाने के लिए कानूनी प्रक्रिया क्या है?
करुणेश तिवारी: अगर ज़मीन कृषक है, तो उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 में ज़मीन के विवाद को उसी हिसाब से सुलझाना पड़ेगा।
अगर कमर्शियल गतिविधियाँ हो रही हैं, तो उसे कमर्शियल ज़मीन कहा जाएगा।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के गवर्नर एक्ट में CPC प्रावधान कुछ धाराओं में लागू होते हैं।
गाँव कनेक्शन: किसान अपनी कृषिक भूमि को गैर-कृषक कार्यों के लिए कैसे बदल सकता है?
करुणेश तिवारी: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 80 के तहत, व्यक्ति अपना आवेदन खतौनी लगाकर संबंधित उप जिला अधिकारी से कर सकता है। संबंधित उप जिला अधिकारी, तहसीलदार से जांच करने के बाद उसका प्रस्ताव कृष प्रयोजन से गैर-कृषिक प्रयोजन के लिए घोषित कर सकता है। इसके लिए 1% घोषणा शुल्क जमा करना पड़ता है और उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 107 की किसी भी प्रावधान से बाधित नहीं होना चाहिए। अगर ज़मीन कृषक से इतर प्रयोग की जा रही है, तो आवेदक को आवेदन देने की भी आवश्यकता नहीं है। उप जिला अधिकारी को सुओ मोटो कॉग्निज़ेंट (cognizance) लेने की शक्ति है।
गाँव कनेक्शन: कौन-कौन सी भूमि को गैर-कृषक किया जा सकता है और इसका प्रक्रिया क्या है?
करुणेश तिवारी: अपनी ज़मीन पर कृषक कार्य नहीं कर रहे हों, मछली पालन नहीं कर रहे हों, और न ही बागवानी कर रहे हों, तो ऐसी ज़मीन भी धारा 80 के तहत कृष से गैर-कृषक की जा सकती है।
हम अपनी ज़मीन को प्रस्तावित कर सकते हैं कि धारा 80(2) के तहत 5 साल का रिलैक्सेशन देते हुए ज़मीन की घोषणा कृष से गैर-कृषिक कर दी जाए।
(गैर-कृषक घोषणा के बाद, वह ज़मीन ज़मीन लगन से मुक्त हो जाती है और इस पर पर्सनल लॉ लागू हो जाता है।)
गाँव कनेक्शन: भाई और बहन के बीच झगड़ा हुआ, अब दोनों चाहते हैं कि बँटवारा हो, तो इसका प्रक्रिया क्या है?
करुणेश तिवारी: 9 सितंबर 2005 से लड़कियों को लड़कों के बराबरी में हिस्सेदारी दी गई है। लड़कियां हक से जायदाद में हिस्सा ले सकती हैं?