डेढ़ दो महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की सरकार बनने की आपाधापी के दरमियां 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस कब दबे पाँव आया और निकल लिया, यह आम जनता को तो पता भी नहीं चला। लेकिन सोशल मीडिया और दूसरे दिन के समाचार पत्रों से पता चला कि देश भर में विभिन्न संस्थाओं सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण का काम हुआ है।
हम स्वयं पिछले 30 वर्षों से पेड़ लगा रहे हैं पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहाँ विश्व पर्यावरण दिवस पाँच जून के दिन ही वृक्षारोपण किए जाएं। जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाई अगस्त होना चाहिए। अब चूंकि यह रिवाज बन गया है इसलिए शासकीय कार्यालयों में स्कूलों में अधिकारीगण, नेता गण,शिक्षक, बच्चे सभी हर 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं, वन विभाग इसमें सबसे आगे है। देश के ज़्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है कई स्थानों पर लू चल रही है। लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़े लिखे जानकार व्यक्ति भी तमाम डॉक्टरों के रहते भी मौत के मुँह में समा रहे हैं; ऐसी हालात में 5 जून को लगाए गए ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे यह कहना कठिन है।
यह स्थापित तथ्य है कि भारत में मॉनसून आम तौर पर 15 जून के बाद ही सक्रिय हो पाता है। पर पर्यावरण दिवस के नाम पर सरकारी वृक्षारोपण की खानापूर्ति 5 जून को ही होना ज़रूरी है।
इस काम में हमारे वन विभाग हर साल सबको पीछे छोड़ देते हैं। वन विभाग को इसमें सबसे आगे होना भी चाहिए। क्योंकि देश के हजारों साल पुराने और जैव विविधता से समृद्ध लगभग सभी जंगलों को तो इन्होंने काट कर, कटवा कर,बेंच बांचकर कर फूंक-ताप लिया हैं। इनकी सफाई पसंदगी का यह आलम है कि जंगलों में ठूंठ तक नहीं छोड़ा गया है । इधर कुछ दशकों से वृक्षारोपण नामक नए चारागाह को जंगलों की रक्षा के नाम पर बनी ये बाड़ें निर्द्वंद्व भाव से चट करते जा रही हैं। हर साल नवीन वृक्षारोपण, पुराने वनों के सुधार, पड़ती भूमि संरक्षण आदि तरह-तरह की योजनाएं बनाकर सरकार से जनता के पैसे लो, वृक्षारोपण की नौटंकी करो, फिर भगवान से दुआ करो कि सारे पौधे मर जाएं। अगले साल फिर योजना बनाओ फिर पैसे लो फिर वृक्षारोपण की नौटंकी करो। यही इस साल भी होना है।
अब तक सारे महानुभाव वृक्षारोपण की फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर लगा चुके हैं,बस किसी तरह समाचार में यह छप जाए कि अमुक महानुभाव ने पौधा रोपकर देश के पर्यावरण पर और देश पर भारी भरकम एहसान कर दिया है, अब आगे पौधा और उसकी किस्मत जाने।
हमारे देश में सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए उनमें से 50 प्रतिशत भी अगर जिंदा रह जाते तो भारत विश्व में सबसे हरा भरा देश होता। ऐसा लगता है कि हमारे नीति निर्माता नेता गण, अधिकारी गण इतने दूरदर्शी हैं कि वो जानबूझकर 5 जून को ही वृक्षारोपण कार्यक्रम संपन्न कर डालते हैं ताकि पौधा एक हफ्ता से ज़्यादा जिंदा ही ना रह पाए।
1972 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा स्थापित, डब्ल्यूईडी ने पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में बनाने का निश्चय लिया। 1973 से हम इसे लगातार मना रहे हैं और हर साल पर्यावरण की रक्षा के लिए तमाम लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं, जिस पर हर देश से पूरे वर्ष प्राथमिकता के आधार पर ठोस काम की अपेक्षा की जाती है। सऊदी अरब 2024 के पर्यावरण दिवस समारोह की मेजबानी कर रहा है। पर्यावरण की रक्षा के लिए इस साल भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश बहुउद्देशीय योजनाओं पर काम कर रहे हैं। हम इसमें क्या क्या कर रहे हैं यह सोचने का अलग विषय है।हमारे देश में पर्यावरण रक्षा के नाम पर केवल पेड़ लगाने की नौटंकी की जाती है।
पेड़ों के मामले में सबसे धनी देश कनाडा में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 10163 है, वहीं हमारे देश में प्रति व्यक्ति मात्र 28 पेड़ बचे हैं। विश्व में सबसे गरीब देशों में शुमार किए जाने वाला देश इथोपिया भी हरित संपदा के मामले में प्रति व्यक्ति 143 पेड़ों के साथ हमसे 5 गुना ज्यादा समृद्ध है।
पर्यावरण दिवस की खानापूर्ति करने के लिए हमने भी एक और पीपल का पेड़ अपने ” इथनो मेडिको हर्बल गार्डन” में लगाया है। पीपल ही क्यों? क्योंकि श्रीमद् भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां’ यानी कि पेड़ों में मैं पीपल हूँ ।
खैर हमने जो पीपल का पौधा रोपा है, वह तो हम हर हाल में जिंदा रख लेंगे पर क्या आप सभी महानुभाव जिन्होंने इस 5 जून को पौधों का रोपण किया है, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आपने इस बार जितने पौधे रोपे हैं उन्हें हर हाल में आप जिंदा रखेंगे?
अगर आपका जवाब ईमानदारी से हाँ में है तो मेरी ओर से आप सात तोपों की सलामी कुबूल करें। समाचार पत्रों में जब आप 5 जून पर्यावरण दिवस और माननीयों के फोटो देखें तो एक बार सोचिएगा ज़रूर कि फोटो में दिख रहा नन्हा मुन्ना पौधा कम से कम अगले पर्यावरण दिवस तक ज़िंदा रहेगा अथवा नहीं इसकी गारंटी कौन देगा? सोचिएगा ज़रूर।
( पर्यावरणविद डॉ राजाराम त्रिपाठी अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा के राष्ट्रीय संयोजक हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय हरित योद्धा अवार्ड से सम्मानित किया गया हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं। )