“दस लीटर दूध देने वाली भैंस चार लीटर दूध दे रही है, कैसे गुजारा होगा”

विश्व के नंबर एक दूध उत्पादक देश भारत में आने वाले समय में स्थिति शायद ऐसी न रहे। हर साल बढ़ते तापमान ने दूध उत्पादन पर भी असर डाला है। इस समय ऐसा हाल है कि लागत भी नहीं निकल पा रही है।
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आपकी भी सुबह की शुरुआत दूध वाली चाय से होती होगी, दिन में छाछ, दही या पनीर जैसे डेयरी उत्पादों का इस्तेमाल करते होंगे। लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि आने वाले समय में बढ़ती गर्मी की वजह से शायद दूध आप तक पहुँच ही न पाए? ऐसा हम नहीं पशुपालन से जुड़े किसान कह रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले मोहम्मद रहीस के पास 18 भैंसे और तीन गाय हैं, लेकिन आजकल कमाई तो दूर पशुओं के लिए चारा-पानी के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। दूध मंडी से दूध बेचकर घर के रास्ते में चूनी-चोकर की दुकान पर हिसाब करते हुए लखनऊ के रहीस गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “इस समय समझ लीजिए की बस आधा दूध बचा है, जो भैंस आठ लीटर दूध देती थी, वो पाँच लीटर तक आ गई है; जो गाय आठ लीटर दे रही थी वो भी चार लीटर तक आ गई है।”

वो आगे कहते हैं, “मँहगाई तो इतनी बढ़ गई है कि थोड़ा कम खिलाओ और थोड़ा कम खाओ करके मैनेज कर रहे हैं।”

20वीं पशुगणना के अनुसार देश में 14.51 करोड़ गाय और 10.98 करोड़ भैंसें हैं। साथ ही दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है। बढ़ती गर्मी की वजह पशु बीमार हो रहे हैं, चारा कम कम खा रहे हैं और दूध उत्पादन भी घट रहा है।

उत्तर प्रदेश के मेरठ के मनीष भारती अपने जिले के बड़े पशुपालकों में से एक हैं, गर्मी से उनके यहाँ दूध उत्पादन पर असर पड़ रहा है। मनीष भारती गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “आजकल जो आप प्रचंड गर्मी देख रहे हैं, पशुपालकों के लिए ये किसी बुरी खबर की तरह है; जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है, पशुओं में स्ट्रेस बढ़ रहा है, इससे दूध की गुणवत्ता घट रही है।”

देश भर में दो लाख से ज़्यादा गाँवों के लगभग दो करोड़ किसान डेयरी उद्योग से जुड़े हैं, जिनमें से कम से कम छह लाख दूध उत्पादक आजीविका के लिए सिर्फ़ इस उद्योग पर निर्भर हैं। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के अनुसार, उनमें से ज़्यादातर महिलाएँ हैं।

यूपी के सीतापुर की सुधा पांडेय की डेयरी में गाय और भैंस हैं। सुधा बताती हैं, “इस समय इतनी गर्मी पड़ रही है, छोटे किसान तो अपनी भैंसों को तालाब, नहर में लेकर चले जाते हैं, लेकिन हमारे यहाँ इतनी भैंस हैं, उन्हें हम बाहर कहाँ ले जा सकते हैं; हम गर्मी से बचाने के लिए यहीं पर इंतजाम कर रहे हैं।”

लैंसेट की एक स्टडी के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण भारत के शुष्क से लेकर अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में 2085 तक दूध उत्पादन में 25 प्रतिशत की कमी आ सकती है।

मनीष भारती आगे कहते हैं, “इसका असर दूध में फैट की मात्रा में पड़ रहा है, जैसे कि जितने भी डेयरी फेडरेशन हैं वो चाहे अमूल हो या पराग, वो फैट और एसएनएफ की मात्रा पर ही खरीदते हैं; इस गर्मी से पशु बीमार भी हो रहे हैं, ऐसी गर्मी बनी रही तो इसका गंभीर आर्थिक प्रभाव किसानों पर पड़ने वाला है।”

एक वयस्क गाय या भैंस एक दिन में 7-8 किलो भूसा खा लेती है। लेकिन गर्मी के चलते भूसा खाना कम कर दिया है। पशुओं पर गर्मी के असर पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार हीट स्ट्रेस का असर सबसे ज़्यादा दुधारू पशुओं पर होता है। इस तरह ये दूध उत्पादन और प्रजनन को प्रभावित करते हैं।

गर्मियों के दिनों में आप भैंस को तालाबों और पोखरों में नहाते देखते होंगे, लेकिन इस समय विदेशी नस्ल की गाय भी अपना ज़्यादातर समय पानी में ही बिता रही हैं।

पशुपालक नौशाद अली कहते हैं, “दूध दुहने के बाद भैंस को पानी में छोड़ देते हैं, बड़ी मुश्किल से उन्हें पानी से निकालना पड़ता है; भैंस के साथ ही इस समय मेरी गाय भी ज़्यादा समय पानी में ही बिता रही है।”

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान केंद्र द्वारा किए अन्य अध्ययन के अनुसार पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, गर्मी के तनाव के कारण दूध उत्पादन का नुकसान साल 2020-29 के दौरान 3,39,000 टन और अगले दशक यानी साल 2030-39 के दौरान 6,29,000 टन तक बढ़ने की उम्मीद है।

अगर ऐसा ही रहा तो पशुपालकों को अपना काम छोड़कर कुछ और करना होगा। नौशाद अली आगे कहते हैं, “जानवरों को बुखार भी आ जा रहा है, दूध सूखता ही जा रहा है।”

“हमें तो कोई दूसरा धंधा नहीं आता तो इसी में लगा हुआ हूँ; अगर ऐसी ही गर्मी बढ़ती रही तो हमें कुछ और करना होगा, नहीं तो बीवी बच्चों का पेट कैसे भरेंगे, “नौशाद ने आगे कहा।

भारत में दुनिया के सबसे अधिक गाय-भैंसों की आबादी है। गर्मी का स्ट्रेस अलग-अलग नस्लों पर अलग-अलग होता है। गर्मी का असर भैंस के साथ ही हॉलिस्टियन और फ्रीजिशियन जैसी गायों पर पड़ रहा है। पशुपालकों की माने तो देसी नस्लों पर गर्मी का असर नहीं हो रहा है।

हरियाणा के करनाल में साहीवाल, थारपारकर और लाल सिंधी जैसी गायों की डेयरी चलाने वाले नवदीप सिंह की डेयरी में दो साल पहले तक हॉलिस्टियन और फ्रीजिशियन जैसी विदेशी नस्ल की गायें थी, लेकिन हर साल बढ़ती गर्मी और बढ़ती लागत से उन्होंने सारी गायें बेच दीं। नवदीप सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मेरे पास 200 के करीब गायें थीं, लेकिन गर्मी के कारण बीमार रहने लगीं और दूध कम हो गया। इसलिए अब पूरी देसी गायें रख लीं हैं।”

वो आगे कहते हैं, “अभी जब मेरे आसपास के लोग गर्मी से परेशान हैं, मेरी गायों के दूध में कोई कमी नहीं हुई, वो अब आराम से चारा खा रहीं हैं।”

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