रामवाड़ी धवलपुरी, छत्रपति संभाजीनगर (महाराष्ट्र)। विजय गणपत कांसे के खेतों पर हजारों घोंघों ने हमला बोल दिया और देखते ही देखते उनकी 1.5 एकड़ जमीन पर उगी सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर जिले के रामवाड़ी धवलापुर गाँव का यह 35 वर्षीय किसान फिलहाल सदमे में है।
विजय ने अफसोस जताते हुए कहा, “मेरी पत्नी, दो बेटियाँ और एक बेटा है। तीनों बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। मुझे अपने बुजुर्ग माता-पिता की भी देखभाल करनी होती है। मुझे भारी नुकसान हुआ है।”
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने जून में सोयाबीन की बुवाई की और जुलाई तक घोंघे ने पौधों को नष्ट कर दिया। मैंने फसल पर 25,000 रुपये खर्च किए थे। अगर घोंघे ने मेरी फसल को नुकसान नहीं पहुंचाया होता, तो आज में 300 किलोग्राम सोयाबीन काट चुका होता और मार्केट में ये 50,000 रुपये में बिकता।” वह अपने भाग्य से काफी निराश हैं। घोंघों ने उनके खेत में कुछ भी नहीं छोड़ा, सब बर्बाद कर दिया।
ऐसा ही मामला उसी गाँव के 47 साल के किसान श्रीधर गंगाराम काटकर का है।
किसान ने भारी मन से कहा, “मैंने जून में सोयाबीन बोया था। अब तक मैं अपनी फसल पर 36,000 रुपये खर्च कर चुका हूँ। जुलाई में घोंघों ने पौधों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, इसलिए मैंने फिर से फसल बोई जिसमें 4,000 रुपये की लागत आई। लेकिन उसे भी घोंघों ने नहीं छोड़ा। यह तीसरी बार है जब मैंने सोयाबीन बोया है और इसमें मुझे 4,000 रुपये का अतिरिक्त खर्च आया है। लेकिन घोंघों ने फिर से फसल नष्ट कर दी है।”
लातूर, धाराशिव, जालना और छत्रपति संभाजीनगर जिलों में काटकर जैसे हज़ारों किसान सोयाबीन की बड़े पैमाने पर खेती करते हैं।
लातूर के जिला कृषि अधिकारी शिवसंब लाड़के ने गाँव कनेक्शन को बताया, “लातूर में 497,232 हेक्टेयर सोयाबीन में से 48,800 हेक्टेयर घोंघा संक्रमण के कारण बर्बाद हो चुकी है।” उदगीर तालुका सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। यहाँ 18,827 हेक्टेयर ज़मीन पर उगी सोयाबीन नष्ट हो चुकी है। अहमदपुर तालुका में 18,300 हेक्टेयर, रेनापुर में 1,600 हेक्टेयर और निलंगा तालुका में 1,260 हेक्टेयर जमीन घोंघे के संक्रमण की चपेट में आ गई। उन्होंने कहा, “बेमौसम बारिश के बाद कुछ किसानों ने बताया था कि उन्होंने अपने खेतों के मेड़ों पर घोंघे देखे हैं। लेकिन जब तक हम कुछ करते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
छत्रपति संभाजीनगर के कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक आरटी जाधव ने कहा, “बीड जिले में कुल 3,28,521 हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती की गई थी, जिसमें से 476 हेक्टेयर क्षेत्र संक्रमित हुआ है। जालना में 2,03739 हेक्टेयर में सोयाबीन लगाया गया था। इसमें से 216 हेक्टेयर फसल संक्रमित हो गई थी। जबकि छत्रपति शिवाजी नगर में 28,391 हेक्टेयर में से 193 हेक्टेयर सोयाबीन घोंघों ने चट कर ली।” उनके अनुसार, बीड में अंबाजोगई, केज, पटोदा, परली, तालुका सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। जबकि उस्मानाबाद में तुलजापुर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
जाधव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “वे दिन के समय ज़मीन के नीचे छिपे रहते हैं और सूरज छिपने के बाद बाहर आते हैं। सूरज उगने तक वे सोयाबीन की सारी पत्तियाँ खा चुके होते हैं। ऐसा लग रहा है जैसे खेतों को मवेशियों ने रौंद दिया हो।”
घोंघे कहाँ से आये हैं?
परभणी स्थित वसंतराव नाईक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ में कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख पीएस नेहरकर ने कहा, “लगातार होने वाली बारिश, उच्च आर्द्रता (75 से 80 फीसदी) और 25 से 27 डिग्री सेल्सियस के आसपास तापमान ऐसी स्थितियाँ हैं जो घोंघे को आकर्षित करती हैं।” उन्होंने कहा, हालाँकि मराठवाड़ा में उतनी बारिश नहीं हुई है, लेकिन आसमान में बादल छाए रहते हैं।
नेहरकर ने गाँव कनेक्शन को बताया, “घोंघे पिछले पाँच सालों से फसलों को नुकसान पहुँचा रहे हैं लेकिन इस साल उनकी संख्या में काफी वृद्धि हुई है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि पूरे खेतों में फैली सोयाबीन की फसल को घोंघे खा गए हों।”
कीट वैज्ञानिक ने बताया कि मराठवाड़ा में पिछले तीन या चार सालों से अच्छी बारिश हो रही है। मिट्टी में नमी की मात्रा और आर्द्रता घोंघे के प्रजनन के लिए अनुकूल है। 2020-21 में दिसंबर और जनवरी में ठंड के मौसम के बाद अच्छी मानसून बारिश हुई और फिर तापमान बढ़ गया। इस दौरान घोंघे मिट्टी में निष्क्रिय बने रहे।
ख़रीफ़ सीज़न से पहले हुई बारिश में घोंघे बहुत बढ़ गए और फसलों पर हमला कर दिया। नेहराकर ने बताया, “मानसून का जल्दी आगमन और लंबे समय तक बारिश घोंघे के लिए आदर्श साबित हुई। सात से आठ महीनों तक मिट्टी में लगातार नमी रहने से प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थिति बन गई और उनकी संख्या बढ़ गई।”
घोंघे उस भूमि की परिधि पर रहते हैं जिस पर पानी जमा होता है। वे जल निकायों, स्थिर पानी और नम मिट्टी में पाए जाते हैं। कीटविज्ञानी ने कहा कि घोंघे के अंडे आमतौर पर कृषि उपकरणों जैसे ट्रैक्टर, उनके टायरों के साथ-साथ खेतों में काम करने वाले जानवरों में भी मौज़ूद होते हैं। और जब यह वास्तव में आर्द्र हो जाता है, तो घोंघे के अंडे फूटते हैं और उग्र हो जाते हैं। वे जून और सितंबर के बीच के चार महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते हैं।
नेहरकर ने कहा, “घोंघों को इकट्ठा करके खारे पानी में डुबो देना चाहिए। वे खारे घोल में मर जाते हैं और उसके बाद उन्हें दफना देना चाहिए। इसके अलावा खेत की परिधि को तंबाकू की भूसी, सूखी राख और चूने के पानी से सूखा रखा जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाहर से घोंघे मैदान में अंदर न आ पाएं।”
दुनिया भर में घोंघे की 35,000 से अधिक प्रजातियाँ हैं जबकि भारत 1,450 प्रजातियों का घर है। महाराष्ट्र के सोयाबीन खेतों में आए घोंघों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है क्योंकि इस प्रजाति में लिसाचैटिना फुलिका शामिल है जो एक उभयलिंगी है और इस प्रजाति का हर सदस्य अंडे दे सकता है।
छत्रपति संभाजीनगर स्थित कीट विज्ञानी नितिन पतंगे के अनुसार, हर एक घोंघा पहले वर्ष में नम मिट्टी में 100 से अधिक अंडे पैदा कर सकता है।
पतंगे ने कहा, “दूसरे साल में वे 500 अंडे तक दे सकते हैं। घोंघे छह साल तक जीवित रह सकते हैं और तीन साल तक भूमिगत रह सकते हैं। जब तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ जाता है, तो वे जमीन से बाहर आ जाते हैं और फिर से प्रजनन शुरू कर देते हैं। ”
घोंघे मौसंबी के पेड़ों को भी संक्रमित करते हैं
मौसंबी उगाने वाले किसानों को भी घोंघा संक्रमण का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। वहीं, कई किसान ऐसे भी हैं जो मौसंबी और सोयाबीन दोनों की खेती कर रहे हैं।
छत्रपति संभाजी नगर जिले के चित्तेपिम्पल गाँव के संतोष दहीहांडे के पास 14 एकड़ ज़मीन में 2000 मौसमी या मोसंबी के पेड़ हैं। दुख भरे लहजे में किसान ने कहा। “उनमें से 500 पेड़ ख़त्म हो गए हैं। पेड़ों को बनाए रखने में मेरी 15 साल की कड़ी मेहनत बर्बाद हो गई, ”पिछले साल तक पेड़ ठीक थे और उनसे होने वाली आय से जीवन में काफी सुकून था। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “लेकिन यह नुकसान कुछ ऐसा है जिसे मैं जीवन भर झेलता रहूँगा, मेरे पास मुनाफ़ा कमाने के लिए बमुश्किल ही कुछ पेड़ बचे हैं।”
जब गाँव कनेक्शन ने कीट वैज्ञानिक मौसंबी के बागों में हुए नुकसान के बारे में बताया तो नेहरकर ने कहा “मौसंबी के पेड़ के तने पर चूने के पानी और कॉपर सल्फेट का लेप लगाना चाहिए। यह घोंघे को पेड़ पर चढ़ने से रोकेगा।”
उन्होंने यह भी बताया कि राज्य में घोंघे के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए संस्थान की संभागीय प्रयोगशाला में अनुसंधान चल रहा है।
उन्होंने कहा, “अनुसंधान के दौरान घोंघों पर कई तरह के जैविक और रासायनिक कीटनाशकों के प्रभावों का विश्लेषण किया जा रहा है। चूंकि, यह राज्य में एक हालिया चुनौती है, हम जल्द से जल्द एक स्थायी समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ”
मुआवजे की अभी कोई घोषणा नहीं
इस बीच, राज्य सरकार ने घोंघा संक्रमण के कारण किसानों को हुए नुकसान के लिए किसी मुआवजे की घोषणा नहीं की है। पिछले साल किसानों को मुआवजे के तौर पर 98 लाख रुपये की राशि जारी की गई थी।
पिछले साल, राज्य में कृषि विभाग के अनुसार, 72,491 हेक्टेयर सोयाबीन खेतों को घोंघों ने नुकसान पहुँचाया था।
कृषि विभाग के निदेशक तुकाराम मोटे ने गाँव कनेक्शन को बताया कि पुणे में इस साल राज्य सरकार ने अपने फसल कीट निगरानी और सलाहकार परियोजना (सीआरओपीएसएपी) के तहत खेती करने वालों के लिए प्रति हेक्टेयर 750 रुपये की सहायता की घोषणा की है।