उत्तर प्रदेश में पराली जलाने वालों पर आसमान से नज़र रखी जा रही है।
प्रदेश में सेटेलाइट से निगरानी की जा रही है कि कहीं पर पराली तो नहीं जलाई जा रही है, अगर कोई पराली जलाते हुए पकड़ा जाता है तो उसे 15 हज़ार रूपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई के साथ ही पराली जलाने की घटनाएँ भी बढ़ जाती हैं, उत्तर प्रदेश कृषि विभाग इस बार इसे रोकने की पूरी तैयारी में है।
कृषि विभाग ने पराली जलाने के संबंध में किसानों के लिए जानकारी जारी की है, कि जलाने से क्या नुकसान होता है और किसान इसके प्रबंधन के लिए क्या कर सकते हैं।
धान की पराली का प्रबंधन बड़ी समस्या है, ज़्यादातर किसान इसे जला देते हैं जिससे कई तरह के नुकसान होते हैं। सरकार की कोशिश अब किसान भाइयों को इस बारे में जागरूक कर प्रदूषण को कम करना है।
पराली जलाने के नुकसान
पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिसके कारण मिट्टी में मौजूद छोटे जीवाणु और केचुआ आदि मर जाते हैं। नतीजतन, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।
एक टन पराली जलाने से वातावरण में 3 किलोग्राम पर्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम डाई ऑक्साइड,199 किलोग्राम राख, 2 किलोग्राम सल्फर डाईऑक्साइड निकलता है। इन गैसों के कारण सामान्य हवा की गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे आँखों में जलन, त्वचा रोग और फेफड़ों की बीमारियों का ख़तरा रहता है।
फसल अवशेषों को जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों में पाए जाने वाले लाभदायक पोषक तत्व भी जलकर ख़त्म हो जाते हैं। मिट्टी में गर्मी बढ़ जाती है, जिससे उर्वरता पर भी असर पड़ता है।
फसल अवशेष और मिट्टी में पाए जाने वाले मित्र कीट जलकर मर जाते हैं, जिसका वातावरण में विपरीत असर पड़ता है।
पराली प्रबंधन के लिए किसान क्या करें?
प्रदेश में सीबीजी (संपीड़ित बायोगैस) प्लांट और दूसरे फसल अवशेष आधारित जैव ऊर्जा इकाइयों पर धान की पराली खरीदी जा रही है। किसान यहाँ पराली बेच सकते हैं।
निराश्रित गौ आश्रय को पराली दान कर सकते हैं, जो सर्दियों में उनके चारे और बिछावन के काम आ जाती है।
डिकंपोजर के इस्तेमाल से जल्द से जल्द फसल अवशेष सड़ा सकते हैं, जिससे मिट्टी में कार्बन अंश की वृद्धि होती है।
कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई करने पर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, क्रॉप रीपर, रीपर कम बाइंडर का इस्तेमाल करें।
फसल अवशेष प्रबंधन के अंतर्गत इन सीटू योजना में यंत्रों को सुगमता से उपलब्ध कराने के कस्टम हायरिंग केंद्र और फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किए गए हैं। वहाँ से किसान किराए पर यंत्र लेकर अपने खेत में पराली प्रबंधन कर सकते हैं।