हिमाचल की राजधानी शिमला से करीब 150 किलोमीटर दूर सिरमौर जिले का काशीपुर गाँव इन दिनों खुशबू और स्वाद की वजह से लोगों को आकर्षित कर रहा है।
ये खुशबू है स्वादिष्ट अचार और मुरब्बे की, जिसे बनाने का गुर सिखने के लिए आसपास की महिला किसान 7500 फ़ीट ऊँचे काशीपुर गाँव की जसविंदर कौर के पास हर रोज़ आती हैं।
जसविंदर कल तक एक मामूली किसान थीं, लेकिन अब वे प्राकृतिक खेती और अपने खेत में उगी सब्जी, फलों से अचार-मुरब्बा बनाकर बेचने के कारण दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गई हैं।
“बचपन से ही खेती करते आ रहे हैं, लेकिन साल 2000 में खुद से खेती करनी शुरू की तो शुरू में तो बहुत परेशानी हुई, लेकिन धीरे-धीरे सब सही चलने लगा।” जसविंदर गाँव कनेक्शन से बताती हैं।
साल 2007 में जसविंदर ने रेड कैबेज, लेट्यूस जैसी अंग्रेजी सब्जियाँ भी उगानी शुरू की जिसकी बाज़ार में अच्छी माँग रहती है।
वो आगे कहती हैं, “एक कैंप में गई तो मैंने प्राकृतिक खेती के बारे में सुना; मैंने घर आकर बताया तो सब मुझपर हँसने लगे कि इतनी खाद डालने पर तो कुछ होता नहीं, बिना खाद के कैसे खेती की जा सकती है।”
कुछ दिन बाद उद्यान विभाग के एक अधिकारी ने उन्हें बताया कि डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में प्राकृतिक खेती का कैंप लगने वाला है। वो कहती हैं, “घर आकर मैंने अपने पति से कहा कि आप चले जाइए कुछ तो सीखने को मिलेगा ही, वो तैयार हो गए और वहाँ जाने के चार दिन बाद फोन करके बताया कि तुम सही कह रही थी, रासायनिक खाद के बिना भी खेती की जा सकती है।”
इसके बाद दोनों लोगों ने ठान लिया कि अब प्राकृतिक खेती ही करेंगे और अब तो दोनों लोग दूसरे किसानों को भी ट्रेनिंग देते हैं।
जसविंदर के पति रंजीत सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “एक महीने के कैंप में मैंने बहुत कुछ सीख लिया, अब तो हम कई तरह की फसलें उगाते हैं, अब हमें पता हैं कि किस फसल को कब और कैसे उगाना है।”
उन्होंने अपने बगीचे में कई तरह के फलदार पेड़ भी लगा रखे हैं, जिससे साल भर फल मिलता रहता है। जसविंदर सिंह कहती हैं, “हमने अपने बगीचे में नींबू, सेब, पपीता, आँवला, अमरूद जैसे पेड़ लगा रखे हैं, जिनके अचार बनाकर बेचती हूँ, जिससे अलग कमाई हो जाती है।”
“अब तो लोग भी जानने लगे हैं, दूसरे अचार जहाँ 70 रुपए में बिकते हैं, हमारा अचार 200 रुपए में बिकता है, “जसविंदर ने आगे कहा।
जसविंदर को 2015 में रेणुका पुरस्कार से सम्मानित किया गया था इसके साथ 2021 में राष्ट्रीय विकास एवं पंचायत राज विकास से सम्मानित किया गया था।
66 साल की कमला देवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में संस्कृत की अध्यापिका हैं और खेती भी करती हैं। जसविंदर से सीखकर अब वो भी प्राकृतिक खेती करती हैं, “पहले मैं रासायनिक खेती करती थी लेकिन जब जसविंदर जी से मिली उसके बाद से प्राकृतिक खेती में फायदा है। उसके साथ ही मैं अपने अचार को मार्केट में बेचती भी हूँ, पहले मैं घर के लिए बनाती थी लेकिन फिर जसविंदर जी ने कहाँ की हम इसको मार्केट में बेच सकते हैं उसके बाद से मैं अपनी दुकान भी लगाती हूँ।”
प्राकृतिक खेती कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉक्टर सुभाष पालेकर द्वारा विकसित एक कृषि पद्धति है। यह देसी गाय के मूत्र और गोबर पर आधारित एक गैर-रासायनिक, कम लागत और जलवायु के अनुकूल खेती तकनीक है, और स्थानीय रूप से संसाधन वाले पौधों और आदानों पर आधारित है, जो बाहरी बाज़ार पर कृषि आदानों के लिए निर्भरता को कम करता है।
जसविंदर कौर अब अपने खेतों में न सिर्फ गेहूँ, धान, पपीता, नींबू, गन्ना, भिंडी, फ्रेंच बीन, आलू, लौकी और सरसों जैसी फसलें उगा रही हैं बल्कि प्राकृतिक खेती से उसकी लागत कम होने का ज्ञान भी बाँट रही हैं, जिससे दूसरे किसानों की भी अच्छी कमी हो रही है।