इस तरीके से बच सकता है रेगिस्तान का जहाज  

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सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां और कम होते चारागाह जैसी समस्याओं को लेकर रेगिस्तान का जहाज अपने वजूद को बचाने के लिए जूझ रहा है। ऐसे में अगर ऊंटों के दूध व अन्य उत्पादों को बढ़ावा दिया जाए तो शायद देश में लगातार घट रही ऊंट की संख्या पर रोक लगाया जा सकता है।

राजस्थान के पाली जिले में ऊंट के संरक्षण एवं सर्वधन के लिए पिछले कई वर्षों से लोकहित पशुपालक संस्थान काम कर रही है। यह संस्थान राजस्थान में ऊंट पालन से जुड़े किसानों को जागरूक करता है।

संस्थान के प्रमुख प्रमुख हनवंत सिंह राठौड़ बताते हैं, “हमारी संस्थान ऊंटनी के दूध पर काम कर रही है। कई जगहों पर केमल माइक्रो डेयरी खोली है जिससे अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है, जिन किसानों के पास 20 से 25 केमल है। वो महीने में 18 हजार से 20 हजार रुपए कमा सकते है और ऐसे किसान हमसे जुड़े भी हुए है। इनकी संख्या को गिरने से बचाया जा सकता है बस किसानों को जागरूक करना जरूरी है।

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अपनी बात को जारी रखते हुए राठौड़ बताते हैं, “अभी ऊंटनी का दूध बगलौर, दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में जा रहा है। जहां इनकी कीमत 250 से 300 रुपए लीटर है। ऊंटनी के दूध का प्रयोग डायबिटीज और मंदबुदि बच्चों के लिए किया जाता है। इनके दूध की मांग भी बहुत ज्यादा है। अगर सरकार दूध व अन्य उत्पादों के लिए बाजार खड़ा करे तो किसानों का रूझान बढ़ेगा।”

भारत की 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में ऊंटों की आबादी में 22.48 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्ष 2012 के मुताबिक देश में 3.25 लाख ऊंट है, लेकिन लोकहित पशुपालक संस्थान के प्रमुख हनवंत सिंह राठौड़ इससे भी आधी संख्या बता रहे है।

ऊंटों की गिरती संख्या के बारे में राजस्थान के बीकानेर स्थित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान संस्थान के ऊंट वैज्ञानिक डॉ आरके सवाल ने बताया, “संख्या घटने का सबसे बड़ा कारण चारागाह की जमीन न होना है। ऊंटों को स्टॉल फीड़िग नहीं कराया जा सकता है। दूसरा कारण ऊंट पहले दूसरे राज्यों में चला जाता था पर सरकार ने इस पर रोक लगा दी। इनके फीडिग पर किसान का जितना खर्चा आता है किसान उतना नहीं निकाल पा रहा है। जिससे लोगों का रूझान कम हुआ है। ऊंट पालने वाली तो राईका समाज है वो भी इससे दूर हो रही है।”

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ऊंटों की लगातार गिरती संख्या को देखते हुए वर्ष 2014 में राजस्थान सरकार ने ऊंट को राजकीय पशु घोषित किया। सरकार ने इसके वध को निषेध कर दिया। अगर कोई वध करने के लिए ऊंट को बेचता है तो सात साल तक सजा का भी प्रावधान है। रोक के बाद ऊंट पालन करने वालों की संख्या भी काफी घट गई है।

राजस्थान के जैसलमेर जिले के अच्छा गाँव में रहने वाले सुमेर सिहं (38 वर्ष) के पास 300 ऊंटनी है, जिनसे रोजाना 150 लीटर से ज्यादा उत्पादन होता है। ऊंट कम होने के कारण के बारे में सुमेर बताते हैं, “कई ऐसे इलाके थे जहां पहले गाड़ियां जाती नहीं थी वहां ऊंट गाड़ी का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन अब कई इलाकों में गाड़ियां पहुंचने लगी है। खेती-बाड़ी में प्रयोग करते थे वहां मशीनें आ गई। इनको चराने के लिए भी कोई जमीन कम हो गई है। इसलिए लोग अब नहीं पालते है। जिनके यहां पुश्तों से ऊंट पाले जा रहे है वो भी किसी और व्यवसाय में चले गए है।”

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ऊंट पालन करने के लिए सुमेर सिंह लोगों को जागरूक भी करते है। सुमेर बताते हैं, “ऊंटनी के दूध पर काफी काम हो रहा है। कई उत्पाद भी बनाए जा रहे है। आने वाले समय में ऊंट पालन कठिन नहीं होगा बस लोगों को जागरूक करना है कि ऊंट पालन कर के क्या-क्या फायदे हो सकते है। हर साल हमारे यहां मरुम मेला लगता है, जिसमें हम किसानों ऊंट पालन के लिए प्रोत्साहित भी करते है। लेकिन कोई खासा बदलाव नहीं है।”

वर्ष 2014 में राजस्थान सरकार ने ऊंट को राजकीय पशु घोषित किया।

ऊंट की संख्या को बढ़ाने के लिए राजस्थान सरकार भी प्रयास कर रही है। सरकार ने ऊंट की संख्या को बढ़ाने के लिए ” ऊंट विकास योजना” की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत हर ऊंटनी के प्रसव पर ऊंट पालक को 10 हजार रुपए की अनुदान राशि दी जाती है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए ऊंट पालक को नजदीकी पशु चिकित्सालय में ऊंटनी का रजिस्ट्रेशन कराना होता है।

“ऊंटनी का दूध, पनीर, साबुन, केमल डंक पेपर, कारपेट जैसे कई उत्पादों को बनाने के लिए हम किसानों को प्रशिक्षण दे रहे है, जिसमें किसान जागरूक भी हो रहे है। सरकार ने रोक लगाई है कि राजस्थान से बाहर ऊंट नहीं जा सकता है। रोक हटाने से ऊंट की संख्या कम होने से बचाया जा सकता है। पशुओं के हित काम करने वाली कई संस्थाओं में रोक लगवाई है। पाकिस्तान में ऊंटों की आबादी 10 लाख से ज्यादा है। अगर ऊंटों की संख्या बढ़ाने का कोई कारगर उपाया नहीं गया तो यह देश में ऊंट खत्म हो जाएंगे।” राठौड़ ने बताया।

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