अब आप मछली का चारा खुद तैयार कर उनके खुराक पर होने वाले बड़े खर्च को कम कर सकते हैं। जी हाँ, सिर्फ आपको सही अनुपात और सामान का ध्यान रखना है।
अकसर देखा गया है कि मछली पालक ज़्यादातर मछलियों को सरसों और मूंगफली की खली, चावल और गेंहूँ की भूसी खिलाते हैं। ये बहुत पौष्टिक नहीं होते हैं, जिससे मछलियों का तेज़ी से विकास नहीं हो पाता है और पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
लेकिन अब आप अपनी लागत कम करने और पानी को ख़राब होने से बचाने के लिए तालाब पर ही आहार बना सकते हैं। इसमें आसानी से मिलने वाले सामान का ही इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं इससे छोटे पैमाने पर आहार का उत्पादन भी कर सकते हैं जो लोई, पिंड या सूखे पिलेट्स के रूप में मछलियों के लिए बेहतर होते हैं और बाज़ार में मिलने वाले आहार से सस्ते होते हैं।
मछली के आहार के लिए ज़रूरी सामान
मछली को पौष्टिक आहार के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिजों का मिश्रण ज़रूरी है। प्रोटीन के स्रोत के रूप में मछली का आटा, सोयाबीन का आटा, सरसों की खली, मूंगफली की खली, तिल की खली, अलसी की खली, रेशम कीट के प्यूपा का इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि कार्बोहाइड्रेट के स्रोत के रूप में चावल का चोकर, चावल की भूसी, गेंहूँ की भूसी, गेंहूँ का आटा, मकई के आटे का उपयोग किया जा सकता है। विटामिन और खनिज लवणों के लिए बाज़ार में मौजूद इनके मिश्रण का उपयोग किया जा सकता है।
इसे तैयार करने के लिए सभी सामग्री को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है। जैसे सरसों/मूंगफली की खली और चावल/गेहूँ की भूसी 1:1 या 3:2 या 7:3 के अनुपात में मिलाया जाता है। सरसों की खली, चावल की भूसी और अलसी/सूरजमुखी के बीज की खली 4:5:1 के अनुपात में मिलाया जाता है। सूरजमुखी की खली, चावल की भूसी और रेशम कीट प्यूपा 13:6:1 अनुपात में मिलाया जा सकता है। सरसों/तिल/सूरजमुखी के बीज की खली, चावल की भूसी और रेशम कीट प्यूपा 9:3:7:1 अनुपात में मिलाया जा सकता है। वसा की मात्रा बढ़ाने के लिए 2-4 प्रतिशत वनस्पति तेल मिलाया जा सकता है।
ऐसे करें आहार तैयार
कूट कर तैयार आहार – मछली का ये आहार बनाने के लिए सभी मिश्रण को तय अनुपात में पीसकर पाउडर बनाया जाता है और इसे हाथ से मिलाया जाता है। फिर इसे एयरटाइट थैलों में भरकर रखा जाता है। इस आहार को खिलाने की विधि के अनुसार तालाब में डाला जाता है।
पिलेट्स आहार- पिलेट्स बनाने के लिए सबसे पहले आहार सूत्रीकरण करना होता है। इसके बाद सभी सामग्री को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। नमी के लिए थोड़ा पानी डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है और एक बर्तन में डालकर आग पर पकाया जाता है। पकने के बाद उसे ठंडा किया जाता है और हाथ से चलने वाले या मोटर से चलने वाले पिलेटाइज़र मशीन की मदद से इसके पिलेट्स बनाए जाते हैं। फिर इसे धूप में सुखाकर स्टोर किया जाता है।
गीला पिंड- सभी जमा सामग्री को पीसा जाता है और थोड़ा सा पानी मिलाकर लोई बनाई जाती है; फिर लोई से छोटी-छोटी गोलियां बनाकर मछलियों को दी जाती है। इस आहार को लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये जल्दी खराब हो जाता है।
पकी हुई लोई- गीला पिंड की तरह मिश्रण को मिलाया जाता है और फिर एक बर्तन में रखकर इसे पकाया जाता है। पकने के बाद पकी हुई लोई को सीधे तालाब में मछलियों के भोजन के रूप में डाला जा सकता है।
गीला आहार- ऐसा आहार मुख्य रूप से मांसाहारी मछलियों को खिलाया जाता है; इसे सीधे ही मछलियों को खिलाया जाता है। गीले आहार में कचरा मछली, मत्स्य पालन अपशिष्ट, माँस, अपशिष्ट आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
छोटे किसान जो बाज़ार से मछलियों का आहार नहीं खरीद सकते हैं, वो इस तरीके से तालाब पर ही मछलियों का आहार तैयार कर सकते हैं।
कई देशों में अब ऑटोमेशन के जरिए फिश फीडिंग सिस्टम में सुधार किया जा रहा है। इस सस्टेनेबल तकनीक से जल प्रदूषण भी कम होता है । देश में सबसे अधिक मछली उत्पादन करने वाले पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और केरल में कई किसान इसकी मदद ले रहे हैं। जानकारों का कहना हैं कि मछली पालन की स्मार्ट फीडिंग तकनीक से चारा की लागत घटा सकते हैं।
भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और विश्व का आठ प्रतिशत मछली उत्पादन भारत में होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की शुरुआत के बाद से देश में मछली उत्पादन तेज़ी से बढ़ रहा है। साल 2021-22 में मछली उत्पादन 162 लाख टन से अधिक रहा जो 2019-20 में लगभग 141 लाख टन था।
मछली एक शक्तिवर्द्धक और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। यह खाने में स्वादिष्ट और सुपाच्य होती है; इसमें जरूरी अमीनो एसिड और प्रोटीन की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसके अलावा वसा,कैल्शियम और खनिज भी पाए जाते हैं जिनके कारण संतुलित आहार में मछली की विशेष उपयोगिता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे ये मालूम चलता है कि प्राचीन समय में भी मछली पालन होता था।