लखनऊ। जब कभी डेयरी शुरू करने की बात आती है तो ज्यादातर लोग भैंस को खरीद कर डेयरी की शुरू करते है लेकिन गाय से भी डेयरी की शुरूआत करके अच्छा मुनाफा कमा जा सकते है। कई राज्यों में किसान देसी नस्ल की गायों के दूध, गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद इलाके में सिंकदरपुर गाँव है। इस गाँव में असीम रावत (39 वर्ष) पिछले तीन वर्षों से हेथा नाम डेयरी चला रहे हैं। इस डेयरी में साहीवाल, गिर, थारपारकर प्रजाति की 500 गायें हैं। हेथा डेयरी के संचालक असीम बताते हैं, “डेयरी में 100 गायों से अभी 500 से 600 लीटर दूध उत्पादन हो रहा है, जिनसे हम मक्खन, घी, खोया और पेड़ा तैयार कर रहे हैं। बाजार में यह अच्छे दामों पर बिक भी रहे हैं।”
गाय से डेयरी शुरू करने के फायदे के बारे में असीम बताते हैं, “देसी गाय के दूध ही नहीं बल्कि उसके गोबर से बने उपले, राख, खाद और गोमूत्र से बने अर्क, पेस्टीसाइड और गो- फिनाइल बनाते है और बाजारों में इसको अच्छे दामों पर बेचते भी है। आय दोगुनी करने के लिए किसानों को गोपालन ही करना चाहिए।” असीम ने दो गायों से इस डेयरी को शुरू किया था। उनके इस प्रयास को अब यूपी, हरियाणा, समेत कई राज्यों के किसान देखने के लिए आते हैं।
“जो किसान देसी नस्ल की गायों का पालन कर रहे हैं उनके नस्लों का ज्यादा ध्यान रखें। अगर उनका कृत्रिम गर्भाधान करा रहे हैं तो अच्छे सीमन का प्रयोग करे और यदि प्राकृतिक करा रहे हैं तो नर अच्छी गुणवत्ता वाला रही हो।” असीम ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, “देसी नस्ल के नर की भी काफी डिमांड है अगर डेयरी में अच्छे नर हैं तो इनको बाजार में अच्छी कीमत पर बेच भी सकते हैं।” वर्ष 2015 में नौकरी छोड़कर असीम ने डेयरी की शुरूआत की थी। उनके प्रयासों से उन्हें दिल्ली में आयोजित विश्व दुग्ध दिवस पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने राष्ट्रीय गोपालक रत्न पुरस्कार से नवाजा।
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19वीं पशुगणना के मुताबिक देश के 51 करोड़ मवेशियों में से गोवंश (गाय-सांड, बैंड बछिया, बछड़ा) की संख्या 19 करोड़ है। फैजाबाद जिले से करीब 15 किलोमीटर दूर मकसूमगंज मगलची गाँव के राजेंद्र प्रसाद देसी गाय के दूध को तो बेच ही रहे है साथ देसी दूध से बने उत्पादों को भी ऑनलाइन और मॉल में बेच रहे है।
देसी गायों के विशेषज्ञ डॉ़ के एम एल पाठक बताते हैं, “देसी गायों के संरक्षण और सर्वधन पर सरकार तो काम कर ही रही है। युवा किसान भी इसमें काफी रूचि ले रहे हैं। देश में जब हरित क्रांति शुरू हुई तो उत्पादन बढ़ाया, उसी समय हमारे यहां क्रास ब्रीडिंग का कांस्पेट शुरू हुआ और तो विदेशी नस्ल की गायों के सीमन से देसी नस्ल की गायों की क्रास ब्रीड़िग कराई। धीरे-धीरे हमारी जो देसी नस्लें थी वो कम हो गई। लेकिन अब हम वापस आ रहे हैं।”
डॉ. पाठक आगे बताते हैं, “अगर किसी किसान के लिए डेयरी के लिए साहीवाल गाय की जरूरत है तो वो पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से खरीद सकता है। अगर राठी गाय को खरीदना चाहता है तो राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर से खरीद सकता है। देसी गायों में जहां कम बीमारियां होती है वहीं इनके ऊपर ज्यादा खर्चा भी नहीं आता है।”
भूमिहीन एवं सीमांत किसान के लिये डेयरी व्यवसाय उनके जीवनयापन का एक जरिया बन गया है। करीब सात करोड़ ऐसे ग्रामीण किसान परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं जिनके पास कुल गायों की 80 प्रतिशत आबादी है। भारत ने वर्ष 2016-17 में कुल 16 करोड़ लीटर दुग्ध उत्पादन किया। देश में 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देशी नस्ल की गायों से , 25 प्रतिशत विदेशी नस्ल की गायों से से आता है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के समयपुर गाँव में डॉ. सौरभ सिंह की छोटी सी डेयरी है। इस डेयरी में 23 गाय (साहीवाल) हैं। डॉ सौरभ बताते हैं, “अभी भी लोगों को लगता है कि देसी गायों को पालने पर नुकसान होता है। लेकिन देसी के दूध उत्पाद और गोबर, गोमूत्र से बने प्रोडक्ट की बाजार में काफी डिमांड है।” ढ़ाई एकड़ की डेयरी में 160 लीटर दूध का उत्पादन होता है, जिसको सिंह बाजार में 70 रुपए प्रति लीटर में बेचते हैं। डेयरी में बिजली की व्यवस्था के लिए बायोगैस प्लांट भी लगा हुआ है। दूध से बने घी और गोबर से जैविक खाद भी तैयार किया जाता है।
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देसी नस्ल की गायों को बढ़ावा देने के लिए सरकार का प्रयास
सरकार ने देशी नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन का शुभारंभ किया है। स्वदेशी नस्लों के विकास एवं एक उच्च आनुवांशिक प्रजनन की आपूर्ति के आश्रित स्रोत के केन्द्र के रूप में कार्य करने के लिए देश के 13 राज्यों में 20 गोकुलग्राम स्वीकृत किए गए हैं। स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए देश में दो राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केन्द्र भी स्थापित किए गए हैं। राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केन्द्र पहला दक्षिणी क्षेत्र में चिन्तलदेवी, नेल्लोर में और दूसरा उत्तरी क्षेत्र इटारसी, होशंगाबाद में है।
पशुपालन योजनाओं का लाभ सीधे किसानों के घर तक पहुंचे, इसके लिए सरकार द्वारा एक नई योजना ”नेशनल मिशन आन बोवाइन प्रोडक्टीविटी” अर्थात् ”गौपशु उत्पादकता राष्ट्रीय मिशन” को शुरू किया गया है। इस योजना में ब्रीडिंग इन्पुट के द्वारा मवेशियों और भैंसों की संख्या बढ़ाने हेतु आनुवांशिक अपग्रेडेशन के लिए सरकार द्वारा 825 करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं। दुग्ध उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करके डेयरी कारोबार को लाभकारी बनाने के लिए यह योजना अपने उद्देश्य में काफी सफल रही है।
ये है गाय और भैंस के दूध में अंतर
- भैंस के दूध की तुलना में गाय के दूध को पचाना आसान है। क्योंकि भैंस के दूध में गाय के दूध की अपेक्षा 100 प्रतिशत ज्यादा फैट होता है|
- भैंस के दूध में गाय के दूध की तुलना में 11 प्रतिशत ज़्यादा प्रोटीन होता है। जिन लोगों को ज़्यादा प्रोटीन की जरूरत हो या अपनी मांसपेशियां मजबूत बनानी हों, उन्हें भैंस का दूध पीना चाहिए।
- मिनरल्स में भैंस का दूध गाय के दूध को पीछे छोड़ देता है। भैंस के दूध में गाय के दूध से 91 प्रतिशत अधिक कैल्सियम, 37.7 प्रतिशत अधिक आयरन और 118 प्रतिशत अधिक फास्फोरस होता है। भैंस के दूध में मैग्नीशियम और पोटाशियम भी गाय के दूध से अधिक पाया जाता है।
- भैंस का दूध मजबूत हड्डियों, स्वस्थ दांतों, हृदय संबंधी समस्याओं और वजन बढ़ाना के लिए अच्छा माना जाता है। वहीं गाय का दूध भी हड्डियों और दांतों के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है। ये बच्चों में वजन घटाने, थायराइड की समस्या से निपटने और हृदय स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा स्रोत है।