लखनऊ। मुर्गीपालन व्यवसाय से मुनाफा कमाने के लिए किसान को उसके प्रबंधन, टीकाकरण के साथ साथ कई और भी उपाय करने होते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में अभी भी असंगठित पोल्ट्री किसान इसको नज़रअंदाज कर देते हैं, जिससे पोल्ट्री किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
“मुर्गीपालन व्यवसाय को शुरू करने से पहले किसान को प्रशिक्षण लेना बहुत जरूरी है। इसके अलावा फार्म में वह किस नस्ल के चूजे डाल रहे हैं, उनको किस तरह का आहार देना है उनका प्रबंधन किस तरह किया जाए इसके बारे में जानकारी होगी। तभी किसान को लाभ होगा। ब्रायलर मुर्गीपालन में इन बातों का ज्यादा ध्यान रखना होता है।” ऐसा बताते हैं, चित्रकूट जिले तुलसी कृषि विज्ञान केन्द्र के विषय वस्तु विशेषज्ञ (पशु विज्ञान) डॉ. गोविंद कुमार वर्मा।
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प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत भारतीय कौशल विकास परिषद और कृषि विज्ञान केन्द्रों के पशु विज्ञान विभाग द्वारा समय-समय पर किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण में किसानों को कम समय और कम लगात में मुर्गीपालन व्यवसाय से कैसे कमाया जा सकता है इसके बारे में बताया जाता है।
शुरू करने से पहले पांच बातों का रखें विशेष ध्यान
अच्छी नस्ल के चूजे: ब्रायलर का वृद्धि एवं विकास तथा मांस का उत्पादन एक आनुवांशिक प्रक्रिया है इसलिए चूजे हमेशा किसी अच्छी हैचरी से प्राप्त करने चाहिए। जिनके चूजे भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा किए गए रेंडेम सैम्पल परीक्षण मे खरे उतरे हो। ऐसी हैचरियों की सूची सरकार प्रकाशित करती रहती है। यदि चूजे अच्छी नस्ल के नहीं लिए जाएंगे तो इनसे अधिक मात्र में मांस नहीं प्राप्त होगा और पूंजी तथा श्रम का नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त कुछ रोग जैसे- सलमोनेल्ला एवं सीआरडी जो कि अंडे के माध्यम से चूजे में भी आ जाते हैं, इसलिए भी इन रोगों से मुक्त हैचरी से चूजे लेने चाहिए।
संतुलित आहार: संतुलित आहार ब्रायलर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ उन्हें रोगों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करता है। यदि चूजों का आहार संतुलित है तो उनको वृद्धि विकास और शारीरिक भार अधिक प्राप्त होता है। ब्रायलर मुर्गियां आहार को मांस मे बदलती है, यदि आहार निम्न कोटि का होता है तो चूजे चाहे कितनी भी अच्छी नस्ल के हो उनसे आपेक्षित मांस उत्पादन प्राप्त करना संभव नही होता है। इसलिए मुर्गियों को आहार हमेशा संतुलित देना चाहिए, जिसमें उनकी अवस्था की आवश्यकता के अनुसार प्रोटीन खनिज तत्व और विटामिन होने चाहिए। ब्रायलर उत्पादन मे 70-75 % व्यय आहार पर होता है। यह दाना सरकारी विभाग में या निजी क्षेत्रों में उपलब्ध हो जाता है। स्थानीय उपलब्ध दाना सामाग्री द्वारा भी इसे तैयार किया जा सकता है।
रोग नियंत्रण: कुक्कुट प्रक्षेत्र पर बीमारी आ जाती है तो इसका प्रभाव पूरे स्टाक पर पड़ता है और कभी-कभी तो दवाओं का व्यय मुर्गियों की कीमत से भी ज्यादा हो जाता है। एक बार रोग ग्रस्त हो जाने पर मुर्गियों को पूर्ण स्वस्थ होने में काफी समय लगता है जिससे मुर्गीपालकों को अत्यधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। अतः रोगों की रोकथाम का पहले से ही पूरा ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। प्रबंधन व्यवस्था ऐसी करनी चाहिए कि कुक्कुट प्रक्षेत्र पर रोग मुर्गियों को प्रभावित न कर सके।
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उत्तम प्रबंधन: ब्रायलर उत्पादन में मांस की अधिक मात्रा प्राप्त करने के लिए उत्तम प्रबंधन की आवश्यकता होती है। प्रबंधन आधुनिक वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए। ऐसा न करने पर सभी प्रयास विफल हो जाते हैं। संसाधनों का समुचित उपयोग करके श्रम के प्रतिफल मे मुर्गियों से भरपूर लाभ लेने के लिए उत्तम प्रबंध करना अति आवश्यक है।
बाजार व्यवस्था: ब्रायलर उत्पादन में उचित बाजार एवं सही ग्राहक की उपलब्धता होने से लाभ या हानि मुर्गियों के विक्रय से होने वाली आय पर निर्भर करती है। मुर्गीपालकों को विक्रय योग्य मुर्गियाँ सीधे उपभोक्ताओं तक पंहुचाने का प्रबंध करना चाहिए। ब्रायलरों के बेचने का सही प्रबंध करना जरूरी होता है इसके लिए इनका विक्रय सीधे उचित अवस्था पर उपभोक्ताओं को करना चाहिए।