लखनऊ। देश में अंडे और मांस का करोबार तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में कम जगह और कम खर्च में किसान बटेर पालन को व्यवसायिक रूप में शुरू करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
व्यवसायिक मुर्गी पालन, चिकन फार्मिंग के बाद बतख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है। जापानी बटेर के अंडे का वजन उसके वजन का आठ प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का तीन प्रतिशत ही होता है। जापानी बटेर को 70 के दशक में अमेरिका से भारत लाया गया था जो अब केंद्रीय पक्षी अनुसंधान केंद्र, इज्जत नगर, बरेली के सहयोग से व्यावसायिक रूप ले चुका है। इस संस्थान में किसानों को इसके पालन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जापानी बटेर का चूजा भी यहीं से ले सकते हैं।
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आवास प्रंबधन
बटेर पालन पिंजड़ा और बिछावन विधि के द्वारा शुरू किया जाता है जो हवादार और रोशनीयुक्त होना चाहिए। उसमें प्रकाश और पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। एक व्यस्क बटेर को 200 वर्ग से.मी. जगह में रखना चाहिए। बटेरों को सूर्य की सीधी रौशनी और सीधी हवा में बचाना चाहिए। मुर्गी की अपेक्षा बटेर अधिक गर्म वातावरण में रह सकती है।
ब्रूडिंग
ब्रूडिंग आवास में खिड़कियां और रौशनदान होना जरुरी है, जिससे एक समान रोशनी और हवा बटेर को मिल सके। बटेर के चूज़ों को पहले दो सप्ताह तक 24 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है और गर्मी पहुंचाने के लिए बिजली या अन्य स्त्रोत की व्यवस्था होनी चाहिए। एक दिन के बटेर चूज़ों के लिए ब्रूडर गृह का तापमान पहले सप्ताह में 95 डिग्री फॉरेन्हाइट से क्रमश 5 डिग्री फॉरेन्हाइट धीरे-धीरे प्रति सप्ताह कम करते रहना चाहिए।
आहार व्यवस्था
बटेर के चूजे को संतुलित आहार के साथ ही अच्छी शारीरिक वृद्वि के लिए 6 से 8 प्रमिशत शीरे का घोल 3-4 दिनों तक देना चाहिए और आहार में 0-3 सप्ताह तक 25 प्रतिशत और 4 से 5 सप्ताह में 20 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। बटेर चूज़ों के आहार में मक्का-45 प्रतिशत, टूटा चावल 15 प्रतिशत, मूंगफली खल 15 प्रतिशत, सोयाबीन खल 15 प्रतिशत, मछली चूरा 10 प्रतिशत और खनिज लवण, विटामिन्स एवं कैल्शियम संतुलित मात्रा में होना चाहिए।
लिंग पहचान
बटेरों के लिए लिंग की पहचान मुर्गी चूज़ों की तरह एक दिन की आयु पर की जाती है। परंतु तीन सप्ताह की आयु पर पंखो के रंग के आधार पर जिसमें नर के गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल, भूरा, धूसर और मादा की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के धब्बेदार होता है। मादा बटेरों के शरीर का भार नर से 15 से 20 प्रतिशत अधिक होता है।
प्रकाश व्यवस्था
व्यस्क बटेरों या अंडा देने वाली बटेरों के लिए 16 घंटे प्रकाश और 8 घंटे का अंधेरा जरुरी है। बटेरों के मांस उत्पादन वृद्वि करने के लिए बाजार भेजने से पहले 7-10 दिन तक 8 घंटे प्रकाश और 16 घंटे अंधेरा रखना जरुरी है।
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अंडा उत्पादन
मुर्गी की अपेक्षा बटेर अपने दैनिक अंडा उत्पादन का 70 प्रतिशत दोपहर के 3 बजे से 6 बजे के बीच करती है। शेष अंधेरे में देती है, जिसको दिन में 3-4 बार में इकट्ठा करना चाहिए। बेहतर उत्पादन के लिए अंडे से बच्चा निकालने के लिए (ब्रीडर बटेर पैरेंट) नर और मादा 10 से 28 सप्ताह आयु के बीच के होने चाहिए। एक नर बटेर के साथ 2 से 3 मादा बटेरों को रखना चाहिए। बटेरों के चोंच, पैर के नाखून थोड़ा काट देना चाहिए ताकि एक दूसरे को घायल न कर सके।
टीकाकरण
बटेरों में किसी प्रकार का टीकाकरण नहीं करना पड़ता है क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बटेर आहार में 5 प्रतिशत सूखा हुआ केजीन (फटे दूध का सफेद भाग) मिलाने से कम मृत्युदर और अच्छी शारीरिक वृद्वि होती है और औषधि के रुप में मिनिरल और विटामिल सप्लीमेंट दिए जाते है।
बटेर पालन की खासियतें
- बटेर पालन व्यवसाय को करने के लिए कम जगह की आवश्यकतस होती है।
- छोटा आकार (150 से 200 ग्राम शरीर भार) होने के कारण इसका रख-रखाव काफी आसान होता है।
- 5 सप्ताह में ही यह मांस के लिए तैयार हो जाती है।
- बटेर के अंडें और मांस में अमीनो एसिड, विटामिन, वसा और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होती है।
- बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण इनको किसी भी प्रकार का टीका नहीं लगाया जाता है।
- यहां से ले सकते हैं पूरी जानकारी-
अगर कोई बटेर पालन शुरु करना चाहता है या कोई तकनीकी जानकारी चाहता है तो बरेली के केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में संपर्क कर सकता है। बटेर के चूजों को भी संस्थान द्वारा खरीद सकता है। इसके अलावा बाराबंकी स्थित पशुधन प्रक्षेत्र चक गजरिया फार्म से भी चूजों को खरीद सकता है।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान
0581 2300204
2301220
पशुधन समस्या निवारण केंद्र टोल फ्री नंबर-
18001805141
0522-2741991, 2741992
(स्त्रोत: पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश लखनऊ)