ऐसी गोशाला हो, तो भूखी-प्यासी नहीं मरेंगी गौ माता

एक ओर सरकारी गोवंश आश्रय स्थलों में जहां गायें मर रही हैं, दूसरी ओर ललितपुर में जनसहयोग से बनी गोशाला में गाय-बछड़ों के लिए हर सुविधा मौजूद हैं।
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अरविंद सिंह परमार

ललितपुर। एक ओर सरकारी गोवंश आश्रय स्थलों में जहां गायें मर रही हैं, दूसरी ओर ललितपुर में जनसहयोग से बनी गोशाला में गाय-बछड़ों के लिए हर सुविधा मौजूद हैं।

इस गोशाला में छुट्टा जानवरों के लिए खाने का भूसा, पीने के लिए तालाबों में पर्याप्त पानी और कई छायादार टीन सेट की मूलभूत सुविधा तो हैं ही, इसके अलावा गोशाला में गायों के साथ-साथ हर छोटे-बड़े सामान की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।

गोशाला में अभी 2200 से अधिक छुट्टा गोवंश रह रहे हैं, जहां इस समय एक हज़ार पच्चीस कुंतल भूसे का स्टॉक मौजूद है। जिले के 416 ग्राम प्रधान अपनी स्वेच्छा से गायों के लिए भूसा दान करते हैं।

गोशाला में एक हज़ार से अधिक आजीवन सदस्य


इसके अलावा गोवंश आश्रय स्थल में जनसहभागिता के मकसद से एक समिति का भी गठन किया गया है, जिसकी आजीवन सदस्यता लेने के लिए प्रति व्यक्ति ग्यारह हजार रुपये जमा किये जाते हैं। गोशाला में अब तक एक हजार से अधिक आजीवन सदस्य बन चुके हैं।

गोसंरक्षण नस्ल सुधार समिति कल्यानपुरा के अध्यक्ष और कल्यानपुरा के ग्राम प्रधान ऊदल सिंह लोधी बताते हैं, “कृषक अपनी मर्जी से अन्ना जानवरों को गोशाला में रखता है और औसतन आठ से दस किलो भूसा दान करता है। इसके अलावा पशु विभाग ने दो हेक्टेयर में नेपियर घास भी लगवा दी है, जिससे जानवरों को हरी घास मिलती है। गोशाला की देखरेख जिलाधिकारी मानवेन्द्र सिंह स्वयं करते हैं।”

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ऊदल सिंह आगे बताते हैं, “गोशाला में नस्ल सुधार के लिए एक गिर और दो थारपारकर प्रजाति के सांड हैं, इन्हीं से गोशाला में नस्ल सुधार होगा।” आगे कहते हैं, “वहीं बीमार गायों की देखरेख और इलाज के लिए पशु चिकित्सक समय-समय पर आते रहते हैं, अगर गोशाला में किन्हीं कारणों से किसी जानवर की मौत हो जाती है तो उसे गड्ढा खोदकर दफना दिया जाता है।”

गोशाला के पशुओं को हर संभव सुविधा

ऊदल सिंह ने बताया, “अब गोशाला के लिए तीन ट्रैक्टर, पाँच ट्राली, रीपर, बोनी मशीन, पानी टेंकर, सोलर पम्प, छाया के लिए 20 सेट और चार गोदाम और तालाब बनवा दिये हैं। गोशाला के पशुओं को हर संभव सुविधा मुहैया कराने को डीएम साहब हमेशा तत्पर रहते हैं।”

गोशाला में सुपर वाइजर के तौर पर काम कर रहे पवन कुमार (30 वर्ष) बताते हैं, “गोशाला में जानवरों को पानी पीलाने, चराने और घूमने-फिरने की व्यवस्था है, इस काम में 26 मजदूर गोशाला की सेवा में लगे हैं, पहले आसपास के गाँवों के किसानों की खेती चौपट करते थे, रात दिन खेतों की रखवाली होती थी, लेकिन अब नहीं? अब किसान सुरक्षित अनाज उगाने लगे हैं।”

आवारा जानवरों को भी आसरा मिल गया


वहीं पडोसी गाँव भौरदा के रहने वाले गुलाब बुनकर (50 वर्ष) बताते हैं, “कभी खेतों के पास दो-चार सैकड़ा जानवर घूमा करते थे, खेतों में मचान (ढबुआ) बनाते थे, पूरी रात आग और धुआँ जलाकर जगते थे कि फसल सुरक्षित रहे, मगर अब गोशाला बनने से राहत है, आवारा जानवरों को भी आसरा मिल गया।”

पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं की संख्या सात लाख 33 हज़ार 606 है। अभी तक 2 लाख 77 हज़ार 901 निराश्रित पशुओं को संरक्षित किया गया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी 19वीं पशुगणना के अनुसार पूरे बुंदेलखंड में 23 लाख 50 हजार गोवंश हैं, जिनमें से चार लाख से ज्यादा छुट्टा जानवर हैं। 

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