दुधारू पशुओं में अगर जेर रुक जाए तो अपनाएं यह देसी इलाज

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लखनऊ। दुधारू पशुओं में जेर का रुकना एक गंभीर समस्या है। इसकी वजह से से पशुपालको को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। पशु के ब्याने के के बाद जेर 3-8 घंटों में गिर जाती है लेकिन न गिरने पर यह स्थिति असामान्य मानी जाती है। उचित व समय पर इलाज न होने की स्थिति में पशु का उत्पादन एकदम कम हो सकता है और पशु बांझ भी हो सकता है। इसलिए इसका समय पर इलाज जरुरी है।

जेर रूकने के कारण

  • प्रसव में कठिनाई होना
  • गर्भपात या समय से पूर्व बच्चे का पैदा होना
  • बच्चेदानी की जड़ता
  • जुड़वा बच्चों का होना


  • हार्मोन का असंतुलन
  • विटामिन एवं सेलेनियम की कमी
  • कैल्शियम की कमी
  • कीटोसिस

लक्षण

  • पीड़ित पशु में गर्भपात और कठिन प्रसव के 12 घण्टे बाद भी जेर का काफी भाग बाहर लटकता देखा जा सकता है। कभी-कभी जेर बाहर दिखाई न देकर योनि के अन्दर ही उपस्थित रहती है।
  • अधिकतर पशुओं में बीमारी के लक्षण दिखाई नही पड़तें लेकिन कभी-कभी चारा कम खाना, दूध कम देना, तापमान बढ़ना आदि लक्षण महसूस किये जा सकते हैं। कई दिन हो जाने पर योनि से बदबूदार गंदा स्त्राव और मवाद आना, दूध कम देना और वजन घटने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

उपचार एवं रोकथाम

  • ब्याँत के तुरन्त बाद नवजात बच्चे को थन से दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए। यह प्रक्रिया जेर को प्राकृतिक रूप से बाहर आने में मदद करती है।
  • जेर को शुरुआती घण्टों में निकालना ही उचित है क्योंकि इससे जेर निकालने के समय गर्भाशय में होने वाली क्षति से बचा जा सकता है। जेर धीरे-धीरे गलकर निकल जाती है।
  • कुछ आयुर्वेदिक दवाएं जैसे इन्वोलॉन, यू-टोन, यूट्रासेफ, हिमरोप आदि को 100-200 मिली. पिलाने से भी जेर को बाहर आने में मदद मिलती है। पशु को कैल्शियम भी पिलाना चाहिए।
  • पशु के द्वारा चारा कम खाना, बुखार होना, दूध में कमी आने की परिस्थितियों में जेर को निकालना ही सबसे उपयुक्त है।


  • हाथ के द्वारा योनि मार्ग से जेर को ऐंठ कर धीरें-धीरें खींचकर निकालना चाहिए। यह विधि सामान्यतः ब्याने के 24-36 घण्टे बाद अपनानी चाहिए।
  • हाथ से जेर निकालने के बाद स्ट्रीकलीन 500 मिलीग्राम की चार, फ्रयूरिया की दो, अथवा सी-फ्लोक्स टी जेड, और पोवीडोन आयोडिन और लिनोवो आई यू 3-5 दिन तक बच्चेदानी में डालनी चाहिए।
  • आवश्यकतानुसार स्प्ट्रेटोपेनिसिलीन, ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन प्रतिजैविक दवाएं 3-5 दिन तक लगाना चाहिए।
  • ऑक्सीटोसिन ब्याँत के तुरन्त बाद और उसका दोबारा प्रयोग 2-4 घण्टे बाद करने से जेर रूकने की सम्भवना कम हो जाती है।

(साभार: राष्ट्रीय पशु आनुवशिकी संस्थान ब्यूरो)

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