अगर मौसम ख़राब नहीं हुआ और फसल अच्छी है तो आंवले की खेती करने वाले ज़्यादातर किसान मुनाफे में ही रहते हैं। लेकिन कुछ आसान उपाय से न सिर्फ इसका उत्पादन बढ़ा सकते हैं बल्कि फल का आकर भी बढ़ जाता है।
खास बात ये है कि एक बार आंवले के पौधे को लगाकर किसान भाई पूरी जिंदगी कमाई कर सकते हैं। साथ ही इसके पेड़ों के बीच में खाली जगह में दूसरी फसल की खेती कर अलग से मुनाफा कमा सकते हैं।
अपने देश भारत में आंवले की खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में होती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में भी इसकी काफी खेती होती है।
रोग की रोकथाम से बढ़ाए आंवले का उत्पादन
आंवले में जितना फल होता है वहीँ उसमें रोग की संभावना भी रहती है। काला धब्बा, कुम्भी रोग और फफूंदी रोग आम है, जिसे समय रहते रोकना ठीक रहता है।
काला धब्बा रोग – इस रोग के लगने पर आंवला के फलों पर काले गोल गोल धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोरेक्स की सही मात्रा में छिड़काव करना चाहिए, या बोरेक्स की सही मात्रा पौधों की जड़ों में देना ठीक रहता है।
कुंगी रोग – कुंगी रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों और फलों पर दिखाई देता है। इस रोग की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 का छिड़काव पेड़ों पर करना चाहिए।
फल फफूंदी – इस रोग के लगने पर फलों पर फफूंद दिखाई देने लगती है; जिससे फल सड़कर जल्द ख़राब हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम 45, साफ और शोर जैसी कीटनाशी दवाइयों का छिडक़ाव करना चाहिए।
छालभक्षी कीट रोग – आंवले में इस रोग के लगने पर पौधों का ग्रोथ रुक जाता है, जिससे पौधों पर फल काफी कम मात्रा में आते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की शाखाओं के जोड़ पर दिखाई देने वाले छिद्रों में डाइक्लोरवास की सही मात्रा डालकर छेद को चिकनी मिट्टी से बंद कर दें।
बाज़ार में क्यों रहती है आंवले की माँग
आंवला विटामिन सी प्रदान करने वाला सबसे बड़ा पोषक तत्व है। इसका हर रोज़ प्रयोग करने से सर्दी खांसी, वायरल बुखार, मधुमेह, त्वचा से जुड़े रोग, एसिडिटी, पथरी, नहीं होती है। बालों का सफ़ेद होना याददाश्त को मज़बूत और आँखों की रोशनी बढाने में भी आंवले का इस्तेमाल किया जाता है।
यही नहीं, आंवलें में एंटीऑक्सीडेंट्स पाया जाता है; जो शरीर में फैलने वाले ज़हर को कम करता है।
आँवले को यूफोरबिएसी परिवार का पौधा कहा जाता है, जो देश का एक महत्वपूर्ण फल है। आँवले का इस्तेमाल अब कई तरह की चीजों को बनाने में किया जाता है, इससे मुरब्बा, अचार, जैम, सब्जी और जैली को तैयार किया जाता ह। आयुर्वेदिक में तो इसे औषधीय फल माना गया है।
इस फल का जिक्र पुराणों तक में मिलता है। यह इतना लाभकारी है कि इसके वृक्ष तक की पूजा की जाती है। इसकी बड़ी वजह यही है कि यह मनुष्य को युवा बनाए रखने के साथ-साथ निरोगी भी रखता है; इसीलिए इसे ‘अमृत-फल’ भी कहा गया है।
कब करते हैं आंवले की खेती
अगर उपजाऊ मिट्टी है और जलभराव की स्थिति पैदा नहीं होती है तो उस जगह पर इसकी खेती कर सकते हैं।
खेती के लिए सबसे पहले गड्ढे तैयार किए जाते हैं जो 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट पर होना चाहिए। पौधा लगाने के लिए 1 घन मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए। इसके बाद गड्ढों को 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे इसमें धूप लग सकें, इससे हानिकारक जीवाणु धूप के संपर्क में आकर मर जाते हैं। इसके बाद हर गड्ढे में 20 किलोग्राम नीम की खली और 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाना चाहिए। गड्ढों को भरते समय 70 से 125 ग्राम क्लोरोपाइरीफास डस्ट भी भर देनी चाहिए। मई में इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए, फिर गड्ढा भराई के 15 से 20 दिन बाद पौधे का रोपण कर देना चाहिए।
ये हैं आंवले की बेहतर किस्में
आंवले की बेहतर किस्मों की ही बुवाई करनी चाहिए ताकि फलों का आकार बड़ा मिल सके। आंवले की अच्छी किस्मों में बनारसी, चकईया, फ्रान्सिस, कृष्णा (एन ए- 5),नरेन्द्र- 9 (एन ए- 9),कंचन (एन ए- 4),नरेन्द्र- 7 (एन ए- 7),नरेन्द्र- 10 (एन ए-10) किस्में प्रमुख है। किसान अपनी सुविधा और क्षेत्रीय जलवायु के हिसाब से किस्म ले सकते हैं।
भारत दुनिया में आंवला का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती होती है। हालाँकि इसके निर्यात के मामले में कनाडा एक बड़ा देश है, इसके बाद थाईलैंड और पेरू का स्थान है। साल 2022 में आंवला का निर्यात मूल्य 3.25 अरब अमेरिकी डॉलर था जो 2021 की तुलना में 13 प्रतिशत ज़्यादा है।
भारत जापान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका और जर्मनी सहित कई देशों को आंवला प्यूरी का निर्यात करता है, यानी आने वाले समय में भी आंवले का बाज़ार अच्छा ही रहने वाला है।