पंचकुला (हरियाणा)।“देश के किसान पहले से ही दूध में मिलावट को लेकर परेशान है। वहीं एफएसएसएआई (फूड सेफ्टी स्टैडर्ड ऑथरिटी ऑफ इंडिया) अब ऐसा काम कर रही हैं जिससे किसानों की आवश्यकता ही खत्म हो जाएगी। किसान दूध लाए न लाए थोड़े से दूध से बहुत ज्यादा दूध का उत्पादन हो जाएगा और कानूनी तौर पर कोई कार्रवाई भी नहीं होगी।” भारतीय पशु कल्याण बोर्ड में सदस्य मोहन सिंह अहलूवालिया गुस्से में कहते हैं।
अहलूवालिया का यह गुस्सा एफएसएसएआई के साथ-साथ उन दूध कंपनियों से भी है जो प्राकृतिक दूध बेचने की बजाय उनमें मिनिरल, कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन की मात्रा को अलग से मिलाकर बेच रही है। मोहन सिंह कहते हैं, “आज बड़ी-बड़ी कंपनियां दूध फोर्टिफाइड की तरफ काम कर रही है। प्राकृतिक दूध से पहले से ही आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम, प्रोटीन मौजूद है और हमारे शरीर को इससे ज्यादा आवश्यकता नहीं है। तो क्यों फएसएसएआई ने इस मिलावट को अनिवार्य किया है। दूध केवल वहीं अच्छा है जो गाय-भैंस से निकल रहा है, जिसमें किसी भी तरह की मिलावट न हो।”
भोजन के साथ-साथ हमारे शरीर को प्राकृतिक रूप से विटामिन और मिनिरल की जरूरत होती है लेकिन बदलते खान-पान के दौर में शरीर में पोषक तत्वों ( विटामिन और मिनिरल) की कमी बढ़ गई है। इस कमी को दूर करने के लिए कंपनियों के बनाए विटामिन और मिनरल को खाद्य पदार्थों में प्रोसेसिंग के समय मिलाया जाता है। इससे खाद्य पदार्थों के पोषण स्तर में वृद्धि होती है। इस पूरी प्रक्रिया को ही फोर्टिफिकेशन कहा जाता है।
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मोहन सिंह कहते हैं, “मैं देश में बिकने वाले उस दूध के सख्त खिलाफ हूं जिसको गोलियां मिलाकर पिलाया जाए। इसको रोकने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं और आम जनता को सामने आना होगा। यह दूध बच्चों के लिए भी खतरनाक है क्योंकि उससे बीमारियां बढ़ेंगी।”
फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) के मुताबिक भारत में 70 प्रतिशत लोग विटामिन और मिनिरल जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का पर्याप्त उपभोग नहीं करते हैं। राष्ट्रीय पोषण संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार देश के 40 फीसदी घरों में बच्चों को मिलने वाला भोजन असंतुलित है। पांच साल से कम उम्र के 55 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से कम है। इसके अलावा लोगों के भोजन में प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, थियामीन की मात्रा लगातार घटती जा रही है। इन सभी स्थिति को देखते हुए एफएसएसएआई फूड फोर्टिफिकेशन पर जोर दे रही है।
फोर्टिफिकेशन को लेकर एफएसएसएआई ने अगस्त 2018 में नियम भी जारी किए थे। इस नियम में कंपनियों को गेहूं के आटे, चावल, दूध, नमक और खाने के तेल में फोर्टिफिकेशन के निर्देश दिए गए। कंपनियों को इसके तहत खाने के तेल और दूध में सिंथेटिक विटामिन ए और डी मिलाना होगा। एफएसएसएआई की तरफ से दूध को फोर्टिफाइड करने के मानक भी तैयार किए गए है। गाय और फुल क्रीम दूध को हटाकर टोंड दूध, डबल टोंड दूध और स्किम्ड दूध को फोर्टिफाइड करने के निर्देश है।
मोहन ने गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “भारत से पहले चीन और अमेरिका ने दूधों के संशोधन किए थे लेकिन उन्होंने ने भी इसको बंद कर दिया था। अभी टाटा ट्रस्ट और एफएसएसएआई ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर दूध को फोर्टिफाइड करने के निर्देश दिए है, जिस पर काम भी किया जा रहा है।” सरकार को दोषी ठहराते हुए वह आगे कहते हैं, “देश में मिलावटी दूध को अनिवार्य किया जा रहा है। सरकार दूध को खत्म करने की तैयारी में है।किसान दूध न बेचे मिलावट का दूध बिके और मशीन से बिके। सरकार कहती हैं रिच प्रोटीन युक्त दूध पीएं। मेरे हिसाब से रिच प्रोटीन वो है जो गाय-भैंस के दूध से मिलता है। न कि दवायुक्त दूध।”
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अहलूवालिया पिछले कई वर्षों से देश में दूध के दाम बढ़ाने और मिलावटी दूध को रोकने के लिए गांव की गलियों से दिल्ली की सड़कों तक विरोध कर चुके हैं। भारतीय पशु कल्याण बोर्ड में सदस्य के साथ-साथ उन्होंने गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी समिति बनाई, जिसमें आज कई राज्यों के पांच लाख किसान हैं। इस समिति में किसान दूध की शुद्वता की बदौलत देश में ही नहीं बल्कि विदेंशों में भी दूध को अच्छी कीमत पर बेच रहे हैं।
वह कहते हैं, “आज से 5 हजार पहले भी ऐसे ही एक माफिया के हाथ में आया था जब भगवान श्री कृष्ण ने दूध को कंस से आजाद कराया था। भगवान श्री कृष्ण को मारने गई पूतना का दूध अब पूरा देश इस फोर्टिफाइड के रुप में पीएगा। क्योंकि सरकार ने खुद केमिकल दूध मे डालकर दूध को लिगल किया है। हम इसको रोकने का लगातार प्रयास कर रहे है। दूध मतलब गाय-भैंस का दूध उससे ही गाँव समृद्व होगा।”
देश में दूध उत्पादन कम खपत ज्यादा
देश में जितना दूध उत्पादन होता है उससे कही ज्यादा खपत है। इस खपत को पूरा करने के लिए मिलावटी दूध का करोबार तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2018 में मोहन सिंह ने खुद कहा था कि देश में बिकने वाले करीब 68.7 प्रतिशत दूध और दुग्ध उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।
सिंबल से होती है फोर्टिफाइड दूध की पहचान
देश में तमाम दूध और उससे उत्पाद बनाने वाली कंपनियों ने फोर्टिफाइड दूध बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। बिकने वाले दूध के पैकेट़्स पर एफ का सिंबल बना होता है, जो दूध के फोर्टिफाइड होने की पहचान है।
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दवायुक्त दूध किसानों के लिए बनेगा घाटे का सौदा
अहलूवालिया कहते हैं, “केमिकल युक्त दूध किसानों की आत्महत्याओं को और तेजी से बढ़ाएगा क्योंकि फसल से साल में दो बार पैसा आता हैऔर दूध से दिन में दो बार पैसा आता है। किसान की बेसिक कमाई खत्म हो जाएगी। थोड़े से दूध से दवाईयां मिलाकर ज्यादा दूध उत्पादन हो जाएगा।”
बड़ी कंपनियों को मिलेगी मिलावट करने की परमिशन
दूध को फोर्टिफाइड करने के बाद मिलावट कैसे बड़े स्तर पर बढ़ेगी इसके बारे में मोहन बताते हैं, “जो मिलावट अभी छोटी-छोटी कंपनियां कर रही है। वह अब बड़े स्तर पर चलेगी क्योंकि सरकार मिलावट को लिगल कर देगी तो मिलावट को कोई पकड़ेगा नहीं और जो नई पीढ़ी है वो ये जानती नहीं है कि दूध उन तक पहुंचता कैसे है।”