एक साल से खुरपका और मुंहपका का टीका न लगने से यूपी में हो रही दुधारू पशुओं की मौत

लगभग एक साल हो गया है और उत्तर प्रदेश के जिलों को खुरपका व मुंहपका बीमारी (एफएमडी) के लिए टीके की खुराक का अपना हिस्सा अभी तक नहीं मिला, कुछ जिलों से इस बीमारी के फैलने की सूचना है और किसान अपने मवेशियों को भी खो रहे हैं।
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सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। डेयरी किसान श्वेतांक त्रिपाठी ने पिछले तीन महीनों में अपने 10 दुधारू पशुओं में से आठ को खुरपका व मुंहपका बीमारी (एफएमडी) से खो दिया है। उन्हें इस घातक संक्रमण से और पशुओं को भी खोने का डर है। इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है, बस पशुओं को टीका लगना चाहिए, संक्रमित पशुओं की मृत्यु दर केवल पांच प्रतिशत है।

“मेरे जानवरों को खुरपका-मुंहपका का टीका नहीं लगाया गया था। पिछले साल भी जानवरों का टीकाकरण नहीं किया गया था क्योंकि हर कोई कोरोना से ग्रसित था, “सीतापुर के रेउसा ब्लॉक के सिकोहा गांव के रहने वाले श्वेतांग त्रिपाठी ने गांव कनेक्शन को बताया। “इन जानवरों की मौत से मुझे लगभग पांच लाख रुपये का नुकसान हुआ है। मुझे उम्मीद है कि दूसरे पशुओं को बिना किसी देरी के टीका लगाया जाएगा, “चिंतित किसान ने कहा, जोकि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर दूर रहते हैं।

श्वेतांक अकेले की यह शिकायत नहीं है, जब गांव कनेक्शन ने प्रदेश के दूसरे जिलों के डेयरी किसानों और पशु चिकित्सा अधिकारियों से बात की, तो पता चला कि पिछले एक साल से मवेशियों का टीकाकरण ठप हो गया है। लगभग एक साल से एफएमडी वैक्सीन की आपूर्ति ही नहीं की गई है। जबकि, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार, मवेशियों को हर छह महीने में एक बार एफएमडी वैक्सीन लगाने की आवश्यकता होती है।

गांव कनेक्शन ने प्रदेश के सीतापुर, बाराबंकी, उन्नाव, लखीमपुर खीरी और मिर्जापुर जिलों में पशु चिकित्सा अधिकारियों से बात की और उन सभी ने माना कि उन्हें लगभग एक साल से एफएमडी के टीके नहीं मिले हैं।

एफएमडी टीकाकरण की कमी ने राज्य के कुछ जिलों में पैर और मुंह की बीमारी के प्रकोप में तब्दील कर दिया है। इसका प्रकोप उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में अधिक महत्वपूर्ण है जहां मेरठ और बदायूं जिलों ने आधिकारिक तौर पर एफएमडी के प्रकोप की सूचना दी है।

13 अप्रैल, 2021 को मेरठ के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा दिए गए सूचना के अधिकार (आरटीआई) के अनुसार, जिले के कुल 36 गांवों ने एफएमडी के प्रकोप की सूचना दी गई।

साथ ही, पशुपालन विभाग द्वारा 23 जून, 2021 को दिए गए एक अलग आरटीआई में यह खुलासा हुआ कि मेरठ में 427 जानवर जबकि बदायूं में 167 जानवर एफएमडी से संक्रमित पाए गए।

एफएमडी उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम

सितंबर, 2019 में, केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पांच साल (2019-20 से 2023-24) के लिए 13,343.00 करोड़ (13.343 बिलियन) के वित्तीय परिव्यय के साथ एफएमडी और ब्रुसेलोसिस के लिए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ नाम से एक योजना शुरू की।

इस योजना का उद्देश्य एफएमडी और ब्रुसेलोसिस (एक जीवाणु संक्रमण) के खिलाफ देश भर में 100 प्रतिशत मवेशियों, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर की आबादी का टीकाकरण करना है।

एफएमडी रोग पशुधन की एक ‘गंभीर, अत्यधिक संक्रामक वायरल बीमारी है जिसका महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ता है’। इसके प्रकोप में आने से जीभ और होठों पर, मुंह में और जानवरों के खुरों के बीच छाले जैसे घाव हो जाते हैं।

पेरिस स्थित वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (OIE) के अनुसार, एफएमडी रोग से उत्पादन में गंभीर नुकसान होता है, और जब अधिकांश संक्रमित जानवर ठीक हो जाते हैं, तो यह बीमारी अक्सर उन्हें कमजोर और दुर्बल बना देती है। यह जानवरों से इंसानों में संचारित नहीं होता है।

राष्ट्रीय योजना 2019 में 50,000 करोड़ रुपये के नुकसान को रोकने और किसानों के आर्थिक उत्पादन को बढ़ाने’ के लिए शुरू की गई थी। प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा 31 दिसंबर, 2019 को जारी बयान में कहा गया है, “इन बीमारियों के उन्मूलन के लिए मिशन मोड दृष्टिकोण दुनिया के किसी भी देश में किसी भी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए मानव या पशु टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए सबसे बड़ा कदम है।”

लेकिन एफएमडी का टीका कहां है?

बेहटा प्रखंड के सीतापुर के भवानीपुर गांव के एक पशुपालक राम गोपाल शर्मा ने भी अपने पशुओं को एफएमडी में खो दिया है।

“मेरे पास 24 गायें थीं। उनमें से दो की खुरपका के कारण मौत हो गई। जैसे ही अन्य गायों में संक्रमण फैलने लगा, मैंने निजी इस्तेमाल के लिए दो गायों को छोड़कर अपने सभी मवेशियों को बेच दिया।” शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि गायों को पिछले साल एक बार टीका लगाया गया था, लेकिन तब से उनका टीकाकरण नहीं हुआ है।

बरसात का मौसम जानवरों में संक्रमण की अनुकूलतम स्थिति प्रदान करता है। गांवों में मवेशियों को पैर और मुंह की बीमारी के खिलाफ समय पर टीकाकरण की आवश्यकता होती है, जिसे स्थानीय रूप से ‘मुंहपका’ और ‘खुरपका’ के नाम से जाना जाता है। लेकिन, अब लगभग एक साल हो गया है और मवेशियों का टीकाकरण नहीं हुआ है। किसान अपने मवेशियों को खो रहे हैं और भारी नुकसान उठा रहे हैं।

जब गांव कनेक्शन ने मेरठ में डेयरी किसानों से संपर्क किया, जहां इस साल अप्रैल में एफएमडी के संक्रमण की सूचना मिली थी, तो उन्होंने क्षेत्र में पशु व्यापारियों द्वारा बहिष्कार की आशंका का हवाला देते हुए स्थिति पर बात करने से इनकार कर दिया।

जिला पशु चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि एफएमडी वैक्सीन नहीं मिली

जब गांव कनेक्शन ने जिले में एफएमडी टीकाकरण की कमी पर सीतापुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (सीवीओ) की प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने बताया कि जिले को अभी तक टीका नहीं मिला है। “जिले में 1,154,000 मवेशी हैं, जिनमें से 800,000 दुधारू हैं, लेकिन हमें गलघोटू रोग के लिए केवल 53,000 जाब्स मिले हैं। हमें अभी तक एफएमडी की एक भी खुराक नहीं मिली है, “प्रभात कुमार सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।

साथ ही, सीतापुर के उप पशु चिकित्सा अधिकारी, मानव ने गांव कनेक्शन को बताया कि एफएमडी टीकाकरण आखिरी बार नवंबर 2020 में जिले में किया गया था। उन्होंने कहा, “अब तक एफएमडी टीकाकरण नहीं हुआ है।”

उन्नाव जिले में, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि पिछली बार एफएमडी के खिलाफ मवेशियों को सितंबर 2020 में टीका लगाया गया था। “हम इस साल सितंबर में एफएमडी के खिलाफ जानवरों का टीकाकरण शुरू करेंगे।” प्रमोद कुमार सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।

इस बीच, बाराबंकी के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने सिंह की जानकारी से सहमति जताई और कहा कि पिछले साल सितंबर में जिले में एफएमडी का टीका लगाया गया था। मार्कंडेय पांडे ने गांव कनेक्शन को बताया, “फिलहाल एफएमडी का टीका उपलब्ध नहीं है।”

इन टीकों की कमी सीतापुर के पड़ोसी जिले लखीमपुर खीरी में भी है।

लखीमपुर के उप पशु चिकित्सा अधिकारी साकेत यादव ने गांव कनेक्शन को जानकारी दी कि जिले में मवेशियों को पिछले साल एफएमडी वैक्सीन की एक खुराक मिली थी, लेकिन दूसरी खुराक कोविड-19 के कारण छूट गई थी।

“एफएमडी वैक्सीन इस साल भी उपलब्ध नहीं है। जैसे ही हमें मिलेगी, हम मवेशियों का टीकाकरण करेंगे। हम इस समय गलघोटू के बचने के लिए जानवरों का टीकाकरण कर रहे हैं, “उन्होंने कहा।

इस बीच बाढ़ से हुए नुकसान से जूझ रहे मिर्जापुर जिले में मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि जिले को गलघोटू रोग की 290,000 शीशियां मिली हैं लेकिन एफएमडी का टीका अभी तक उपलब्ध नहीं है।

“टीके की बारह सौ खुराक हर क्षेत्रीय पशु चिकित्सा केंद्र में भेजी गई हैं। लेकिन हमें अभी तक एफएमडी के लिए शीशियां नहीं मिली हैं, “विवेकानंद पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया।

घटिया एफएमडी वैक्सीन को दोषी ठहराया जाए?

20 नवंबर, 2020 को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश की राज्य सरकारों को लिखे एक पत्र में, उपमन्यु बसु, संयुक्त सचिव, केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया कि इन राज्यों को पहले आपूर्ति की गई एफएमडी टीके विफल हो गए हैं। गुणवत्ता परीक्षण किया और इन राज्यों को अपने टीकाकरण अभ्यास को रोकने का निर्देश दिया।

“एफएमडी टीकों के कुछ नमूनों के गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण के परिणाम प्रमुख, जैविक मानकीकरण प्रभाग, आईसीएआर-आईवीआरआई से प्राप्त हुए हैं, जहां से यह पाया गया है कि इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा निर्मित एफएमडी वैक्सीन के तीन बैच और आपके राज्य सहित विभिन्न राज्यों को नेफेड द्वारा आपूर्ति की गई खरीद के लिए टेंडर में निर्धारित गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं किया, “बसु ने पत्र में उल्लेख किया।

उन्होंने कहा, “इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि यदि टीकाकरण पहले ही हो चुका है तो कृपया टीकाकरण रोक दें / फिर से टीकाकरण करें।”

इस बीच, पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में, एफएमडी टीकाकरण चल रहा है। मध्य प्रदेश के सतना जिले के पशुपालन और डेयरी विभाग ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले ने एफएमडी के खिलाफ ’99 फीसदी’ पशुओं का टीकाकरण किया है।

सतना में कुल 82,4060 मवेशी हैं। हमने 1 अगस्त, 2020 को जिले के 90 प्रतिशत पशुओं का टीकाकरण करने का अभियान शुरू किया था। सतना के पशु चिकित्सालय के अतिरिक्त प्रबंधक महेंद्र कुमार वर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि हमने अब तक लगभग 99 प्रतिशत पशुओं का टीकाकरण किया है।

मिर्जापुर से बृजेंद्र दुबे, सतना से सचिन तुलसा त्रिपाठी, उन्नाव से सुमित यादव और बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह के इनपुट के साथ

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