एक बार फिर असम में सुअर पालकों को बर्बाद कर रहा अफ्रीकन स्वाइन फीवर

एक बार फिर असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सुअरों की मौत हो रही है, पिछले साल भी यहां पर लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। पशुपालकों का कहना है कोविड-19 की तरह ही अफ्रीकन स्वाइन फीवर की भी दूसरी लहर आ गई है।
african swine fever

अभी एक हफ्ते पहले तक जिस फार्म पर 400 से ज्यादा सुअर थे, वहां पर सन्नाटा छाया हुआ है। क्योंकि अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि होने के बाद सुअरों को मार दिया गया, ताकि आसपास के सुअरों में एएसफ का संक्रमण न फैल जाए।

असम के कार्बी आंगलोंग जिले के निहांग रोंगकेथे गाँव की रहने वाली रोजमेरी रोंगफारपी ने साल 2007 में पैशनेट मल्टीफार्म शुरू किया था। अपने फार्म में सुअर के साथ ही बकरी और बटेर पालन भी करती हैं, लेकिन पिछले चार-पांच दिनों में उनका सब कुछ बर्बाद हो गया।

53 वर्षीय रोजमेरी गांव कनेक्शन से बताती हैं, “शुरू में एक-एक दो-दो करके सुअर मर रहे थे, फिर एनिमल हस्बैंडरी डिपार्टमेंट में इसकी जानकारी दी, 17 तारीख को सैंपल ले गए, रिपोर्ट में फार्म के सुअरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर होने का पता चला, 24 अगस्त को सारे सुअरों की कलिंग कर दी गई।”

अफ्रीकन स्वाइन फीवर आउटब्रेक से पहले अपने फार्म में रोज मेरी

सुअर पालन के लिए रोज मेरी को कई बार सम्मानित भी किया गया है, लेकिन देखते ही देखते उनका पूरा फार्म खाली हो गया। “बहुत दुखी हूं मैं, इतने साल की मेहनत दो-चार दिन में खत्म हो गई, 400 सुअरों में 50 से ज्यादा फीमेल सुअर प्रेंगनेंट भी थीं, लेकिन सबको मारना पड़ा, “भर्राई आवाज में रोज मेरी ने कहा।

यह पहली बार नहीं है जब असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सुअरों की मौत हुई है, पिछले एक साल में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से असम के ज्यादातर फार्म खाली हो गए हैं। अब तो यहां पर दोबारा फार्म शुरू करने से भी लोग डरने लगे हैं कि कहीं दोबारा शुरू किया और अफ्रीकन स्वाइन फीवर से उन्हें फिर न नुकसान उठाना पड़ जाए।

कार्बी आंगलोंग के जिला पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ दिलीप महंत बताते हैं, “कार्बा आंगलोंग जिले में पिछले साल भी एएसएफ रिपोर्ट हुआ था, लेकिन इतने ज्यादा मात्रा में कलिंग पहली बार हुई। जैसे ही हमें पता चला हमने तुरंत सैंपल जांच के लिए भेज दिया। सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद हमें रोज मेरी के फार्म में कलिंग करनी पड़ी, नहीं तो दूसरे फार्म में यह बीमारी पहुंच जाती। अब रोजमेरी को सरकारी नियमों के हिसाब से मुआवजा दिया जाएगा।”

अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पशुओं की कलिंग करते पशुपालन विभाग के कर्मचारी।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित सुअरों को मार दिया जाता है, जिसके बाद पशु पालक को मुआवजा दिया जाता है। सुअरों को मारने वाले मुआवजे में 50 प्रतिशत केंद्र और 50 प्रतिशत राज्य सरकार देती है। केंद्र सरकार ने सुअरों के लिए अलग-अलग मुआवजा निर्धारित किया है। छोटे सुअर जिनका वजन 15 किलो तक होगा, उनके लिए 2200 रुपए, 15 से 40 किलो वजन के सुअर के लिए 5800 रुपए, 40 से 70 किलो वजन के सुअर के लिए 8400 रुपए और 70 से 100 किलो तक के सुअर को मारने पर 12000 हजार रुपए दिया जाता है।

कार्बी आंगलोंग की तरह ही लखीमपुर, शिवसागर, ढेमाजी, दारांग, जैसे कई जिलों में पिछले एक-दो महीने में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि हो गई है। ऐसे में जब पूर्वोत्तर के हजारों किसानों के आय का जरिया ही सुअर पालन है, किसानों को डर है कि कहीं उनके भी फार्म पर यह बीमारी न फैल जाए।

पशुओं के मारने के बाद खाली पड़ा रोज मैरी का फार्म।

पिछले साल अगस्त महीने में ही डिब्रुगढ़ जिले के खोवांगघाट में पिथुबार फार्म चलाने वाले दिगांत दिगांत सैकिया के यहां भी 250 सुअरों को मार दिया गया था। इस साल एक बार फिर अफ्रीकन स्वाइन फीवर की संक्रमण बढ़ने से लोगों में डर बढ़ गया है।

इस साल मिजोरम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से काफी नुकसान हुआ है, पशुपालन विभाग, मिजोरम के अनुसार राज्य में सबसे पहले 21 मार्च को अफ्रीकन स्वाइन फीवर के संक्रमण से सुअर की मौत हुई थी, उसके बाद यह सिलसिला बढ़ता गया। पशुपालन विभाग के अनुसार मिजोरम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से 10000 से ज्यादा सुअरों की मौत हुई है।

नॉर्थईस्ट प्रोग्रेसिव पिग फ़ार्मर्स एसोसिएशन के सचिव तिमिर बिजॉय श्रीकुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “असम में पिछले साल ही बहुत नुकसान हो गया था, इस बार फिर तेजी अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैलने लगा है। जिस तरह से कोविड की पहली लहर आयी और फिर दूसरी, समझिए इसी तरह से असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की भी दूसरी लहर आ गई है।”

वो आगे कहते हैं, “असम ही नहीं नार्थ ईस्ट के ज्यादातर प्रदेशों में एएसएफ को रिपोर्ट किया गया है। मिजोरम में अभी भी सुअरों की मौत हो रही है, इसके साथ ही त्रिपुरा, मेघालय से भी खबरें आ रही हैं। अभी मणिपुर से एएसएफ की कोई खबर नहीं आयी है। लेकिन जिस तरह से सुअरों की मौत हो रही है और लोगों का नुकसान हो रहा है, आने वाले समय में दोबारा फार्म शुरू करने से डर रहे हैं।”

20वीं पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे में जब पूरे देश में सुअरों की संख्या में कमी आयी थी, असम में इनकी संख्या में इज़ाफा हुआ था। 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में सुअरों की आबादी 103 करोड़ थी, जो 20वीं पशुगणना के दौरान घटकर 91 करोड़ हो गई। असम में 19वीं पशुगणना के दौरान 16.4 करोड़ सुअर पाए गए, 20वीं पशुगणना के दौरान इनकी संख्या 21 करोड़ हो गई। लेकिन जिस तरह से अफ्रीकन स्वाइन फीवर तबाही मचा रहा है, इनकी संख्या एक बार फिर कम हो सकती है।

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