देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी हुई है, सरकार भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई सारी योजनाएं चला रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कई पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है तो कई की संख्या में गिरावट भी आयी है।
केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन तथा डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने 12 मई को 20वीं पशुधन गणना के आधार पर नस्ल के अनुसार पशुधन और पोल्ट्री रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में एनबीएजीआर (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा पंजीकृत 19 चयनित प्रजातियों की 184 मान्यता प्राप्त स्वदेशी / विदेशी और संकर नस्लों को शामिल किया गया है।
Hon’ble Union Minister @PRupala ji lauded the efforts of Statistics Dept,DAHD for preparing and publishing the Breed-wise Report of Livestock and Poultry based on 20th Livestock Census,in the august presence of Hon. MoS Shri @Murugan_MoS and Secretary, Shri @atul1chaturvedi pic.twitter.com/tMYb8yWckA
— Ministry of Fisheries, Animal Husbandry & Dairying (@Min_FAHD) May 13, 2022
पिछले 6 वर्षों में देश में देसी नस्ल की गायों की संख्या में 5.5% गिरावट आयी है। 2013 में हुए 19वें पशुधन सर्वे में देश में 79% देसी नस्लें थीं। 2019 के 20वें पशुधन सर्वे में देसी नस्ल की गाय 73.5% रह गईं। पशुधन में गाय ही घटी हैं। 19वें सर्वे में गायें 37.3% थीं, जो 20वें सर्वे में 36% पर आ गया।
जबकि विदेशी और संकर किस्म की गायों की संख्या में इजाफा हुआ है। जर्सी, संकर जर्सी और एचएफ जैसी गोवंश की संख्या 2013 में कुल गोवंश का 21% थी जो 20वीं पशुगणना के हिसाब से 2019 में 26.5% हो गया है।
हरियाणा नहीं अब देश में सबसे अधिक है गिर नस्ल के गोवंश
गायों की शीर्ष दस नस्लों की बात करें 20वीं पशुगणना के हिसाब से देश में पहले नंबर पर गिर गाय है, जबकि 19वीं पशुगणना के हिसाब से से देश में पहले नंबर पर हरियाणा नस्ल की गाय थी।
पशुधन गणना के आधार पर नस्ल के अनुसार पशुधन और पोल्ट्री रिपोर्ट के अनुसार देश में देसी गायों में सबसे अधिक संख्या गिर की है, पहले नंबर पर गिर (68,57,784), जिसकी 4.8% हिस्सेदारी, दूसरे नंबर पर लखीमी (68,29,484), जिसकी हिस्सेदारी 4.8%, तीसरे नंबर पर साहिवाल (59,49,674), जिसकी हिस्सेदारी 4.2%, चौथे नंबर पर बचौर (43,45,940), जिसकी हिस्सेदारी 3.1%, पांचवे नंबर पर हरियाणा (27,57,186), जिसकी हिस्सेदारी 1.9% है।
असम की लखीमी नस्ल की गाय दूसरे पायदान पर है, जबकि पिछले सर्वे के 37 नस्लों में वह शामिल ही नहीं थी। नए सर्वे में कुल गोधन में लखीमी गाय की भागीदारी 4.8% है। बिहार और झारखंड में पाई जाने वाली बच्चौर नस्ल की गायों की संख्या करीब तीन गुना बढ़ी है। इनमें से 77% झारखंड और 23% बिहार में हैं।
अन्य नस्लों जैसे कि कांकरेज और कोसली का भी कुल स्वदेशी मवेशियों में से प्रत्येक का 1% से अधिक योगदान है। अन्य सभी मान्यता प्राप्त नस्लें मिलकर कुल मवेशी आबादी का 8.1% योगदान करती हैं। देश में देसी गोवंश की संख्या 14,21,06,466 है।
सबसे कम संख्या वाली गायों की बात करें तो बेलाही नस्ल की गायों की संख्या सबसे कम 5,264 है। दूसरे नंबर पर पुंगनूर (13,275) तीसरे नंबर पर पलीकुलम (13,934) चौथे पर वेचुर (15181) और पांचवे नंबर पर मेवाती (15,181) है।
14 देसी नस्लों में वृद्धि दर्ज की गई है- वेचुर (512%), पुंगनूर, (369%), बरगुर (240%), बचौर (181%), कृष्णा घाटी (57%), पुलिकुलम, (38%), सिरी (36%), गिर (34.12%), अमृतमहल (31%), साहीवाल (22%), ओंगोल (11%), लाल सिंधी (10%), निमारी (6) और पोनवार (2.46%) नस्ल के पशुओं में वृद्धि दर्ज की गई है.
देश में पहले नंबर पर बरकरार है मुर्रा
देश में भैंसों की देसी नस्लों में 2.03% की कमी आयी है, जबकि Non-descript यानी अवर्गीकृत नस्लों में 2.03% की वृद्धि हुई है। साल 2013 में देसी नस्लों की संख्या 6,15,59,809 थी, जबकि अवर्गीकृत नस्लों की संख्या 4,71,42,313 थी, वहीं पर अब 2019 में भैंस की देसी नस्लों की संख्या 6,00,04,846 और अवर्गीकृत नस्लों की संख्या 4,98,46,832 है।
कुल भैंसों की बात करें तो 2013 में 10,87,02,122 थी जोकि 10,98,51,678 है।
नस्ल वार भैंसों की संख्या की बात करें तो पहले नंबर पर मुर्रा बरकरार है 4,70,65,448, जिसकी हिस्सेदारी 42.8% है, दूसरे नंबर पर मेहसाना (43,78,788 ) जिसकी हिस्सेदारी 4%, तीसरे नंबर पर सुर्ती (24,52,362 ) जिसकी हिस्सेदारी 2.2%, चौथे नंबर पर जाफराबादी (21,39,127 ) जिसकी हिस्सेदारी 1.9 %, पांचवें नंबर पर भदावरी(19,81,852 ) जिसकी हिस्सेदारी 1.8% है।
भेड़ों में सबसे अधिक है नेल्लोर नस्ल की संख्या
भेड़ में 3 विदेशी और 26 देशी नस्लें पाई गईं। शुद्ध विदेशी नस्लों में कोरिडेल नस्ल का योगदान प्रमुख रूप से 17.3 प्रतिशत है और स्वदेशी नस्लों में नेल्लोर नस्ल का योगदान 20.0 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ श्रेणी में सबसे अधिक है।
स्वदेशी में सबसे अधिक संख्या नेल्लोर नस्ल की है 1,40,43,835, जिसका योगदान 20% है, दूसरे नंबर पर बेल्लारी नस्ल (42,75,218) है, जिसका योगदान 6.1% है, तीसरे नंबर पर मारवाड़ी नस्ल है (28,70,057), जिसका योगदान 4.1%, चौथे नंबर पर डेक्कानी नस्ल (23,83,932 ) है, जिसका योगदान 3.4% है, पांचवें नंबर पर केंगुरी नस्ल (12,86,284 ) जिसका योगदान 1.8 % है।
रिपोर्ट में और क्या है खास
रिपोर्ट में 41 मान्यता प्राप्त स्वदेशी मवेशी हैं जबकि 4 विदेशी/संकर नस्लें शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार कुल मवेशियों की आबादी में विदेशी और संकर पशु का योगदान लगभग 26.5 प्रतिशत है जबकि 73.5 प्रतिशत स्वदेशी और बिना वर्ग के मवेशी हैं।
कुल विदेशी/संकर मवेशियों में संकर होल्स्टीन फ्राइज़ियन (एचएफ) के 39.3 प्रतिशत की तुलना में संकर जर्सी का हिस्सा 49.3 प्रतिशत है।
कुल देशी मवेशियों में गिर, लखीमी और साहीवाल नस्लों का प्रमुख योगदान है।
भैंस में मुर्रा नस्ल का प्रमुख योगदान 42.8 प्रतिशत है, जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पाया जाता है।
भेड़ में 3 विदेशी और 26 देशी नस्लें पाई गईं। शुद्ध विदेशी नस्लों में कोरिडेल नस्ल का योगदान प्रमुख रूप से 17.3 प्रतिशत है और स्वदेशी नस्लों में नेल्लोर नस्ल का योगदान 20.0 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ श्रेणी में सबसे अधिक है।
देश में बकरियों की 28 देशी नस्लें पाई गई हैं। ब्लैक बंगाल नस्ल का योगदान 18.6 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है।
विदेशी/संकर सूअरों में संकर नस्ल के सुअर का योगदान 86.6 प्रतिशत है, जबकि यॉर्कशायर का योगदान 8.4 प्रतिशत है। स्वदेशी सूअरों में डूम नस्ल का योगदान 3.9 प्रतिशत है।
घोड़ा तथा टट्टुओं में मारवाड़ी नस्ल का हिस्सा प्रमुख रूप से 9.8 प्रतिशत है।
गधों में स्पीति नस्ल की हिस्सेदारी 8.3 प्रतिशत है।
ऊँट में बीकानेरी नस्ल का योगदान 29.6 प्रतिशत है।
कुक्कुट, देसी मुर्गी में, असील नस्ल मुख्य रूप से बैकयार्ड कुक्कुट पालन और वाणिज्यिक कुक्कुट फार्म दोनों में योगदान करती है।