गोवा में जहाँ कुछ साल पहले तक पूरी बंजर ज़मीन थी; आज वहाँ दर्जनों तरह की फ़सले लहलहाती हैं। इन पेड़-पौधों और फसलों को उगाने के लिए किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। तभी तो इस बंजर ज़मीन को हरा-भरा बनाने के लिए संजय अनंत पाटिल को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ऐसा नहीं है कि पोंडा तालुका के सावोई वेरेम गाँव के रहने वाले 59 वर्षीय संजय पाटिल शुरु से किसान बनना चाहते थे; जब वो 11वीं कक्षा में थे तभी उनके पिता को हार्ट अटैक आ गया। इसके बाद उन्होंने खेती में कदम रखा।
संजय बताते हैं, “लगभग 40 वर्ष हो गए इस बगीचे में काम करते हुए; पिताजी की तबीयत बिगड़ गई उनको दिल का दौरा आ गया, इससे मुझे शिक्षा छोड़नी पड़ी और बगीचे में ही काम करने की शुरुआत की और यह करते-करते इस बगीचे में बहुत कुछ सीखने को मिला फिर प्राकृतिक खेती की शुरुआत की।”
वो आगे कहते हैं, “हमने यह जीवामृत बनाना शुरू किया, हमारे पास साहीवाल नस्ल की गाय है, जिसके गोबर से हम तरह-तरह के खाद बनाते हैं; मैं आईसीएआर से जुड़ा हूँ तो यहीं से मुझे जानकारी मिलती रहती है।”
वह एक देशी नस्ल की गाय के गोबर और मूत्र से प्रति माह 5000 लीटर जीवामृत का उत्पादन करते हैं। उन्होंने अपने अभ्यास से साबित कर दिया है कि एक ग्राम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किए बिना एक देशी गाय 10 एकड़ भूमि की खेती के लिए पर्याप्त है। संजय ने उत्पादन में तेजी लाने और बढ़ाने के लिए एक स्वचालित जीवामृत उत्पादन संयंत्र का डिजाइन और निर्माण भी किया। उन्होंने प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने से उत्पादन लागत में 60-70 प्रतिशत की कमी देखी और प्रति वर्ष 3 लाख रुपये की बचत के साथ उनकी फसल की उपज में 25-30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
जीवामृत के कारण वो बाहर से एक भी पैसे का खाद और कीटनाशक कोई भी ऑर्गेनिक मटेरियल फॉर्म नहीं लाते हैं। वो आगे कहते हैं, “आईसीएआर के वैज्ञानिक डॉक्टर प्रवीण कुमार और उनकी सब टीम का बहुत धन्यवाद करते हैं; क्योंकि उन्होंने हमको जो कुछ मदद चाहिए वह बार-बार देते रहे।”
आज उनके गाँव और आसपास के गाँव में लोग उन्हें संजय काका के नाम से जानते हैं। उनके यहाँ अब दूसरे किसान भी जानकारी लेने आते रहते हैं। 9 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री से सम्मानित किया। पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद उन्होंने कहा, “ये जो पद्मश्री मिला है, नेचुरल फार्मिंग की प्रैक्टिस से मिला है, इसके लिए मैं केंद्र सरकार और गोवा सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूँ।”
President Droupadi Murmu presents Padma Shri in the field of Agriculture to Shri Sanjay Anant Patil. He is an innovative farmer practising natural farming, and has adopted zero-energy micro-irrigation systems. Shri Patil dug a tunnel single-handedly on the hill of his farm to… pic.twitter.com/vP0tB1ngYC
— President of India (@rashtrapatibhvn) May 9, 2024
संजय ने जब खेती शुरुआत की तो कई मुश्किलें भी आईं, क्योंकि इधर तीनों तरफ से पहाड़ है, बाद में सोचा खेती करना है तो पानी की जरूरत है। पाटिल ने मुख्य रूप से मानसून के बाद अपने खेत की पहाड़ी पर 125 फीट लंबी सुरंग (सुरंग) खोदकर पानी की कमी की बड़ी चुनौती पर काबू पा लिया। इसके अलावा, उन्होंने वर्षा जल के संग्रहण के लिए खेत के आसपास की पहाड़ियों में अकेले कई रिसाव खाइयां बनाई हैं, जिससे पानी की कमी नहीं होती है।
वो आगे कहते हैं, “सर्विस वाले लोगों को भी बहुत तकलीफ होती है, लेकिन मैं गर्व से कहता हूँ कि कृषि क्षेत्र से मैंने मेरे दोनों बच्चों को बहुत अच्छी तरह से पढ़ाया; मेरा बेटा इंजीनियर हुआ और बेटी ग्रेजुएशन कर के उसने योग की पढ़ाई करके अपने फील्ड में अच्छा काम कर रही है और यह सब एक कृषि के इनकम से ही हुआ है।”
इससे पहले संजय पाटिल को गोवा सरकार द्वारा कृषिरत्न पुरस्कार-2014 और आईएआरआई-इनोवेटिव फार्मर अवार्ड-2023 जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं।