देश के चीनी उद्योग में जान फूंक सकती है उत्तर प्रदेश की ये पहल

अखिलेश यादव

लखनऊ। भारत में चीनी उद्योग और गन्ना किसानों के घाटों में रहने की एक बड़ी वजह है हम गन्ने के बाय प्रोडक्ट (सह उत्पाद) का इस्तेमाल सही तरीके नहीं कर पाते। ऐसे में उत्तर प्रदेश में फिनलैंड और ब्राजील की तर्ज पर शीरे के साथ खोई से भी ऐथनाल बनाने का प्रयास होने जा रहा है, जो इस उद्योग में ऑक्सीजन का काम कर सकता है। क्योंकि अब चीनी मिलें ये नहीं कह पाएंगी कि उन्हें घाटा हो रहा है।

गन्ने के बेकार पदार्थ समझे जाने वाले शीरा और खोई अब चीनी उद्योग को घाटे से उबार कर फायदे का सौदा बनेंगे। शीरे से औषधीय उत्पाद भी बनाए जाएंगे। इसके साथ ही चीनी मिलों को बिजली का केंद्र बनाया जाएगा। यूपी सहकारी चीनी मिल्स संघ ने कुछ विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर इस पर काम शुरु कर दिया है।

भारत में अभी चीनी मिल का मतलब चीनी बनाना ही है। जबकि विदेशों में शीरे के साथ वैगास (खोई) से भी एथनॉल बनाया जा रहा है। मेडिशनल प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं। अब हम लोग भी यही करने वाले है ताकि चीनी मिल सिर्फ चीनी पर निर्भर न रहें।

डॉ. बीके यादव, प्रबंध निदेशक , यूपी सहकारी चीनी मिल्स संघ लिमिटेड

“भारत में अभी चीनी मिल का मतलब चीनी बनाना ही है। बहुत मामूली स्तर पर एथेनाल और बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। विदेशों में शीरे के साथ वैगास (खोई) से भी एथनॉल बनाया जा रहा है। मेडिशनल प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं। अब हम लोग भी यही करने वाले है ताकि चीनी मिल सिर्फ चीनी पर निर्भर न रहें, वो एथनाल और दूसरे प्रोडक्ट बेचकर मुनाफा कमाएं।” उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल्स संघ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक डॉ. बीके यादव बताते हैं।

पिछले दिनों विश्व की चीनी उद्योग से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ सुगर केन टेक्नलॉजिस्ट की थाईलैंड में हुई 29वीं कांग्रेस में शामिल होकर लौटे डॉ. यादव बताते हैं, “केन्या और युगांडा, फिनलैंड समेत कई देश गन्ने के बाई प्रोडक्ट से 13-13 प्रोडक्ट बना रहे हैं। कैंसर जैसी दवाएं उसमें शामिल हैं। हम लोग इस संबंध में कई रिसर्च संस्थाओं से बात कर रहे हैं।” थाईलैंड में 40 देशों के 1600 लोगों के सामने यूपी का एक सफल पेपर पेश करने वाली यूपी सहकारी चीनी मिल संघ लिमिटेड देश की पहली संस्था बन गई है। इस पेपर को 2015-16 में चीनी क्षेत्र में हुए सुधार को डॉ. बीके यादव और मुख्य रसायन विद सुनील ओहरी ने तैयार किया था।

बुआई के लिए गन्ना तैयार करता किसान। अब यूपी गन्ने की कई फसलें ली जाने लगी हैं।

उत्तर प्रदेश में करीब 20 लाख गन्ना किसान और लगभग 95 निजी व 24 सहकारी चीनी मिलें कार्यरत हैं, जिनकी एक सत्र की कुल पेराई क्षमता 700 लाख टन से भी ज्यादा है। ऐसे में बाय प्रोडक्ट फायदे का जरिया बन सकते हैं। लेकिन हमारे देश में चीनी मिलों की तकनीकी काफी पुरानी हैं, जिसके चलते चीनी की रिकवरी में ही काफी नुकसान होता है। प्रबंध निदेशक डॉ. यादव आगे बताते हैं, “यूपी पहला राज्य होगा जहां व्यवसायिक स्तर पर सेकेंड जेनरेशन सेल्यूलोज एथनाल, जो की खोई से बनाया जाएगा। इसके लिए जल्द ही फिनलैंड की एक कंपनी से यूपी सरकार का एमओयू होने वाला है। परियोजना की अनुमानित लागत 300 करोड़ होगी। इसमें यूपी बॉयो एनर्जी बोर्ड 5 फीसदी लगाना होगा, 40 फीसदी केंद्र सरकार की संस्थाएं सब्सिडी देगी, जबकि 50 फीसदी पैसा कंपनी खुद लगाएगी। ऐसे में सिर्फ 5 फीसदी पैसा खर्च कर हम न सिर्फ गन्ने का एक और उपयोग शुरु कर देंगे बाकी दूसरी तमाम चीनी मिलों के लिए नई राह भी खोलेंगे।” संघ ने एथनाल की खरीद के लिए इंडियन ऑयल से करार भी कर लिया है।

यूपी की सहकारी चीनी मिल इंडस्ट्री में आए बदलाव और नई योजनाओं की जानकारी देते संघ के प्रबंध निदेशक डॉ. बीके सिंह, साथ में है चीफ केमिस्ट सुनील ओहरी।

सहकारी चीनी मिल संघ का ये प्लांट बिजनौर की किसान चीनी मिल में लगेगा, जिससे सीजन के दौरान 40 किलोलीटर एथनाल बनेगा। विभाग के मुताबिक 3-4 साल में इसकी पूरे प्रोजेक्ट की लागत निकल आएगी, लेकिन ये प्लांट करीब 22-25 साल काम करेगा। सिल्यूलोज एथनॉल से फायदे का गणित को सरफ भाषा में बताते हुए संघ के मुख्य रसायनविद सुनील ओहरी बताते हैं, “एक प्लांट से औसतन 18 लाख का एथनाल बनाया जा सकेगा। जबकि इसे बनाने में सिर्फ 6 लाख की खोई खर्च होगी। अगर ये व्यवस्था सभी चीनी मिलों में लागू हो गई तो इस उद्योग को बड़ा सहारा मिल जाएगा।”

प्रबंध निदेशक डॉ. यादव आगे बताते हैं, “विदेशों शुगर लॉस सिर्फ दशमलव 2 फीसदी है जबकि हमारे यहां 2 फीसदी तक है, यानि हमें इस तरफ काम करने की जरुरत है ऐसा करने पर सुगर रिकवरी अपने आप बढ़ जाएगी। हालांकि 2012 के बाद हम लोग करीब साढ़े फीसदी ले आए हैं तो देश में राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। ”

“यूपी में सहकारी चीनी मिल क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में काफी काम हुआ है। हमारा रिकवरी रेट 8.13 बढ़कर 9.37 हो गया है तो गन्ने की प्रति हेक्टेयर पैदावार भी 2011-12 के मुकाबले 2015-16 में 65 फीसदी हुई है। जबकि सीजन के दौरान प्लांट (चीनी मिलों) के बंद होने की समस्या भी काफी कम हुई है।” वो आगे बताते हैं। चीनी मिल्स संघ की इस कवायद से किसान की भी बड़ी समस्या दूर हो सकती है। सीतापुर जिले के बड़े किसान और किसान नेता उमेश चंद पांडेय बताते हैं, अगर ज्यादा एथनाल बनेगा तो चीनी मिलों की कमाई बढ़ेगी अगर वो उससे किसानों को हिस्सेदार बनाती है, यानि अगर अगर गन्ने का रेट बढ़ाती हैं तो गन्ना किसानों के लिए राहत की ख़बर होगी।”

ब्राजील समेत प्रमुख गन्ना उत्पादक देशों में चीनी मिल्स खुद किसान के खेत का गन्ना काटकर ले आते हैं जबकि भारत में गन्ना उगाने से लेकर मिल पहुंचाने तक काफी मशक्कत करनी पड़ती है और कई बार मिल मालिक किसानों को पैसे के लिए चक्कर भी लगवाते हैं। संघ के अधिकारियों के मुताबिक इऩ प्रोडक्ट की बदौलत चीनी मिलों की आर्थिक सेहत सुधरेगी तो वो किसानों को भी बेहतर मूल्य दे पाएंगी।

यूपी के शामिल जिले में खेत में गन्ना काटती महिला, ये क्षेत्र गन्ने का गढ़ कहा जाता है।

चीनी से महंगा एथनॉल भरेगा चीनी मिल इंड्रस्टी में नई जान

लखऩऊ। भारत में अभी पेट्रोल में सिर्फ 5 फीसदी एथनॉल का इस्तेमाल शुरु हुआ है। जबकि विदेशों में 25 फीसदी तक इस्तेमाल हो रहा है। भारत सरकार ने भी पेट्रोलियम पदार्थों में करीब 20 तक फीसदी एथनॉल के इस्तेमाल का लक्ष्य रखा है। देश में एथनाल चीनी से महंगा है, फिलहाल इसकी कीमत 42-46 रुपये प्रति किलोलीटर है। ऐसे में अगर चीनी मिलों और आसवन इकाइयों में ज्यादा एथनाल बनेगा तो चीनी मिलों की हालत सुधरेगी, जिसका फायदा किसानों को भी होगा।

गन्ने की नई वैरायटी ने बढ़ाया उत्पादन

लखनऊ। यूपी में इस वक्त चीनी की रिकवरी देश के औसत उत्पादन से ज्यादा करीब साढ़े 10 फीसदी है। लेकिन वर्ष 2011-12 में ये सिर्फ 8.13 फीसदी थी। लेकिन 2015-16 में ये बढ़कर 9.37 तक पहुंच गई। वहीं प्रति हेक्टेयर पैदावार भी 55 टन से बढ़कर 65 टन हुई। डॉ. बीके यादव बताते हैं, मौजूदा सरकार ने इस तरफ काफी ध्यान दिया। इस पेराई सत्र के लिए 5 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया। हम सरकारी चीनी मिलों में 14 दिन के अंदर भुगतान कर रहे हैं। इसके साथ गन्ने की उन्नत किस्मों सीओ-238-39 और 118 आदि से काफी प्रभावित किया।

चीनी मिलें बनेंगी बिजली का केंद्र

लखनऊ। चीनी मिलों का बिजली उत्पादन का केंद्र बनाने की कवायद जारी है। यूपी सहकारी चीनी मिल्स संघ के मुताबिक सठियांव (आजमगढ़) चीनी मिल ने पिछले एक महीने में 2 करोड़ की बिजली नेशनल ग्रिड को बेची है। अभी तक ये बिजली सिर्फ निजी मिलों में ही बन रही थी।

थाईलैंड से मिले सर्टिफिकेट को मुख्यमंत्री को भेंट करते ड़ॉ. बीके सिंह।

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