कानपुर। मजदूरी और दूसरों के घरों में काम करने वाली, झुग्गी-झोपड़ी और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली हजारों महिलाओं ने कभी ये सोचा नहीं होगा कि उनके द्वारा स्वयं सहायता समूह में जमा की गयी छोटी सी राशि कभी करोंड़ों में हो जायेगी। कर्ज लेने के लिए अब इन्हें महाजन के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है, एक महिला जरूरत पड़ने पर अपने समूह से 50 हजार रुपए तक कम ब्याज पर कर्ज ले सकती है।
कानपुर जिला मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर दूर जाजमऊ छावनी कैंट के बदलीपुरवा गाँव में महिलाओं द्वारा 1997 में स्वयं सहायता समूह बनाये गये। इस गाँव में 11 स्वयं सहायता समूह चलते हैं। हर समूह का अपना अलग नाम होता है, 15 से 20 महिलाएं एक समूह में होती हैं। इन महिलाओं ने 10 रुपए से जमा करना शुरू किया था आज 100 से 200 रुपए तक जमा कर रही हैं। हर महिला की बचत 30 से 50 हजार रुपए तक है।
इस समूह से जुड़ी कमला निषाद (50 वर्ष) बताती हैं, “घर में कोई कमाने वाला था नहीं, दूसरों के यहाँ मजदूरी करके 20 साल पहले हर महीने 10 रुपये जमा करना शुरू किया , तभी समूह से 500 रुपए उधार लेकर सब्जी खरीद कर बेंचना शुरू कर दिया, तबसे अभी तक सब्जी ही बेंच रहे हैं।” कमला की तीन लड़कियां और एक लड़का है, पांच साल पहले इनके पति नहीं रहे। ये बताती हैं, “बेटी की शादी में समूह के सुरक्षा कोष से हमे बर्तन दिए गये थे, पैसों से जुड़ी कोई भी मुसीबत आती है तो समूह ही हमारी ताकत है, जब जिस समय जितना चाहें निकाल सकते हैं, अब किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है।” कमला निषाद इस समूह की पहली महिला नहीं हैं जिन्होंने 10 रुपए जमा करने शुरू किये हों और आज वो समूह से कर्ज लेकर अपना खुद का रोजगार कर रही हों बल्कि इनकी तरह जिले की हजारों महिलाएं सशक्त होकर अपने जरूरी काम समूह के पैसों से कर्ज लेकर करती हैं।
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सरकार की भी थी यही मंशा
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य भी गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रोत्साहित करना था। 2011-12के मुताबिक भारत में लगभग 61 लाख सहायता समूह है, जिनमें ज्यादातर महिलाओं के हैं। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 2015 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल11,9758 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनसे लगभग 11,62322 लोग जुड़े हैं। इनमें से 90548 समूह बैंकों से जुड़े हैं।
कानपुर जिले में एक गैर सरकारी संस्था श्रमिक भारती ने महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह की शुरुवात वर्ष 1989 से की। जिले में एक हजार से ज्यादा समूह बने हैं जिसमें 15 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं इनकी कुल बचत 13 करोड़ से ज्यादा है। केवल जाजमऊ ब्लॉक में 281 समूह है जिसमे 5232 महिलाएं जुड़ी हैं इनके खाते में चार करोड़ रुपए जमा हैं।
श्रमिक भारती के कार्यक्रम प्रबंधक विनोद दुबे बताते हैं, “अब इन महिलाओं को किसी महाजन के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता हैं, समूह की 90 प्रतिशत महिलाएं मजदूरी या दूसरों के घरों में काम करने वाली हैं, इनका रोज का कमाना और रोज का खाना हैं ऐसे में हजारों रुपए की बचत करना इनके लिए सम्भव नहीं था समूह में जुड़ने के बाद ये 50 हजार रुपये तक ले सकती हैं हर महिला के समूह में उसकी बचत 30 से 50 हजार तक जमा है।”
वो आगे बताते हैं, “इन सभी समूहों के रजिस्टर्ड फेडरेशन हैं, ये समूह महिलाओं द्वारा बनाये गये हैं और उन्ही के द्वारा संचालित भी किये जा रहे हैं, गरीब होने के बावजूद इनके पास एक मजबूत समूह है जिसे ये अपना ताकत मानती हैं, पैसे के लेनदेन के साथ ही इनमे अपनी बात कहने की भी क्षमता बढ़ी है, ये कई मामलों में नेतृत्व की भूमिका में सामने आती हैं।”
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इस समूह से जुड़ी मुन्नी निषाद (45 वर्ष) समूह से जुड़ा अपना अनुभव बताती हैं, “बिटिया की शादी में पचास हजार रुपए इसी समूह से उधार लिए थे, रिश्तेदारों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा था, छोटी-छोटी बचत से आज हमे इतना आराम हो गया है जब भी जिस काम में जितने पैसे की जरूरत पड़ती है अपने समूह से ले लेते हैं।” वो आगे बताती हैं, “जमीन खरीदने में 50 हजार रुपए कम पड़े तो भी यहीं से लिए, धीरे-धीरे मजदूरी करके चुका देते हैं हमारे ऊपर पैसा चुकाने में किसी का दबाव नहीं रहता है, रात-विरात कोई बीमार पड़ जाए तुरंत पैसे निकाल कर इलाज तो शुरू करा सकते हैं, जब समूह से नहीं जुड़े थे तब 10 लोगों से पहले पैसा मांगते थे तब कहीं इलाज करवा पाते थे, अगर उधार पैसे नहीं मिले तो बड़े लोगों से पैसे मांगते थे, सालों मजदूरी करने के बाद भी पूरा पैसा नहीं चुका पाते थे।”
बदलीपुरवा गाँव में हर महीने समूह की बैठक करने वाली बुक राइटर का उर्मिला निषाद(38 वर्ष) कहना है, “हर महीने की 14 तारीख को इस गाँव में 11 समूहों के साथ अलग-अलग बुक राइटर बैठक करती हैं, ये बैठक 11 बजे से एक बजे तक होती है, इस मीटिंग में किसी को बुलाना नहीं पड़ता है सब अपना काम काज निपटाकर एक जगह इकट्ठा हो जाती हैं।” वो आगे बताती हैं, “पैसे के लेनदेन के बाद अगर किसी को कोई समस्या होती है उसकी भी चर्चा की जाती है, और इसके बाद उस समस्या का निदान भी हो ऐसी कोशिश रहती है।”
कैसे जमा करती हैं ये अपने समूह में रुपए
“दूसरों के कंडा पाथकर जो पैसा मिलता है उसे समूह में जमा करते हैं, पढ़े लिखे तो हैं नहीं जो कहीं नौकरी लग जायेगी, अगर समूह से न जुड़े होते तो आज हमारे पास एक भी रुपया की बचत न होती, अभी तो 40 हजार रुपए तक बचत हो गयी है।” ये कहना है 60 वर्षीय फूलमती निषाद का। फूलमती की तरह हजारों महिलाओं ने अपने बुढ़ापे के लिए हजारों रुपए समूह में बचत कर लियें हैं जिससे अब इन्हें अपने बुढ़ापे की चिंता करने की जरूरत नहीं है। ये कहती हैं, “अभी तो हमारे हाथ पैर चलते हैं तो दूसरों के कंडे पाथ लेते हैं, जब बुढ़ापे में हाथ पैर नहीं चलेंगे तो कौन हमे रोटी देगा। जो हमे रोटी देगा उसे हम इस बचत के पैसे देंगे, अगर ये बचत के पैसे नहीं होते तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाता।”
ब्लॉक समन्यवक सहनाज परवीन बताती हैं, “इन समूह में एक ‘सुरक्षा कोष’ होता है एक हजार रुपए कर्ज लेने पर 10 रुपए कम दिए जाते हैं वो 10 रुपए इस सुरक्षा कोष में जमा होते हैं, समूह की किसी भी महिला के सामने जब कोई मुसीबत आती है तो इस कोष के पैसे से उसकी मदद कर दी जाती है।” वो बताती हैं, “ये महिलाओं द्वारा बनाया गया समूह हैं जिसे ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ी-लिखीं महिलाएं ही संचालित कर रही हैं, पैसे की मजबूती के साथ-साथ इनका अपना खुद का मजबूत महिला संगठन है, कहीं भी आवाज़ उठाने के लिए ये संगठन हमेशा एकजुट रहता है।”