जोधपुर (राजस्थान)। परंपरागत काम या कारोबार में नए प्रयोग (नवाचार) करके कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है, ये समझना है तो मुकेश गुर्जर से मिलिए। परिवार में पीढ़ियों ये चले आ रहे दूध और पशुपालन के काम में मुकेश ने अपना दिमाग, परंपरागत ज्ञान में आधुनिकता का तड़का लगाया और सफल कारोबारी बन गए। उनका देसी घी आज कल 2000 रुपए किलो बिकता है।
भारत में जोधपुर देसी घी की बड़ी मंडियों में शामिल है। सूर्यनगरी जोधपुर में रहने वाले मुकेश गुर्जर राजस्थान समेत कई राज्यों के बड़े शहरों में शुद्ध देसी घी के उत्पादन और सप्लाई के लिए जाने जाते हैं। ये घी वो उसी परंपरागत तरीके से बनाते हैं जैसे उनकी दादी और परदादी बनाया करती थीं।
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वो हर महीने करीब 1500 लीटर शुद्ध घी तैयार करके मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु, जयपुर, पुणे, गुड़गांव और कोलकाता में ऑनलाइन वेबसाइट फ्लिपकार्ट, अमेज़न, ईबे के जरिए बेचते हैं। कीमत भी अच्छी खासी है, 2000 रुपए किलो। इस कारोबार में वो अपने साथ दर्जनों देसी गाय पालक किसानों को रोजगार के मौके दे रहे हैं।
गांव कनेक्शन से खास बात में मुर्केश गुर्जर बताते हैं, “मैं परंपरागत गुर्जर परिवार से हूं, जो गाय, दूध, दही, घी, छाछ का व्यापार करने वाली कौम होती है। कुछ सालों पहले विचार आया कि जो घी हम इस्तेमाल कर रहे हैं, वह शुद्धता की दृष्टि से उतना खरा नहीं है, जितना खरा और शुद्ध हमारे बुजुर्गों के समय में हुआ करता था। रिसर्च में पता चला कि आजकल जिस तरीकों से घी बनाया जा रहे है वो ठीक नहीं। मैंने बुजुर्गों के तरीकों से घी बनाना शुरु किया और सफलता मिली।”
थारपारकर नस्ल की गाय से बनाते हैं घी
मुकेश देसी गायों की अच्छी नस्ल मानी जानी वाली थारपारकर के दूध घी बनाते हैं। इसके लिए वो अपनी गायों के साथ उन किसानों के साथ आउटसोर्सिंग करते हैं, यानि उन किसान और गोशालाओं से भी दूध मंगा लेते हैं जो थारपारकर गाय पालते हैं।
थारपारकर गाय ही क्यों के सवाल पर मुकेश कहते हैं, “थारपारकर जैसी गाय के दूध में पाया जाने वाला A-2 प्रोटीन स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी होता है। थारपारकर के साथ ये गिर और साहीवाल में भी पाया जाता है। इसके कई मेडिकली (स्वास्थ्य) के हिसाब से काफी लाभ हैं। इसी लिए आप इसे ए-2 घी भी कह सकते हैं।”
सुबह तीन बजे बिलौना करके निकाला जाता है मक्खन
मुकेश की गाय न सिर्फ खास होती हैं बल्कि उनके घी बनाने का तरीका भी शुद्ध देसी और पारंपरिक होता है। दूध को गर्म करके ठंडा किया जाता है। फिर दही जमाया जाता है। तैयार दही को सुबह तड़के तीन बजे बिलौना करके उससे मक्खन निकाला जाता है और इसी मक्खन को गर्म करके घी निकाला जाता है।
दूध के उत्पाद दही, देशी घी, छाछ और रबड़ी बनाने का काम करते उन्हें सिर्फ साल ही हुए हैं लेकिन कई राज्यों में उनके उत्पाद की मांग बढ़ी है।
मुकेश बताते हैं, हमारे प्रत्येक उत्पाद शुद्धता के लिहाज से 100 फीसदी शुद्ध होते हैं। इस घी की खूबी है कि इमें ट्रांसफैट जीरो होता है, जिसके चलते कैंसर पेसेंट भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हम लोग दूध उबालने से लेकर बाकी सारे काम मिट्टी के बर्तन में करते हैं। और इसमें इस्तेमाल होने वाले दूध में 3 से 4 फीसदी ही फैट होता है।”
A-2 मिल्क और घी को लेकर अहमदाबाद में रहने वाले हर्बल जानकार डॉ. दीपक आचार्य कहते हैं, ” ए-टू मिल्क वैज्ञानिकों को कई ऐसे विटामिन मिले हैं जो सेहत के लिए लाभकारी हैं। इसमें फैट और कोलेस्ट्राल कम होता है, जिससे कई तरह के मरीज इसका सेवन कर सकते हैं।”
डॉ. दीपक आचार्य के मुताबिक लोगों में सेहत की प्रति जागरुकता बढ़ने से ऐसे उत्पादों की मांग भी बढ़ी है। भारत में भले ही भैंस के दूध को ज्यादा तवज्जो मिलती हो लेकिन विदेशों में भी गाय के दूध का सेवन ज्यादा किया जाता है।
30 लीटर दूध में बनता है एक किलो घी
दूध से घी बनाने के इस प्रोसेस में 30 लीटर दूध से एक लीटर घी बनता है। इस दूध को वे 35 से 40 रुपए प्रति लीटर की दर से खरीदते हैं। एक लीटर घी बनाने में 1200 रुपए की लागत आती है। दूसरे खर्च (पैकिंग, बॉटलिंग, स्टीकर, जीएसटी, परिवहन, लेबर) मिलाकर यह खर्च 1700 रुपए के आसपास हो जाता है।
मक्खन निकालने बाद बची छाछ को बोतलों में पैक कर होटल रेस्टोरेंट में बेचा जाता है। इन दिनों यह छाछ 30 रुपए लीटर मिल रही है। मुकेश गुर्जर के मुताबिक भैंस या जर्सी गाय की छाछ के सेवन पर शरीर तनाव और भारीपन की शिकायत रहती है, नींद आती है। इसके विपरीत देशी गाय की छाछ पीने से नींद नहीं आती, हाज़मा दुरुस्त रहता है।
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