जूतियों पर खूबसूरत कशीदाकारी से इस महिला ने बनाई देशभर में अलग पहचान

"इन जूतियों का सबसे आकर्षक हिस्सा है, उनके ऊपरी हिस्से में किया जाने वाला कशीदा। इस कशीदे की वजह से ही इन जूतियों के आकर्षण में चार चांद लग जाते हैं। इस प्रकार के कशीदेकारी से इन जूतियों को न केवल खूबसूरत बनाया जाता है, बल्कि इसी की वजह से यह ग्राहक का दिल भी जीत लेती हैं, ”कमरुन्निशा बताती हैं।
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जोधपुर (राजस्थान)। जहां एक ओर जोधपुर राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में विश्वविख्यात है, वहीं यहां की हस्तकलाओं ने पूरी दुनिया में अपनी अनूठी छाप छोड़ी है। हस्तकला की इसी दुनिया में जोधपुर की हस्तनिर्मित जूतियां भी सैलानियों को अपनी ओर खींचती हैं। शादी-ब्याह भी इन जूतियों के बिन अधूरे हैं।

कमरुन्निशा रहमानी एक ऐसी दस्तकार हैं, जिन्हें हस्तकला के क्षेत्र में विभिन्न मान सम्मान मिल चुके हैं। 1956 में जन्मी कमरुन्निशा को ‘कच्छी जनानी जूती’ पर 1991-92 का श्रेष्ठ शिल्पी का राज्यस्तरीय पुरस्कार, ‛मारवाड़ी जूती’ पर 1992-93 का श्रेष्ठता प्रमाणपत्र भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की ओर से मिल चुका है। इसके अलावा मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट, जोधपुर की ओर से ‛मारवाड़ रत्न’ सम्मान, महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, उदयपुर की ओर से ‛महाराणा सज्जनसिंह पुरस्कार’ सहित ‛कलामणि’ सम्मान सहित अनेकों सम्मान मिल चुके हैं।

इन्हें जूतियां, मोजड़ी, मौजरी आदि नामों से भी जाना जाता है। राज्य के नागौर, जालौर, बीकानेर, भीनमाल, जैसलमेर, जयपुर, बाड़मेर और फलोदी में भी देशी जूतियां बनाई जाती हैं। फिर जोधपुरी जूतियों को ही इतनी तवज्जो क्यों दी जाती है? यह सवाल कई बार आपके दिमाग में कौंधा होगा?


वो बताती हैं, “वो बता भले ही प्रदेश के कई जिलों में जूतियां बनाई जाती हों, लेकिन ‘सूर्यनगर’ के नाम से विख्यात जोधपुर में बनीं इन जूतियों का आकर्षण सबको अपनी ओर खीचं जी लेता है। ‘जोधपुरी जूतियों’ की विशेषता इनकी आकर्षक बनावट, इनका हल्कापन और पहनने में आरामदायक होना है। जो कोई भी इन्हें एक बार पहन लेता है, उसका मन इन्हें बार-बार पहनने को करता है।”

वो आगे कहती हैं, “इन जूतियों का सबसे आकर्षक हिस्सा है, उनके ऊपरी हिस्से में किया जाने वाला कशीदा। इस कशीदे की वजह से ही इन जूतियों के आकर्षण में चार चांद लग जाते हैं। इस प्रकार के कशीदेकारी से इन जूतियों को न केवल खूबसूरत बनाया जाता है, बल्कि इसी की वजह से यह ग्राहक का दिल भी जीत लेती हैं।”

उम्दा कशीदाकारी का राज…

मात्र 10 साल की उम्र से अपनी मां से जूतियों पर कशीदाकारी सीखने वाली कमरुन्निशा बताती हैं, “मैं, ऊंट, बैल, बकरी और भैंस के मिश्रित चमड़े से बनीं जूतियों पर कशीदा करती हूं। कशीदाकारी के इस कलात्मक कार्य में मशीन, स्केच, यहां तक की सूई भी काम में नहीं लेती। सारा कशीदा मैं अपने देशी औजार (आरी) से करती हूं।”

“जोधपुरी जूतियों के चमड़े पर हाथ से कशीदा करना, किस मौसम में कैसा चमड़ा और धागा इस्तेमाल करना है, यह बात हर एक की समझ से परे है। यूं तो हजारों कारीगर कशीदाकारी करते हैं, लेकिन हाथ और आंख की सच्चाई (चित्त-एकाग्रता) ही बिना किसी स्केच के दोनों पैरों की जूतियों में एक समान कशीदा व मोतियों की लड़ी-सी सिलाई करने में मेरा साथ देती है। दूसरे शब्दों में उम्दा कशीदाकारी का यही राज है, “उन्होंने आगे बताया।


दो जूतियों पर कशीदे में भी लग जाते हैं दो महीने

कमरुन्निशा की मानें तो इन जूतियों पर जो कशीदा एक बार निकल जाता है, उसे हूबहू दुबारा निकाल पाना नामुमकिन है क्योंकि कशीदा निकालने में हाथों का प्रयोग होता है न कि मशीन का।कशीदा निकालने में काफी मेहनत और श्रम लगता है। कशीदे के काम में आने वाले औजार भी वे खुद ही अपने हाथों से बनाती हैं। जूतियों पर बेहतरीन कशीदा निकालने में कई बार तो उन्हें 2 महीने भी लग जाते हैं।

क्यों लगता है इतना समय?…

यह सवाल मन में हलचल पैदा करता है कि आखिर 2 जूतियों पर कशीदाकारी में 2 महीनों का समय कैसे लग जाता है? क्या इससे कम समय में कशीदा नहीं निकल सकता?

विशेष आर्डर पर ग्राहकों के लिए तैयार की जाने वाली जूतियों पर कशीदा निकालने में 2 महीने तो क्या 4 महीने तक लग जाते हैं। इतना समय लगा देने का अफसोस नहीं होता, क्योंकि बदले में ग्राहक विशिष्ट रूप से निकाले इस कशीदे की जोड़ी के 15 से 20 हज़ार रूपए आसानी से दे देता है। हस्तशिल्प की प्रतियोगिताओं में प्रविष्टि के रूप में भेजी जाने वाली जूतियां भी कशीदे में लगभग इतना ही समय लेती हैं। बेचने के उद्देश्य से बनने वाली जूतियों पर मात्र 10-12 दिन में ही कशीदा तैयार हो जाता है, जो बिकने पर 350-550 रूपये दे जाती हैं, कमरुन्निशा ने बताया।

जूतियों के भी नाम हैं, इनके भी गुण होते हैं…

जोधपुरी जूतियों पर उत्कृष्ट कारीगरी के लिए जोधपुर के इस रहमानी परिवार को जिलास्तर से लेकर शिल्पगुरु और राष्ट्रपति तक से पुरस्कार मिल चुके हैं। सिध्दहस्त कलाकार शब्बीर हसन की धर्मपत्नी कमरुन्निशा की मानें तो,‛सभी जूतियों को पैरों में नहीं पहना जा सकता!’

यह आप इनके द्वारा निकाले गए कशीदे की कारीगरी को देखने के बाद कह उठेंगे। कुछ ख़ास और विशेष किस्म की जूतियों को देखने के बाद आप उन्हें पहनने की बजाय उन्हें शोकेस में रख के सहेजना पसंद करेंगे। आप इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि आपकी किसी गलती से कहीं यह कशीदा मैला न हो जाए?

● कच्छी जनानी जूती

इस जूती का मुख्य गुण यह है कि इसको दो भागों में जोड़कर बनाया जाता है। यह जूती पैरों के लिए आरामदायक और लम्बे समय तक चलने वाली होती है।

● मारवाड़ी जूती

इस जूती का मुख्य गुण यह है कि इसको सिर्फ मारवाड़ी पौशाकों पर पहना जाता है। इस पर मखमल लगाकर हरे और भूरे रंग के धागों से कशीदा किया जाता है।


● सलीमशाही कशीदा नोंकदार जूती

इस जूती का गुण यह है कि इसे किसी भी प्रकार की पौशाक पर क्यों ना पहना जाए, फबती है। इस जूती को अदल-बदलकर भी पहनना चाहिए। यह जूतियां लंबी उम्र तक साथ निभाती हैं।

● महारानी जोधा जनानी जूती

इस जूती का गुण यह है कि इसके आगे का आकार चौड़ा तथा पीछे से दबा हुआ होता है। यह जूती वजन में मामूली सी हल्की होती है। इस पर मुख्य रूप से लाल, हरे और सफेद धागों से कशीदा किया जाता है।

● नवरंग जूती

इस जूती का मुख्य गुण इसके नाम में ही समाया है। नवरंग जूती अर्थात नौ रंगों के धागों से बनीं जूती। इस जूती के भीतर भी कशीदा किया जाता है।

● जोधपुरी नागरा जूती

इस जूती का गुण यह है कि इसमें सिर्फ ऊंट का ही चमड़ा प्रयोग किया जाता है। इस लेदर पर हल्के क्रीम रंग के धागे से बारीक से बारीक कशीदा किया जाता है। इस जूती के निचले तले पर जालियां और बेलबूटे बनाए जाते हैं। विदेशी ग्राहकों द्वारा इन जूतियों की बहुत मांग रहती है। इनका वजन बहुत हल्का होता है, साथ ही बेहद मुलायम होती हैं।

● सिंधी जनानी जूती

इस जूती का गुण यह है कि इसका आकार कश्ती की तरह होता है, इसे दो हिस्सों में जोड़कर बनाया जाता है। इस जूती के नीचे का तला बहुत संकड़ा होता है, लेकिन पहननें पर पैरों को आराम देता है। यह जूती मुगल शैली की देन है। इस पर काला मखमल लगाकर हरे, पीले व लाल धागों से बहुत बारीक कशीदा किया जाता है।

कमरुन्निशा रहमानी से 08741850678 पर बात की जा सकती है।

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