भागीदारी: एक आईएएस अधिकारी ने जन सहयोग से राजस्थान के नागौर ज़िले के 800 से ज़्यादा सरकारी स्कूलों में बिजली पहुंचाई

नागौर जिले के कलेक्टर डॉ जितेन्द्र सोनी ने कुछ ऐसे विद्यालयों में जन-सहयोग से बिजली पहुंचा दी जहाँ के लोगों के लिए स्कूल में बिजली पहुँचना किसी सपने जैसा था। छह महीने में जन-सहयोग से जिले के 839 सरकारी विद्यालयों में बिजली पहुंच चुकी है। जिला कलेक्टर की इस मुहिम की राजस्थान के मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने सराहना करते हुए राज्य के सभी जिलाधिकारियों को एक पत्र जारी कर कहा है कि नागौर का 'उजास' अभियान हर जिले में लागू किया जाए। राजस्थान में 11,000 से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं जिनमे बिजली की सुविधा नहीं है। राज्य का 'उजास' माॅडल दूसरे राज्य भी अपनाकर जनसहयोग से सरकारी विद्यालयों में बिजली पहुंचा सकते हैं।
#Dr Jitendra Soni

राजस्थान के नागौर जिले के जसनगर के रहने वाले रामनिवास मेघवाल आजकल बहुत ख़ुश हैं। उनका बेटा सम्राट जिस सरकारी स्कूल में पढ़ता है वहां पहली बार बिजली पहुंची है। रामनिवास को सुकून है कि अब उनके बेटे को स्कूल में गर्मी में परेशान नहीं होना पड़ेगा।

“हमारे यहाँ बहुत गर्मी होती है, गर्मियों में बच्चे स्कूल में परेशान हो जाते थे। अब मेरे बेटे को सरकारी स्कूल में पंखे की हवा मिलेगी। हम लोगों को कभी ख्याल भी नहीं आया कि सरकारी स्कूल में भी कभी बिजली पहुंच सकती है,” रामनिवास मेघवाल ने गांव कनेक्शन को बताया। रामनिवास का बेटा सम्राट राजकीय प्राथमिक विद्यालय, जसनगर में तीसरी कक्षा का छात्र है।

नागौर ज़िले में ऐसे करीब 800 सरकारी स्कूल हैं, जहां कोविड के दौरान बिजली पहुंची है। इसमें दर्जनों विद्यालय ऐसे हैं जहाँ के लोगों के लिए स्कूल में बिजली पहुँचना किसी सपने जैसा था। यह संभव हो पाया नागौर के ज़िलाधिकारी डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी की एक ख़ास योजना, ‘उजास’ की वजह से।

कैसे सफ़ल हुआ स्कूलों में बिजली पहुंचाने का अभियान?

इस योजना के तहत, डॉ. जितेन्द्र सोनी ने नागौर जिले में जुलाई-अगस्त 2020 में 910 ऐसे स्कूलों की पहचान की जिनमें बिजली नहीं थी। पिछले छह-सात महीने में जन-सहयोग से जिले के 839 सरकारी विद्यालयों में बिजली पहुंच चुकी है, बाकी के 71 सरकारी स्कूलों में मार्च 2021 तक बिजली पहुंच पहुंचाने की योजना है। इस योजना में भागीदारी के लिए डॉ. जितेंद्र सोनी ने बड़े स्तर पर ज़िले के आम लोगों को इस योजना में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया। लोगों की मदद से राज्य के 800 से ज़्यादा सरकारी स्कूलों में बिजली पहुंच पाई है। इस अभियान में 80% जन सहयोग और 20% सरकारी पैसा लगा है।

इस अभियान की विशेष बात ये है कि यह अभियान ऐसे समय शुरू किया गया जब कोविड की वजह से स्कूल बंद थे इसके बावजूद नागौर के सरकारी विद्यालयों में एक ऐसा काम पूरा हुआ जो पूरे देश के लिए मिसाल है।

डॉ जितेन्द्र सोनी को उनके सरहानीय कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है.

डॉ सोनी ने बताया, “ब्लॉक या पंचायत स्तर पर पंच-सरपंच और भामाशाहों (पैसे वाले) को ब्लॉक के अधिकारियों ने प्रेरित किया। जिले स्तर पर जो बड़े बिजनेसमैन और भामाशाह थे उनसे मैंने मीटिंग की। हर मंगलवार को हम ब्लॉक स्तर के सभी अधिकारियों से मीटिंग करते थे। अब तक एक करोड़ रुपए से ज्यादा सहयोग के तौर पर मिल चुके हैं। हम सभी स्कूलों में कम्प्यूटर भी पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।”

क्या आपने भी मदद की? इस पर रामनिवास कहते हैं, “हमारे गाँव में जिससे जितना बन सका सभी ने थोड़ा-थोड़ा चंदा दिया। स्कूल में बिजली के साथ-साथ पंखा और लाइट भी लग गई है। भविष्य में हो सकता है हमारे बच्चे इस सरकारी स्कूल में कम्प्यूटर भी सीख लें।”

डॉ. सोनी की इस मुहिम की राजस्थान के मुख्य सचिव निरंजन आर्य ने सराहना करते हुए राज्य के सभी जिलाधिकारियों को एक पत्र जारी कर सभी ज़िलों में ‘उजास’ योजना चलाए जाने को कहा है। पत्र में कहा गया है कि राज्य में 64,093 राजकीय विद्यालय हैं जिसमें 11,154 विद्यालय बिजली की सुविधा से वंचित हैं। वंचित विद्यालयों में बिजली पहुँचाने के लिए नागौर कलेक्टर के अभियान को हर जिले में लागू कर बिजली पहुँचाई जाए।

भोमासर पंचायत के सरपंच निजामुद्दीन ने अपने गाँव में राजकीय विद्यालय में बिजली लगने के लिए 33,200 रुपए दिए हैं। निजामुद्दीन कहते हैं, “हमें हर कमी के लिए सरकार को ही नहीं कोसना चाहिए, अगर स्कूल में हमारे बच्चे पढ़ते हैं तो गाँव वाले मिलकर ही अगर स्कूल की ज़रूरतों को पूरा कर दें तो फिर हमें सरकार की मदद का सालों साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा।”

राजकीय प्राथमिक विद्यालय सिदराणा की शिक्षिका अनीता पूमिया कहती हैं, “जन सहयोग से स्कूलों में बिजली तो पहुंच गई है अब एक काम ये होना चाहिए कि सरकार स्कूलों में बिजली के बिल को न्यूनतम करे।”

नागौर के मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी संपतराम ने कहा, “आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि गांव-ढाणी तक फैले राजकीय विद्यालयों में जन-सहयोग से बिजली पहुंची है। जिले में बने 40 प्रतिशत ऐसे स्कूल थे जिनमें बिजली नहीं थी इनमें से ज्यादातर वो स्कूल थे जो ऐसी जगहों पर स्थित थे जहाँ बिजली पहुंचाना बहुत मुश्किल काम था। कई जगह तो सरपंच ने पूरी जिम्मेदारी लेकर इस काम को पूरा करने में मदद की।”

डॉ सोनी के चरण पादुका अभियान को भी बीते छह साल पहले पूरे राजस्थान में लागू किया जा चुका है. 

दूसरे राज्य कैसे चला सकते हैं ये अभियान?

डॉ सोनी ने बताया कि नागौर वो जिला है जहाँ 1959 में सबसे पहले पंचायती राज शुरू किया था। इस जिले में बहुत भीषण गर्मी पड़ती है, बच्चों का बिन पंखे इतने दिनों से पढ़ाई करना बहुत दुश्वारियों भरा था।

इस अभियान को अगर दूसरे राज्य शुरु करना चाहें तो किस तरह के प्रयास करने होंगे? इस सवाल के जवाब में डॉ जितेन्द्र सोनी ने कहा, “ब्लॉक स्तर के अधिकारियों से ऐसे विद्यालयों की एक लिस्ट मंगा ली जाए जहां बिजली नहीं है। फिर विद्युत विभाग से अनुमानित खर्च पूछा जाए। इसके बाद हर विद्यालय एक डिमांड ड्राफ्ट भरकर विद्युत विभाग को दे, उस विद्यालय की जरूरत के अनुसार विद्युत विभाग वहां की लागत बनाकर दोबारा से भेजे। ये एक ऐसा अभियान है जिसमें जिले के हर अधिकारी को शामिल किया जाए, फालोअप बहुत जरूरी है तभी ये अभियान क्रियान्वित हो पाएगा।”

डॉ सोनी की नागौर जिले में पोस्टिंग, जुलाई 2020 में हुई थी। एक महीने के अंदर ही उन्होंने स्कूलों के विद्युतीकरण को लेकर मीटिंग करनी शुरु कर दी थी। हर मंगलवार को समीक्षा बैठक के दौरान ‘उजास’ की प्रगति रिपोर्ट की निरंतर माॅनिटरिंग की जाती है। यही वजह रही कि यह अभियान मुश्किल समय में भी सफल हो सका। डॉ जितेन्द्र सोनी की ये कोई पहली मुहिम नहीं है जिसकी इतनी सराहना हो रही है।

पिछला अभियान, चरण पादुका

इससे पहले साल 2014 में जालौर में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने ‘चरण पादुका’ अभियान शुरु किया था। इस अभियान का उद्देश्य था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हर बच्चे के पैर में जूते हों। पूरे जिले में कराए गए सर्वे में पता चला कि हजारों की संख्या में बच्चे हर दिन नंगे पैर स्कूल आते हैं। इसे एक मुहिम के तौर पर जितेन्द्र सोनी ने ‘चरण पादुका अभियान’ का नाम दिया। लोगों के साथ मीटिंग और फेसबुक पेज पर इस अभियान के लिए चंदे की अपील की गई। अभियान सफ़ल रहा। 26 जनवरी 2016 को 25 हजार बच्चों को जूते दिए गए। बाद में इस अभियान पूरे राज्य में लागू कर दिया गया। 

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