मजबूरी में पाली थी एक गाय, आज हैं 150 गाय-भैंस के मालिक, महीने की कमाई भी है आकर्षक

बदलता इंडिया में आज पढ़िए मध्य प्रदेश के एक डेयरी चलाने वाले किसान की कहानी, जिन्होंने मजबूरी में एक गाय पाली थी, लेकिन आज उनके पास गिर, साहीवाल और मुर्रा नस्ल की 150 गाय-भैंस हैं। खुशहाल कुशवाहा की महीने की कमाई भी लाखों में है।
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सतना (मध्य प्रदेश)। बीमार मां को दूध मिल सके इसलिए पिता की पेंशन से युवा खुशीहाल कुशवाहा ने एक गाय खरीदी थी। घर की माली हालत ठीक नहीं थी तो वो गाय जो 3 लीटर दूध देती थी उसी में कुछ दूध बेच लिया करते थे, वहीं से खुशीहाल की जिंदगी में दूध के कारोबार का आइडिया मिला और वो आज 150 से ज्यादा गाय-भैंसों के मालिक हैं। महीनें में दूध बेचकर औसतन एक लाख से 2 लाख रुपए मिलते हैं।

“बात करीब 27 साल पुरानी है। मां को मलेरिया हो गया था। पिता जी रेलवे से रिटायर्ड थे उनकी पेंशन भी नहीं आ रही थी। कुछ दिन बाद पिता जी को 02 माह की करीब 2600 रुपए पेंशन मिली। इसी से गाय खरीदी। घर की माली हालत ठीक नहीं थी तो उसी 3 लीटर में कुछ दूध बेच लेते थे, उससे मां की दवा और घर का खर्च भी चलता था। वहीं से विचार आया क्यों न यही काम किया जाए फिर आज तक वही कर रहे।” खुशीहाल कुशवाहा अपने शुरुआती दिनों की कहानी बताते हैं।

खुशीहाल कुशवाहा की डेयरी। फोटो- सचिन तुलसा त्रिपाठी

45 साल के कुशवाहा मध्य प्रदेश के सतना शहर के धवारी मोहल्ले में रहते हैं। यहीं उनकी एक डेयरी भी है। उनके पास इस वक्त करीब 150 गाय-भैंस हैं। गाय, गिर और साहीवाल नस्ल की हैं तो भैंसे हरियाणा की प्रसिद्ध मुर्रा नस्ल की हैं। दोनों की संख्या लगभग आधी-आधी है। कुशवाहा के मुताबिक रोजाना औसतन 250-300 लीटर दूध होता है, उनकी महीने की औसत कमाई करीब एक से 2 लाख रुपए है। जो मौसम और दूध उत्पादन के अनुरुप घटती बढ़ती रहती है।

वो बताते हैं, “‘मौजूदा समय में 150 गाय और भैंसे हैं। औसतन 250-300 लीटर दूध होता है। प्रति लीटर 50 से 60 रुपए दूध बेचते हैं। दूधारु पशुओं की संख्या के हिसाब एक लाख से 2 लाख की बिक्री होती है। अगर प्रॉफिट की बात करें तो घर और डेयरी के खर्चे काटकर करीब 50000 से 60000 रुपए का मुनाफा हो जाता है।” कुशवाहा के मुताबिक गर्मियों में दूध का उत्पादन घटता है जो ठंडी में अपेक्षाकृत ज्यादा हो जाता है।

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दुधारू पशु ब्यातने के कुछ महीने ही दूध देते हैं ऐसे में उन्हें शहर में रखना और खिलाना खर्च वाला काम हो जाता है, इसलिए कुशवाहा ने गांव में भी एक डेयरी बना रखी है। जहां वो ऐसे पशुओं को रखते हैं, जो दूध नहीं देती हैं। वहां उनकी सेवा होती है।

वो कहते हैं, “जो पशु दूध देते हैं उन्हें शहर में रखते हैं, इस वक्त शहर में करीब 60 पशु दुधारु हैं बाकी के पशुओं को शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर गांव हरदोखर में बनी गौशाला में रखते हैं। शहर में डेयरी इसलिए है कि ताकि ग्राहक को आसानी से दूध उपलब्ध करा सकें।”

कुशवाहा के मुताबिक वो गाय-भैंसों का संवर्धन इस तरह से करते हैं कि साल के किसी महीने में दूध की कमी न हो और पशुओं की एक ठीकठाक संख्या हमेशा दूध देती रहे। जिन पशुओं से उन्हें कमाई होती है वो उनकी सेवा, खान पान और सेहत पर खुलकर पैसे खर्च करते हैं। दूधारु पशुओं की खुराक अलग होती है।

कुशवाहा गांव कनेक्शन को बताते हैं, “दूध देने वाली गाय-भैंस को सुबह शाम मिलाकर 6 किलो दाना, 25 किलो हरा चारा और भूसा दिया जाता है, कुल मिलाकर उनकी रोजाना खुराक पर करीब प्रति पशु 250 रुपए खर्च होते हैं। जबकि बाकी पर भी 125 से 130 रुपए औसतन खर्च होते हैं।”

पशुओं को चारा देना, गोबर उठाने और दूध दुहने के लिए वो 4-5 लोगों को रखते हैं। इसके साथ ही उनका पूरा परिवार इस काम में लगता है। जिसमें बुजुर्ग माता-पिता से लेकर घर के बच्चे तक शामिल हैं।

एक भैंस की पीठ पर हाथ फेरते हुए खुशीहाल बताते हैं, ’25 साल ये दूध का ही काम कर रहा हूं। जिसमें परिवार का हर सदस्य सहभागी है। परिवार में पिता और माता जी तो हैं ही, मेरी पत्नी, दो बेटियां, एक बेटा। इसी तरह छोटा भाई उसकी पत्नी और बच्चे भी। इस तरह से परिवार के 11 लोग डेयरी के काम में सहयोग कर रहे हैं। यकीन मान लीजिए इसके अलावा हमारे आय का कोई और साधन नहीं है।”

खुशीहाल कुशवाहा

मूलरुप से उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में अहिकौरा गांव के निवासी कुशवाहा के पिता सतना में रेलवे में नौकरी करते थे, जिसके बाद वहीं बस गए। दूध की कमाई से ही उन्होंने सतना में घर,डेयरी और पास के गांव में 15 एकड़ जमीन खरीदी है।

दूध का कारोबार न सिर्फ उनके परिवार की कमाई का जरिया है बल्कि स्वेत क्रांति के सहारे उनके जीवन में सफलता और सोहरत भी मिली है। दुग्ध उत्पादन के लिए उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को गोपास पुरस्कार समेत कई अवॉर्ड और सम्मान मिल चुके हैं।

खुशीहाल बताते हैं ” मुझे, मेरी पत्नी और छोटे भाई को गोपाल पुरस्कार मिल चुके हैं। मध्यप्रदेश शासन के पशुपालन विभाग द्वारा वर्ष 2017 में विकासखंड स्तर का प्रथम और इसी साल जिला स्तर का तृतीय स्थान का पुरस्कार मिला था। यह पुरस्कार साहीवाल गाय के लिए दिया गया था। 2018 में छोटे भाई यशवंत को जिला स्तर का प्रथम पुरस्कार मिला था और 2019 में पत्नी प्रेमा कुशवाहा को खंड स्तर का द्वितीय स्थान का पुरस्कार मिला था। पिछले साल से पुरस्कारों की घोषणा नहीं हुई है।”

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इस मुकाम तक पहुंचने के लिए छोड़ने पड़े कई सपने

खुशीहाल महज 11वीं तक पढ़े हैं। वो और पढ़ना चाहते थे, उनकी खेलों में काफी रुचि थी वो देश के लिए खेलना भी चाहते थे। लेकिन गृहस्थी चलाने के लिए खुशीहाल को बाकी सबसे मुंह मोड़कर गायभैंस पालनी शुरु की और फिर इसी में रम गए। उनके मुताबिक गायों से ऐसा प्रेम हुआ कि बाकी सब छूट गया।

खेल का शौक, गायों के लिए सब छोड़ा

विद्यार्थी जीवन में खुशीहाल को बॉस्केटबाल का शौक था। जिला से राज्य तक की प्रतियोगिताओं में भाग लिया, लेकिन घर-गृहस्थी चलाने की मजबूरी ने गाय-भैंसों के पीछे लगा दिया। इसका मलाल तो है लेकिन परिवार को खुश देखकर खुशीहाल भी प्रसन्न हैं।

वो कहते हैं, ‘आठवीं में था तब से बॉस्केटबाल खेलने का खूब शौक हुआ करता था। नौवीं में आए तो मौका मिला जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर की स्पर्धाओं में भाग लिया। तीन राज्य स्तरीय खेलों में अवार्ड भी जीता। संभाग में अव्वल खिलाड़ी का अवार्ड तब के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने दिया था। लेकिन 1996 में पढ़ाई छोड़नी पड़ गई। जिससे खेल भी छूट गया।”

थोड़ा थम कर वो आगे कहते हैं, “राष्ट्रीय प्रतियोगिता में खेलने का सपना आज भी अधूरा है।”

गाय-भैंस की खुराक के लिए देशी चारा

डेयरी के काम में सबसे ज्यादा खर्च चारे और चूनी-चोकर (रातिब) पर होता है। खुशीहाल इसलिए अपने पशुओं के लिए चारे की बड़ी खुराक अपने खेतों में उगाते हैं। उनके पास जो 15 एकड़ जमीन है उसके बड़े भाग में पशुओं के लिए चारा उगाते हैं। ये हरा चारा भी रासानयिक खादों की बजाए दोनों डेयरियों से निकले गोबर की खाद से उगाया जाता है।

वो कहते हैं, “दोनों गोशाला में मिलाकार करीब एक ट्राली गोबर रोज निकलता है। इसे ही खेतों में उपयोग करते हैं। बाजार से खाद नहीं खरीदते। गाय-भैंसों के लिए गर्मियों में चरी और ठंड के दिनों बरसीम खेत में ही उगाते हैं।”

दुग्ध और डेयरी सेक्टर की राष्ट्रीय तस्वीर क्या कहती है

भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, जिसका वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 23% का योगदान है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार भारत में दूध का उत्पादन वर्ष 1991-92 में 5.56 करोड़ टन था जो 2019-20 में बढ़कर 19.84 करोड़ टन हो गया। वर्ष 2030 में दूध की मांग 26.65 करोड़ टन तक पहुंचने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और पंजाब भारत में प्रमुख दूध उत्पादक राज्य माने जाते हैं।

पिछले 5 वर्षों में देश के वार्षिक दुग्ध उत्पादन में 6.4% (सीएजीआर) की बढ़ोतरी हुई है। अपने सामाजिक-आर्थिक महत्व के कारण डेयरी, भारत सरकार के लिए एक उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।

यह देश की अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान करने वाला एकमात्र सबसे बड़ा कृषि उत्पाद है। इसके अलावा, देश में पैकेज्ड डेयरी उत्पाद का बहुत बड़ा घरेलू बाजार हैं, जिनकी कीमत 2.7 से लेकर 3.0 लाख करोड़ रुपये है।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार 2019 की 20वीं पशुधन गणना में मवेशियों की संख्या बढ़कर 19.25 करोड़ हो गई, भैंसों की संख्या 10.99 करोड़ रही दुधारू पशुओं की संख्या भी बढ़कर 13.64 करोड़ पहुंच गई।

दुग्ध और डेयरी के क्षेत्र में संभावनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को पशुपालन और डेयरी विभाग की कई बड़ी योजनाओं में संशोधन की मंजूरी दी है, इसके लिए 54,618 करोड़ रुपये के पैकेज की स्वीकृति दी है। कैबिनेट के इस फैसले से राष्ट्रीय गोकुल मिशन से स्वदेशी प्रजातियों के विकास और संरक्षण को मदद मिलेगी।

राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम योजना (एनपीडीडी) का लक्ष्य थोक में लगभग 8900 कूलरों को लगाने का है, जिसमें दूध रखा जा सके। इस कदम से आठ लाख से अधिक दुग्ध उत्पादकों को फायदा होगा।

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