लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। सिर का पल्लू संभालती काले गोटे वाली पीली साड़ी पहने राजरानी गांव के एक-एक घर में जाकर बिजली के बिल इकट्ठा कर रही हैं, ताकि गांव वालों को बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए घंटों तक लंबी लाइन में न खड़ा होना पड़े। इस काम ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई है। लोग उन्हें बड़े प्यार से ‘विद्युत सखी’ कहते हैं। 38 साल की राजरानी जिन्हें सात साल की उम्र में पोलियो मार गया था, आज अपने पैरों पर खड़ी होकर काफी खुश है।
राजरानी ने गांव कनेक्शन से कहा, “अब गांव वालों को घंटों लंबी लाइन में नहीं लगना पड़ता है। बिजली विभाग में जाकर मैं उनके बिलों को जमा कराती हूं और इसके लिए मुझे कमीशन मिलता है।” वह मुस्कुराते हुए आगे कहती हैं, “पहले मैं बस, चूल्हा चौका करती थी। आज जो भी पैसा कमा रही हूं, उससे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में मदद मिल जाती है। इसके अलावा, मुझे अपने पति से पैसे मांगने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती।”
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के नरेरा ग्राम पंचायत की रहने वाली राजरानी को 12 रुपये प्रति बिल के हिसाब से कमीशन मिलता है। इससे वह हर महीने 10,000 रुपये तक कमा लेती हैं।
राजरानी ने कहा, “मैं अपनी तरह दिव्यांग महिलाओं से कहना चाहती हूं कि लोगों की बातों से कभी परेशान न हों। उनका जीवन भी मेरी तरह बदल सकता है। “
ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण
ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM), एक जमीनी स्तर के संगठन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से, गांवों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को उनकी पसंद से जुड़े रोजगार के अवसर प्रदान करके उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बना रहा है।
UPSRLM के उपायुक्त सुखराज बंधु ने गांव कनेक्शन को बताया, “महिलाओं की पसंद और क्षमता के अनुसार, हम गांवों में उन्हें प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्हें आजीविका के नए अवसरों से जोड़ रहे हैं ताकि वे आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र हो सकें और उनका जीवन खुशहाल बन सके।”
वह आगे कहते हैं, “हम महिलाओं को सशक्त बनाना चाहते हैं। दरअसल हमारा मकसद उनके जरिए गांवों के हर गरीब परिवार को आर्थिक रूप से सबल बनाना है। हम नहीं चाहते कि लोग स्वयं सहायता समुह (SHG) से जुड़ी महिलाओं की ओर दया की नजरों से देखें। हम चाहते हैं कि वे अपने कौशल को बढ़ाएं और जमाने से कदम से कदम मिलाकर चलें।”
लखनऊ में जिले की कुल 494 ग्राम पंचायतों में 7,000 स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर कम से कम 75,000 परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।
राज्य सरकार की अनेक योजनाओं के जरिए, ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TIRF) पिछले दो सालों से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की मदद कर रहा है। यह फाउंडेशन इन महिलाओं को तकनीकी, घरेलू और वित्तीय प्रबंधन में सहायता करता है।
UPSRLM के अधिकारी ने कहा, “हमने बिजली विभाग के साथ गठजोड़ किया हुआ है। एसएचजी से जुड़ी महिलाएं बिल जमा करेंगी और उन्हें इसके लिए कमीशन दिया जाएगा। हम उन्हें मीटर रीडिंग रिकॉर्ड करने के लिए भी प्रशिक्षित कर रहे हैं ताकि उनका कमीशन बारह रुपये से बढ़कर बीस रुपये हो जाए। चाहे बिल कितने भी रुपयों का क्यों न हो।”
ग्रामीण महिलाओं का एक विशाल कैडर
लखनऊ की ग्राम पंचायतों में राजरानी की तरह 196 महिलाएं विद्युत सखी के रूप में काम कर रही हैं। महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों का बढ़ाते हुए उन्हें मल्टीग्रेन आटा, आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों और महिलाओं के लिए सूखा राशन, पापड़, चार, मोमबत्तियां, सोलर लैंप, अगरबत्ती जैसी चीजों को तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कमोबेश इन सभी का इस्तेमाल घरों में किया जाता है।
पूर्वी यूपी के TRIF की रीजनल कोऑर्डिनेटर नीलम सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) ने आजीविका सखी, बिजली सखी (विद्युत सखी), पशु सखी के रूप में महिलाओं का एक विशाल कैडर बनाया है। हम इन महिलाओं को उनकी क्षमता को बढ़ाने, आमदनी बढ़ाने और नई तकनीकों के साथ जुड़ने में मदद करते हैं।”
उन्होंने कहा, “इनके अलावा, हम उन्हें खेत से लेकर गैर-कृषि गतिविधियों जैसे बकरी पालन, सैनिटरी पैड बनाने, धूपबत्ती बनाने, सोलर चार्जर बनाने जैसी चीजों से बेहतर आय प्राप्त करने में भी मदद करते हैं।”
सिंह ने कहा, “महिला कैडर को मजबूत बनाने में काफी समय लगा है। जो लोग इस तरह के समूहों को महिलाओं के लिए टाइमपास मानते थे, अब उनका नजरिया बदल गया है। मैंने महिलाओं में भी बदलाव देखा है। जिन महिलाओं को बैंक जाने से भी डर लगता था, वे अब बैंक फॉर्म भरने में गांव की अन्य महिलाओं की मदद कर रही हैं।”
लखनऊ, उन्नाव, कन्नौज, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी सहित उत्तर प्रदेश के 39 जिलों के 78 ब्लॉकों में महिलाओं के 284 क्लस्टर लेवल फोरम (CLFs) को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
रेस्टोरेंट चलाना
लखनऊ से हरौनी जाते हुए रास्ते में एक जगह गर्मागर्म समोसा, पूरी सब्जी, कढ़ी चावल खाने वालों की अच्छी-खासी भीड़ लगी है। रेस्टोरेंट में एक तरफ साधना ग्राहकों और गल्ले को संभालने में लगी हैं तो वहीं दूसरी तरफ एक चूल्हे पर प्रेशर कुकर सीटियां बजा रहा है और दूसरे पर पूरियां तली जा रहीं हैं।
साधना ने सात साल पहले स्वयं सहायता समूह से कर्ज लेकर ये छोटा सा रेस्टोरेंट खोला था। बेंती ग्राम पंचायत की निवासी 27 साल की साधना ने गांव कनेक्शन को बताया, “SHG से जुड़ने के बाद मैंने अपने इस बिजनेस को शुरू करने के लिए बीस हजार रुपये का कर्ज लिया था। पहले मैं ईंट गारा (दिहाड़ी मजदूर के रूप में) का काम करती थी। तब मैं एक दिन में लगभग दो सौ रुपये ही कमा पाती थी, लेकिन आज मेरी आमदनी एक दिन में तकरीबन तीन हजार रुपये है।”
नीलम सिंह ने कहा, “इन महिलाओं ने अपने गांवों में अन्य महिलाओं के लिए एक उदाहरण पेश किया है। उनकी सफलता देखकर, कई महिलाएं इन स्वयं सहायता समूहों में शामिल हुईं हैं। हम एक बड़ा बदलाव देखने की उम्मीद रखते हैं और परिभाषित करते हैं कि वास्तव में महिला सशक्तिकरण क्या है”
यह लेख TRIF के सहयोग से लिखा गया हैं।