धालभूमगढ़, पूर्वी सिंघभूम (झारखंड)। दो साल पहले ईंट भट्ठे पर रोजाना आठ घंटे कड़ी मेहनत करने के बावजूद, रूपाली मंडी मुश्किल से अपने दो बच्चों को खिलाने और घर के दूसरे खर्चों को पूरा करने में कामयाब हो पातीं। वह झारखंड के रावतारा गाँव की रहने वाली हैं, जोकि पूर्वी सिंहभूम जिले में अपने गाँव से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक भट्टे पर काम करती थीं।
उस समय उनके पति एक दिहाड़ी मजदूर के तौर पर अपने परिवार से 2000 किलोमीटर दूर बेंगलुरु, कर्नाटक में काम करते थे। लेकिन घर भेजने के लिए मुश्किल से कोई बचत हो पाती।
जब कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दो साल पहले पूरे देश में लॉकडाउन लगा, उस समय 34 वर्षीय रुपाली मंडी और उनके 37 वर्षीय सूर्य मंडी का भी काम चला गया। ये उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ था।
सूर्य मंडी ने गांव कनेक्शन को बताया, “लॉकडाउन मेरे लिए वरदान की तरह था, क्योंकि मैं गांव लौटा और धान के अलावा कई तरह की फसलों की खेती की।”
मिश्रित खेती के प्रयोग से पहले, इस दंपति के पास 2 बीघा जमीन थी जिसका इस्तेमाल साल में एक बार सिर्फ धान की खेती के लिए किया जाता था।
रूपाली मंडी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि “दो साल से हम ब्रोकली, गोभी, मटर, करेला, कद्दू, तरबूज और दूसरी मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं। अब हम अपने खेत के कुछ हिस्से में ही धान की खेती करते हैं जो परिवार के एक साल के लिए चावल की जरूरत को पूरा करता है। उन्होंने कहा, “इन सब्जियों को बेचकर लॉकडाउन से पहले की कमाई का दोगुना कमाने में मदद मिलती है।
खेती से बेहतर मुनाफा कमाने वाले मंडी दंपति की सफलता की कहानी इस क्षेत्र में सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि झारखंड के धालभूमगढ़ ब्लॉक के रावतारा, चत्रो और चुकरीपारा गांव के लगभग 12 ऐसे परिवार हैं जो पारंपरिक खेती से मिश्रित खेती की तरफ जाने से बेहतर कमाई कर रहे हैं। हालांकि मिक्स खेती की शुरूआत मंडी दंपति ने की थी।
इनकी सफलता से प्रेरणा लेते हुए दूसरे ग्रामीण जो 2020 में लॉकडाउन से पहले देश के अलग अलग हिस्सों में दिहाड़ी मजदूरी का काम कर रहे थे, वे भी फसलों की खेती कर रहे हैं और मजदूरी की तुलना में अधिक लाभ कमा रहे हैं।
प्रवासी मजदूरों से लेकर सफल किसान बनने का सफर
भीम दास चत्रो गांव के एक ऐसे किसान हैं जो पहले काम की तलाश में दूर-दराज के शहरों में चले गए थे। दास के पास लगभग दो बीघा जमीन है और वह लौकी, पत्ता गोभी, फूलगोभी, कद्दू और बैंगन से लेकर कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं।
दास ने कहा, “मैं सोच भी नहीं सकता था कि मैं अपने परिवार के साथ रह पाऊंगा और मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में जितना कमाता था, उससे कहीं बेहतर कमाई कर पाऊंगा। यह एक चमत्कार की तरह है।”
पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ ब्लॉक में ग्राम वासियों की कामयाबी राज्य सरकार की झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) द्वारा समर्थित है। जेएसएलपीएस राज्य में आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले वर्गों की आजीविका को बढ़ावा देने के लिए 2009 में शुरू की गई एक योजना है।
ग्रामीण अपने कृषि क्षेत्रों से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण के लिए ब्लॉक अधिकारियों से संपर्क करते हैं।
धालभूमगढ़ में जेएसएलपीएस ब्लॉक परियोजना अधिकारी (बीपीओ) नियाज अहमद ने गांव कनेक्शन को बताया कि यह योजना ग्रामीणों को उनकी भूमि का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करके अपनी खेती के तरीकों को बदलने के लिए प्रेरित करती है।
अहमद ने बताया, “जेएसएलपीएस किसानों को बीज देता है, फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए उन्नत तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है, सौर ऊर्जा के माध्यम से सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है, उन्नत खेती, मार्केटिंग सुविधाओं के लिए नियमित प्रशिक्षण भी दिया जाता है।”
ब्लॉक परियोजना अधिकारी ने बताया, “हमें खुशी है कि ग्रामीण नए तरीके से खेती करने में रुचि ले रहे हैं और अपनी जमीन पर खेती से मुनाफे के साथ अच्छे उत्पादन पा रहे हैं, जो बंजर रहती थी क्योंकि उनमें से बहुत से लोग काम की तलाश में बाहर चले गए थे।”
रावतारा गांव की सूर्य मंडी इस बात से खुश हैं कि उसे अब काम की तलाश में बड़े शहर की ओर पलायन नहीं करना पड़ता और न ही महीनों तक अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है।
सुर्या ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पिछले दो सालों में हमने सब्जियां उगाना और बेहतर मुनाफा कमाना सीखा है। मैं अपने खेत की उपज बेच कर एक साल में 2 लाख रुपये तक कमाता हूं और इससे हमारी आजीविका में सुधार हुआ है। सबसे बढ़कर मेरे बच्चों को बढ़ते हुए देखने से मिली खुशी अनमोल है।”
उन्होंने कहा, “अब मैंने ग्रामीणों से खेती के लिए तीन बीघा (लगभग एक हेक्टेयर) अधिक खेत लीज पर ले लिया है, जबकि दूसरे कई लोग अधिया पर अपना खेत देने की पेशकश कर रहे हैं।”
बढ़िया उत्पादन के लिए उन्नत कृषि तकनीक
कृषि उत्पादों को कीट-पतंगों से बचाने के लिए पीले स्टिकी ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप और अन्य उन्नत विधियों जैसी तकनीकों का उपयोग, जो स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रदान किया जाता है, प्रवासी-मजदूर-किसानों द्वारा बेहतर कमाई के लिए जरूरी है।
चत्रो गांव के किसान, जिन्हें अपने खेतों की सिंचाई करने में कठिनाई होती थी, उनके पास अब सौर पैनलों के उपयोग के माध्यम से अपने खेतों के लिए पर्याप्त पानी है।
अहमद ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ग्रामीण चार दिन में एक बार एक घंटे के लिए सिंचाई के लिए 50 रुपये देते हैं। सौर पैनल और अन्य खर्चों के लिए शुल्क लिया जा रहा है। ये सौर पैनल जनरेटर की जरूरत की बिजली पैदा करते हैं जिसे बोरवेल चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।”
जब गांव कनेक्शन ने इन किसानों के खेतों का दौरा किया, तो देखा गया कि इन किसानों ने लेमन ग्रास जैसी फसलों की खेती भी शुरू कर दी है, जिनका बाजार मूल्य पारंपरिक फसलों की तुलना में कहीं बेहतर है।
चत्रो गाँव की चंपा मंडी ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम अपने खेतों में आम के पेड़ भी लगा रहे हैं, लेमन ग्रास को उत्तर प्रदेश से लाया गया है। शुरुआत में ये हमारे लिए नई फसल थी। लेकिन जब हम समझ गए कि इसका इस्तेमाल दवा, तेल और चाय के रूप में किया जा रहा है तो हमने इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया।”
महिला किसान ने अपने खेत में 4,000 लेमन ग्रास के पौधे लगाए थे जोकि आधा बीघा (लगभग आधा एकड़) भूमि में फैला हुआ था। अब उनके खेत में 40,000 पौधे हैं।
चंपा मंडी ने कहा, “मैं इससे बहुत पैसा कमा रही हूं, क्योंकि प्रत्येक पौधा 80 पैसे में बेचा जा रहा है, जबकि एक लेमन ग्रास के पौधो से 80 और पौधे तैयार हो जाते हैं। मुझे लगता है कि हम पहले ऐसी फसलों की खेती क्यों नहीं करते थे।”
चत्रो ग्राम संगठन (एक स्वयं सहायता समूह) की सोमा रानी मुटू ने कहा कि ग्रामीणों को अब कमाई के अवसरों के लिए पलायन करने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उन्हें स्थानीय प्रशासन से वित्तीय मदद मिल रही है।
“वे खेती के उन्नत तरीके भी सीख रहे हैं। हमें अपनी उपज के लिए विपणन के अवसर और पर्याप्त मूल्य भी मिल रहे हैं। लेमन ग्रास ऑयल बनाने की मशीन, फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग जैसे नए कमाई के अवसर इन ग्रामीणों की खुशहाली सुनिश्चित कर रहे हैं। हम खेती के अपने पारंपरिक पेशे पर विशेष ध्यान देकर लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी के दुखद दिनों को दूर कर सकते हैं।