मध्य प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं ने ली व्यापारियों की जगह, सीधे किसानों से कृषि उत्पाद खरीदकर बढ़ा रहीं आमदनी

मध्य प्रदेश के 52 जिलों की 4500 से ज्यादा महिलाएं सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी पर किसानों से सीधे कृषि उत्पाद खरीदने की पहल का हिस्सा हैं। इसने न केवल खरीद प्रक्रिया से भ्रष्टाचार को हटाया है बल्कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को रोजगार भी दिया है।
#women empowerment

मध्य प्रदेश के देवास जिले के खातेगांव के रहने वाली सोनू विश्वकर्मा विधवा हैं। दो बच्चों की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधे पर है। वह पास के सरकारी गोदाम में काम करती है, जहां किसानों से सीधे कृषि उपज और खेत की फसल खरीदा जाता है और बदले में किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का भुगतान किया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि वे व्यापारियों से दूर रहती हैं।

30 साल की विश्वकर्मा महीने में जितना भी गेहूं खरीदती है, उसके आधार पर उसे हर महीने भुगतान किया जाता है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे प्रति क्विंटल गेहूं खरीद पर सत्ताईस रुपये मिलते हैं। इससे हर महीने मेरी लगभग दस हजार रुपये की कमाई हो जाती है।”

विश्वकर्मा मध्य प्रदेश की उन 4500 ग्रामीण महिलाओं में से एक है जो राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत एक पहल से जुड़ी हुईं है। ये पहल खरीद प्रक्रिया से निजी विक्रेताओं या व्यापारियों को खत्म करने और उनकी जगह महिला समूहों को लाने की दिशा में काम कर रहा है। अब तक राज्य में 436 महिला समूह इस खरीद पहल में शामिल हो चुके हैं।

खरीद केंद्रों के प्रबंधन से जुड़ने के बाद महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है।

इस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में ग्रामीण महिलाओं को सरकारी गोदामों के आसपास कृषि उत्पाद खरीदने के लिए खरीद केंद्र आवंटित किए जाते हैं। यहां सीधे किसानों से ज्यादातर गेहूं, सरसों और चना खरीदा जाता है। राज्य सरकार का खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग उपज को लाने-ले जाने के लिए जरूरी परिवहन की व्यवस्था करने में मदद करता है।

मध्य प्रदेश में कुल 529 सरकारी खरीद केंद्र हैं। जिनमें से 436 को महिला समूह, 62 को ग्राम संघ, नौ को क्लस्टर लेवल फोरम और 15 को किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) संचालित करते हैं।

विश्वकर्मा ने कहा, “हमारे केंद्र में दस महिलाएं अलग-अलग कामों में लगी हैं। कुछ क्लैक्शन करने तो कुछ बोरियों की मार्किंग व गिनती करने तो वहीं कुछ महिलाएं गुणवत्ता जांच जैसे कामों में लगी हैं।”

ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ), एक जमीनी गैर-लाभकारी संस्था है जो इस पहल पर राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। यह संस्था प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए तकनीकी सहायता भी मुहैया कराती है। मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के थांदला तहसील में टीआरआईएफ के कोआर्डिनेटर अजय गहलोत ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम महिलाओं को खरीद और बिक्री प्रक्रिया, खरीदे गए उत्पाद की लोडिंग की जांच और निगरानी की ट्रेनिंग देने के लिए वर्कशॉप आयोजित करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम ग्रामीण महिलाओं को उस सामाजिक दबाव से निपटने में भी मदद करते हैं, जो उनके लिए आजादी से बिना डरे काम करने में एक बड़ी बाधा है।”

व्यापारियों की जगह लेती ग्रामीण महिलाएं

बड़े पैमाने पर कृषि उपज की खरीद-फरोख्त में परंपरागत रूप से पुरुषों का दबदबा रहा है। इस काम में ज्यादातर धनी साहूकार और स्थानीय राजनीतिक नेता जुड़े होते थे, जिसकी वजह से ग्रामीण महिलाओं को खरीद प्रक्रिया में जगह मिलना मुश्किल हो गया।

गहलोत ने कहा, ” अपने काम में दखलंदाजी और खरीद प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को दूर करने के उनके प्रयासों के लिए महिलाओं को अमीर व्यापारियों और नेताओं से धमकी भी दी गई।” लेकिन ट्रेनिंग और बातचीत के बाद गांव की महिलाएं इन सरकारी खरीद केंद्रों को चलाने के लिए आगे आईं।

झाबुआ जिले के थांदला ब्लॉक के करंजपाड़ा में रहने वाली 29 साल की खरीद समूह की नेता झिता झोडिया के पति एक किसान हैं। घर खर्च में उसकी मदद करने पर झोडिया को गर्व महसूस होता है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “पिछले साल गेहूं खरीद सीजन के दौरान हमने 20,058 क्विंटल गेहूं खरीदा था. तब मैंने एक महीने में अठारह हजार रुपये कमाए थे।” झोडिया आजाद महिला बचत समूह नाम के एक स्वयं सहायता समूह की प्रमुख हैं। यहां ग्रामीण महिलाएं सामूहिक रूप से पैसा बचाती हैं और अपने विकास के लिए काम करती हैं।

खरीद केंद्रों के प्रबंधन से जुड़ने के बाद महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है। देवास के खातेगांव की रीना देवी अपने जिले के खरीद केंद्र में सचिव के तौर पर काम करती हैं। उन्होंने कहा, ” मैं पहले इस बात का पता लगाती हूं कि एक दिन में कितना अनाज तौला जा सकता है। केंद्र पर भीड़ न हो इसके लिए किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए दिन आवंटित कर दिए जाते हैं। इससे किसानों का समय भी बचता है और उन्हें लंबी कतारों में इंतजार नहीं करना पड़ता।”

उनके मुताबिक , गुणवत्ता के विभिन्न मानकों के लिए कृषि उपज की जांच की जाती है. उसके बाद उसका वजन किया जाता है और फिर उसे पैक व टैग किया जाता है। टीआरआईएफ के सलाहकार शहजाद खान ने बताया “महिला समूह एमएसपी पर कृषि उत्पाद खरीदते हैं और उन्हें प्रति क्विंटल कमीशन के आधार पर पैसे दिए जाते हैं।”

पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) में मध्य प्रदेश में 986,560.77 क्विंटल गेहूं की खरीद की गई थी. इससे 12,575 किसानों को फायदा पहुंचा था।

कृषि उपज की खरीद के लिए अलग-अलग समूहों को कुछ निश्चित शर्तों, मसलन ग्रुप का गठन किस साल हुआ था, बैंक खाते और बचत आदि के आधार पर निविदाएं दी जाती हैं.

एमपी-एसआरएलएम (मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) के सीईओ एलएम बेलवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, ” मुझे लगता है कि आने वाले समय में इन महिला समूहों से जुड़ी हर महिला स्वतंत्र रूप से दस हजार रुपये कमा पाएगी.”

उन्होंने कहा कि इन समूहों के अंतर्गत 45 लाख से ज्यादा महिलाओं को संगठित किया जा चुका है और उन्हें खरीद और अन्य गतिविधियों से जोड़कर आमदनी का एक जरिया मुहैया कराया गया है। वह आगे कहते हैं, “कृषि उपज खरीद अभियान ने, काम के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन को भी कम करने में मदद की है।”

यह स्टोरी ट्रांसफॉर्म रूरल इंडियन फाउंडेशन के सहयोग से की गई है।

अंग्रेजी में पढ़ें

Also Read: बिजली सखी, पशु सखी, आजीविका सखी – उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी में आए बदलाव की कहानी

Recent Posts



More Posts

popular Posts