गाँव की एक युवती और उसका टीन का डिब्बा कैसे तोड़ रहा हैं मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाएं

कल्पना, उत्तर प्रदेश के मिर्तला गाँव में एक 'सैनिटरी पैड डिपो' चलाती हैं। अपने इस काम से वे वहाँ की युवा लड़कियों की विश्वासपात्र बन गई हैं, जो अब बिना किसी झिझक के उनके साथ मासिक धर्म और व्यक्तिगत स्वच्छता के मुद्दों पर खुलकर चर्चा करती हैं। पिछले तीन साल से कल्पना गांव की महिलाओं को सस्ते दामों पर सैनिटरी पैड बेच रही हैं।
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मिर्तला (महोबा), उत्तर प्रदेश। हरे रंग का एक कमरा, दीवार से लटकती हुई कपड़े की डोरी और एक कोने में पड़ा चमकदार टिन का बंद बॉक्स। जिसकी चाबी 22 साल की कल्पना के पास थी।

“क्या बॉक्स को खोल दूँ?, “उसने पूछा, और ऐसा करने के लिए फर्श पर बैठ गई। बॉक्स में सैनिटरी पैड के पैकेट, डेटॉल साबुन की टिकिया और कुछ बुकलेट और एक रजिस्टर था।

उसमें लाल और बैंगनी रंग की पुस्तिकाएं जागरूकता सामग्री थीं। जिनमें युवावस्था से संबंधित परिवर्तनों, अवधियों और यौन देखभाल के बारे में जानकारी है। यह रजिस्टर सैनिटरी पैड की जरूरत पड़ते ही कल्पना दीदी के पास आने वाली लड़कियों के नाम रखने के लिए है।

मिर्तला गाँव की कल्पना छह पैड वाले एक पैकेट के लिए 20 रुपये लेती हैं। अगर कोई दो पैकेट खरीदता है तो उसे डेटॉल साबुन मुफ्त में देती हैं। कल्पना इसी कमरे से ‘सेनेटरी पैड डिपो’ चलती हैं।

यहाँ नवंबर 2022 से रजिस्टर का रखरखाव किया जा रहा है। जिसमें इससे जुड़ी सभी जानकारी दर्ज होती हैं। कल्पना कहती हैं उन्होंने इस साल अप्रैल के मध्य तक सैनिटरी टॉवल के 69 पैकेट दे दिए थे। महोबा स्थित गैर-सरकारी संगठन ग्रामोन्नती ने ‘सैनिटरी पैड डिपो’ चलाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित और समर्थन दिया है।

कल्पना किशोर लड़कियों के लिए दीदी और महिलाओं के लिए बिटिया हैं, जिन्हें अपनी माहवारी संबंधी जटिलताओं पर चर्चा करने, मासिक धर्म के बारे में सवाल पूछने या पैड मांगने की जरूरत होती है।

कल्पना कहती हैं, “मुझे वो किस्सा आज भी याद हैं जब एक गाँव की लड़की महक रोती हुई दौड़ती मेरे पास आई। खुद को खून से लथपथ देख वह घबरा गई थी। मैंने अपना स्टील का डिब्बा खोला और उसे सैनिटरी पैड का एक पैकेट दिया।”

“मैंने उसे बताया कि कैसे एक बढ़ती हुई लड़की के लिए पीरियड्स एक सामान्य बात है। मैंने उसे यह भी सिखाया कि पैड का इस्तेमाल कैसे करना है और इसे कितनी बार बदलना है, “कल्पना ने कहा।

महक अपनी मां के पास भी जा सकती थी, लेकिन 22 साल की कल्पना के पास दौड़ कर जाने के पीछे बड़ी वजह है गाँव की महिलाओं के बीच कल्पना का बढ़ता विश्वास।

महक भी कल्पना दीदी के पास जाती हैं।

महक भी कल्पना दीदी के पास जाती हैं।

मिर्तला गाँव में कल्पना दीदी की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि मासिक धर्म भारत के गाँवोँ में एक वर्जित विषय बना हुआ है। लड़कियों और महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा अभी भी गंदे कपड़े का उपयोग करता है और मासिक धर्म स्वच्छता से अनजान है।

महिलाओं की मासिक धर्म की जरूरतों को पूरा करने के लिए मई, 2020 में COVID-19 लॉकडाउन के दौरान डिपो की स्थापना की गई थी। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान सैनिटरी पैड तक पहुंच एक चुनौती थी जो आवश्यक वस्तुओं का हिस्सा नहीं थी।

कल्पना का सैनिटरी डिपो जरुरत से पैदा हुआ था और वह बना रहा। लॉकडाउन के दौरान महक जैसी लड़कियों के लिए पैड फ्री में मिल रहे थे। शहर से दूर भीतरी इलाकों में रहने वालों के लिए ये बड़ी बात थी।

कल्पना को ये सैनिटरी पैड गैर सरकारी संगठों से कम कीमत में मिलते हैं।

“मैंने 200 पैकेट खरीदे थे एक बार, उनमें से कुछ ही बचे हैं, मैं शहर जाऊँगी और जमा पैसे से और पैड खरीदूँगी, ”कल्पना ने कहा।

वे कहती हैं, “गाँव में समान गुणवत्ता वाले पैड की कीमत 50 रुपये प्रति पैकेट है। यहां दुकानदार ज्यादा चार्ज करता है। यहां की लड़कियों के लिए यह महंगा पड़ता है। इसके अलावा, पुरुष दुकानदार से पैड के लिए पूछना उनके लिए आसान नहीं है। यह अभी भी यहाँ एक बड़ी बात है।”

मासिक धर्म और स्वच्छता पर चर्चा

सैनिटरी पैड देने के अलावा, कल्पना गाँव की युवा लड़कियों और महिलाओं के साथ मासिक धर्म की स्वच्छता पर चर्चा भी करती हैं। घर हो या पंचायत भवन , कल्पना के लिए गाँव की लड़कियों के साथ मासिक धर्म पर बात करना या इससे जुडी उनकी समस्या सुनना अब रोज की बात है।

वे कहती हैं, ” हमने गाँव की बैठकों में जो भी चर्चा की उसे वे ध्यान से सुनती और उसपर अमल करती हैं। में पहले माहवारी के बारे में बात करने के साथ ही सैनिटरी पैड के उपयोग और स्वच्छता पर खुल कर चर्चा करती हूँ। हमने ये भी चर्चा की कि लड़कियां अपने बदलते शरीर के बारे में कैसा महसूस करती हैं, वे अपने यौवन के साथ कितनी सहज हैं।”

महिलाओं ने कल्पना पर विश्वास करना शुरू कर दिया है।

“मोहिनी की माँ दूसरे दिन अपनी बेटी के ज्यादा प्रवाह से चिंतित होकर मेरे पास आई। मैंने उन्हें बताया कि यह असामान्य हो सकता है और उसे जिला अस्पताल ले जाने का निर्देश दिया, ”कल्पना ने कहा।

कल्पना अब नियमित रूप से गांव की महिलाओं के साथ मासिक धर्म स्वच्छता पर सत्र आयोजित करती हैं।

जब कल्पना ने अपने गांव में एक ‘सैनिटरी पैड डिपो’ शुरू करने का फैसला किया, तो उनके पिता मुन्ना को पसंद नहीं आया।

“उन्होंने शिकायत की कि गाँव के लोग उन्हें ताने मारते हैं। उनका कहना था कि मुन्ना की बिटिया लड़कियों को भड़काती है और उन्हें बेलगाम कर रही है। लेकिन मेरी मां हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं।” कल्पना ने कहा।

कल्पना का सैनिटरी डिपो जरुरत से पैदा हुआ था और वह बना रहा। लॉकडाउन के दौरान महक जैसी लड़कियों के लिए पैड फ्री में मिल रहे थे। 

कल्पना का सैनिटरी डिपो जरुरत से पैदा हुआ था और वह बना रहा। लॉकडाउन के दौरान महक जैसी लड़कियों के लिए पैड फ्री में मिल रहे थे। 

कल्पना के इस जज़्बे और सोच के पीछे वो सदमा है जो उन्हें स्कूल के दौरान मिला था।

“मैं नौवीं कक्षा में थी और अगले दिन एक परीक्षा थी। मैंने अपने बिस्तर पर खून देखा। मैं दौड़कर मां के पास गई और कहा कि कुछ हो रहा है और मैं मरने वाली हूँ । माँ ने मुझे एक कपड़े का इस्तेमाल करने और वापस सोने के लिए कहा, ”वे याद करते हुए कहती हैं।

कल्पना को आज भी याद है जब वह सुरक्षा के रूप में कपड़े की एक गड्डी का उपयोग करके स्कूल जाती थीं तब कितनी असहज थी। यह मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की यातना थी। यही वजह है कि वो लड़की आज अपने गांव में ‘सैनिटरी पैड डिपो’ चला रही है।

क्योंकि कल्पना का नज़रिया अनौपचारिक है, इसलिए लड़कियां मासिक धर्म के बारे में ही नहीं, उससे सभी बातें खुल कर करती हैं।

“कभी-कभी यह उससे आगे निकल जाता है। वे अपने जीवन पर चर्चा करती हैं और मुझे अपनी आकांक्षाओं, अपनी आशाओं और सपनों के बारे में बताती हैं। मैं उनकी अब सहेली हूँ, ”कल्पना ने कहा।

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