बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कहने वाले को आपने ज़रूर सुना होगा, लेकिन इस वाक्य को ज़मीनी रुप में देखना है तो आपको सोनिया जौली से मिलना चाहिए, जिन्होंने 130 लड़कियों को गोद ले रखा है। इन बच्चियों की सारी ज़िम्मेदारी यही निभाती हैं।
मध्य प्रदेश के सतना की रहने वाली 57 साल की सोनिया जौली को मदर टेरेसा भी कहा जाता है, उनकी संस्थान ‘उपकार हम हैं सोसाइटी’ में हर सुबह छह बजे लड़कियाँ आ जाती हैं, यहीं पर वो पढ़ती भी हैं और पढ़ाती भी हैं। यही से स्कूल चली जाती हैं। यही नहीं लड़कियाँ यहाँ पर सिलाई-कढ़ाई, पार्लर का काम सीखती हैं।
आखिर सोनिया जौली के दिमाग में बच्चियों को आगे बढ़ाने की बात कैसे आई के सवाल पर वो गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं अख़बार में लड़कियों के साथ रेप जैसी घटनाएँ पढ़ती थी तो मन विचलित हो जाता था, कई बार गरीबी के चलते लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है। मुझे लगा कि इन बच्चियों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना चाहिए, एक छोटी सी सही लेकिन कोशिश तो करनी चाहिए। बस साल 2014 से हमने इसकी शुरुआत की।”
बस यहीं से सोनिया ने उपकार हम हैं सोसाइटी की नींव रखी और छह बच्चियों से इसकी शुरुआत की और 130 लड़कियों की ज़िम्मेदारी उठा रहीं हैं।
19 साल की कंचन भी सोनिया जौली की 130 बेटियों में से एक हैं और इस बार बी कॉम सेकंड ईयर में हैं। कंचन गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, एक दिन वहाँ सोनिया माँ आयी थी और उन्होंने हमें गोद लेने की बात कही तब हमें लगा कोई ऐसे ही बोल रहा है। घर जाकर बोला तो पापा ने बोला पता करो कोई बस बेटियों को ही क्यों गोद ले रहा है।”
वो आगे कहती हैं, “फिर स्कूल में हमारे साथ माँ ने एक मीटिंग की, जिसमें अपने काम के बारे में बताया तो हमें उपकार के बारे में पता चला उसके बाद हम उपकार में आ गए और आज बी कॉम में पढ़ाई कर रही हूँ, माँ हमारे लिए वो सब करती हैं जिसकी हमें ज़रूरत होती है।”
बच्चियों की ज़िम्मेदारी लेने से पहले भी सोनिया समाज सेवा करती रहीं हैं। सोनिया कहती हैं, “19 नवंबर 1984 में दिल्ली से मैं शादी करके सतना आयी और मुझे लगता था कि मैं गाँव में आ गई। समय के साथ जब ज़िम्मेदारियाँ कुछ कम हुई तो लगा कि ज़रूरतमंद के लिए कुछ करना चाहिए। मेरे परिवार में दो बेटे, हसबैंड और बहू और पोता है। इनके साथ मिलकर मैंने 14 दिसंबर 1996 में जरूरतमँद लोगों की किसी की राशन की दुकान, कपड़े की दुकान, साड़ी की दुकान इस तरह 16 लोगों की दुकान खुलवाई थी, जिससे उनका घर चल सके।” 2005 से 2014 तक उन्होंने कई सारे लोगों को इलाज भी कराया।
लेकिन सोनिया को सबसे ज़्यादा ख़ुशी तब मिली जब उन्होंने लड़कियों की ज़िम्मेदारी ली। सोनिया कहती हैं, “1 जुलाई 2014 में 6 बेटियों से साथ मिलकर शुरुआत की थी, जिसकी संख्या अभी 130 है। मैं स्लम एरिया में जाकर बच्चियों की ज़िम्मेदारी लेने को कहती थी सरकारी स्कूल में जाती थी जिससे मैं उन बच्चियों तक ज़रुर पहुँच सकूँ जिनको मेरी ज़रूरत है।”
लेकिन बेटियों की ज़िम्मेदारी उठाना आसान काम तो नहीं हैं, बच्चियों का एडमिशन अच्छे स्कूल में कराना उन्हें ट्यूशन पढ़ाना, फीस, स्कूल ड्रेस, जैसी सारी ज़िम्मेदारी सोनिया ही उठाती हैं। सोनिया कहती हैं, “सभी सामान की सारी व्यवस्था मैं खुद करती हूँ, हर दिन किसी नये चैलेन्ज के साथ शुरू करती हूँ, लेकिन शाम तक उनका हल निकाल ही लेती हूँ, इन सभी की व्यवस्था मैं संभालती हूँ।”
130 बच्चियों में सबसे छोटी बच्ची ढाई साल की है, जबकि सबसे बड़ी लड़कियाँ 19 साल की हैं। सोनिया कहती हैं, “ढ़ाई साल की बच्ची हर सुबह अपनी माँ से कहती है, मुझे माँ के पास जाना है ये मेरे लिए सबसे ख़ास है, जैसे मैंने अपने बच्चों को पाला है प्यार दुलार से उसी तरह मैं अपने उपकार की बच्चियों को भी उतना ही प्यार करती हूँ ये भी मेरे बच्चे जैसे ही हैं।”
उपकार हम हैं सोसाइटी से 65 सदस्य जुड़े हुए हैं जो हर महीने पाँच सौ रुपए देते हैं। पड़ोस की स्टेशनरी की दुकान उन्हें पूरे साल की स्टेशनरी देता है, जिससे काफी मदद हो जाती है।
सोनिया कहती हैं, “मेरा मानना हैं एक हाथ से दान करो, दूसरे हाथ को पता भी न चले बेटियों के लिये सिर्फ कहना नहीं, उनके लिए करना ही सच्ची मदद होती है, मैंने हमेशा अपने माता-पिता को लोगों की मदद करते देखा है, तब से मुझे भी बच्चियों के लिए कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है, 29 साल से मैं समाज सेवा कर रही हूँ।”
19 साल की आकाशमी साकेत बीकॉम सेकंड ईयर की स्टूडेंट हैं और 2014 से अपनी सोनिया माँ के साथ हैं ,आकाशमी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “पहले हम अपने गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे एक दिन सोनियाँ माँ हमारे स्कूल आयी और वहीं मेरा सलेक्शन उपकार के लिए हुआ था उसके बाद मैं यहाँ आ गई।”
वो आगे कहती हैं, “माँ के पास आने के बाद पढ़ाई की वैल्यू क्या होती है, ये पता चला, पढ़ाई से ही ड्रीम को अचीव कर सकते हैं। इसके साथ ही माँ ने हमारी पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर काम किया हमें सारी सुविधाएँ दी मैं आगे पटवारी बनना चाहती हूँ।”
यहाँ पर लड़कियों के लिए अलग-अलग तरह की क्लासेज भी चलती हैं, जिसमें कम्प्यूटर क्लासेज, सिलाई कढाई, इंग्लिश स्पीकिंग र्कोस ताकि बच्चियाँ हमेशा नयी चीजें सीखती रहें।