लखनऊ। चीनी उत्पादन में पूरी दुनिया को राह दिखा रहे भारत में 100 साल पहले गन्ने की संकर प्रजाति “प्रजाति 205” को विकसित करके देश में ”मिठास क्रांति” क्रांति की शुरूआत की गई थी। गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर की रिपोर्ट के अनुसार आजादी के बाद से आजतक इस संस्थान ने गन्ने की सैकड़ों प्रजातियों का विकसित किया, जिसकी खेती करके देश में गन्ना और चीनी उत्पादन को बढ़ाया गया।
पिछली एक शताब्दी में इस संस्थान ने गन्ना की विभिन्न प्रजातियों की खोज करके देश में गन्ना की खेती और चीनी उत्पादन का बढ़ाया गया। इस अवसर पर केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, “प्रजाति 205” उपोष्ण जलवायु के लिए विकसित किया गया था। इस हाइब्रिड के कारण उत्तर भारत में गन्ना उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और इसने प्रचलित सेकेरम बारबरी और सेकेरम साईंनैन्सिस जैसी गन्ने की प्रजातियों को मात दी।’
गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर के निदेशक बख्शीराम ने बताया, ” वर्ष 1918 में पहली बार डा. वेंकटरमण के सहयोग से देश की पहली अन्तरजातीय संकर प्रजाति (सेकेरम ऑफसिनेरम व सेकेरम स्पोंटेनियम का क्रॉस) 205 को वाणिज्यिक खेती के लिए विकसित किया था।”
उन्होंने बताया कि मिठास क्रांति के पूरे होने पर देशभर के कृषि विश्वविद्यालयों और गन्ना संस्थानों में शताब्दी वर्ष को मनाया जा रहा है।पिछले दिनों नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और गन्ना प्रजनन संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्र करनाल की तरफ से ‘‘भारत में मिठास क्रांति के सौ 100 वर्ष ” का आयेाजन किया गया।
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आजादी के पहले साल 1912 में तत्कानी मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतगर्त गन्ना अनुसंधान स्टेशन के नाम से गन्ना प्रजनक संस्थान की शुरूआत की गई थी। जिसे ब्रिटिश सरकार अनुदान देती थी। डॉ. सी.ए. बारबर इस स्टेशन के पहले प्रधान और गन्ने के सरकारी विशेषज्ञ थे। गन्ने की पहली अंतर- जातीय व्यवससायिक प्रजाति “प्रजाति 205” को उन्होंने ने लोकार्पण किया था। यह प्रजाति भारत से निकलकर क्यूबा और अमेरिका के फ्लोरीडा में अपनी पहचान बनाई।
1926 में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र खासर उत्तर भारत में गन्ने की खेती के लिए नए किस्म को विकसित करने की शुरूआत हुई थी। 1928 में इस संस्थान ने गन्ने की 312 नामक प्रजाति को विकसित किया। जिसने तीन दशक तक यह भारत में गन्ने सबसे मशहूर प्रजाति के रुप में राज की। हाल ही में गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, करनाल ने 0238 नामक प्रजाति को विकसित किया था।
इस प्रजाति से देश के हर राज्य में गन्ने की पैदावार और चीनी रिकवरी में वृद्धि देखने को मिली है। पिछले सीजन में इस प्रजाति की उत्तर प्रदेश में 36 प्रतिशत, पजांब में 63 प्रतिशत, हरियाणा में 39 प्रतिशत, उत्तराखण्ड में 17 प्रतिशत और बिहार में 16 प्रतिशत गन्ना क्षेत्रफल में खेती की गई। प्रजाति 0238 और प्रजाति 0118 पूरे उत्तर भारत की चीनी मिलों की पहली पंसद बन चुकी है। प्रजाति 0238 से गन्ना किसान अधिक पैदावार प्राप्त कर रहे हैं और चीनी मिलें अधिक चीनी प्राप्त कर रहीं हैं।
”मिठास क्रांति” का ही असर है कि देश में चीनी उद्योग एक महत्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग के रूप में स्थापित हो चुका है। इस उद्योग से लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे 5 लाख कर्मियों को आजीविका मिली है। इसी क्रांति का नतीजा है कि भारत ब्राजील के बाद विश्व में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। आज भारतीय चीनी उद्योगों का वार्षिक उत्पादन 80000 करोड़ रूपए है। देश में 682 चीनी मिलें स्थापित हैं जिनकी पेराई क्षमता लगभग 300 लाख टन चीनी उत्पादन की है।