लखनऊ। उत्तर प्रदेश देश का ऐसा राज्य है, जिसको अपनी जरूरत का 60 फीसदी मछली दूसरे राज्यों से मंगाना पड़ता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग की तरफ से प्रदेश के किसानों को मछली पालन का बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। ऐसी ही एक योजना मीठे जल में महाझींगा पालन है। किसान इस योजना का लाभ उठाकर आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं। संयुक्त निदेशक मत्स्य एस.के़ सिंह ने यह जानकारी दी।
उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां पर मीठे पानी के विभिन्न प्रकार के जल संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। प्रदेश में अभी तक मुख्य रूप से कार्प मछलियों जिसमें भारतीय मेजर कार्प में कतला, रोहू व नैन और विदेशी कार्प में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कामन कार्प के पालन ही हो रहा है लेकिन मत्स्य विभाग की तरफ से अब झींगा पालन पर भी बल दिया जा रहा है। मत्स्य पालक झींगा पालन के माध्यम से पर्याप्त रूप से लाभान्वित हो सकते हैं। यह झींगा 6 से लेकर 7 महीने में तैयार होने वाली नगदी फसल है। बाजार में यह झींगा 200 रूपए से लेकर 300 रुपए तक बिकता है।
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मछली पालक प्रशिक्षक रामअचल निषाद ने बताया ” झींगा पालन के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के आयताकार ऐसे तालाब जिनमें पानी भरने और बाहर निकालने की उचित व्यवस्था हो। ऐसा सही माना जाता है।” उन्होंने बताया कि इस तालाब की मिट्टी की पी-एच 6.5-7.5, रेत 40 प्रतिशत, क्ले की मात्रा 40 प्रतिशत और सिल्ट 20 प्रतिशत होनी चाहिए। इस तालाब का जल का रंग हल्का हरा और भूरा होने के साथ ही इसकी गहराई एक मीटर होनी चाहिए। महाझींगा पालन के लिए किसानों को बीज तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और उड़ीस से मंगाया जा सकता है। इसके लिए मत्स्य पालक उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग से संपर्क कर सकते हैं।
झींगा 6 महीने से लेकर 7 महीने तक तैयार हो जाता है। मादा झींगों की अपेक्षा नर झींगे आकार में बड़े होते हैं। सभी झींगे तालाब को खाली करके निकाले जा सकते हैं। उत्रर प्रदेश मत्स्य विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश में सालाना 150 लाख टन मछली की जरुरत पड़दती है जबकि प्रदेश में कुल उत्पादन मात्र 45 लाख टन ही हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत लोगा मांसाहारी हैं और सालाना प्रति व्यक्ति यहां 15 किलोग्राम मछली की आवश्यकता है।
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राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश में एक लाख 73 हजार हेक्टेयर में तालाब, एक लाख 56 हजार हेक्टेयर में जलाशय, एक लाख 33 हजार में झील और 28500 किलोमीटर लंबी नदियां हैं। इसके बाद भी यहां पर 50 प्रतिशत उपलब्ध संसधान में ही मछली पालन किया जाता है जिसके कारण प्रदेश में जितना मछली का उत्पादन होना चाहिए नहीं हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य विभाग की तरफ से मछली पालकों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में मछली पालन के के लिए गांव के तालाब का पट्टा लेने के लिए मछली पालक को ग्राम सभा में आवेदन देकर प्रस्ताव तैयार कराना पड़ता है, इसके बाद इसे तहसीलदार और उप जिलाधिकारी कार्यालय में जमा करना पड़ता है। वहां से जांच के बाद ग्राम सभा के जरिए तालाबा का पट्टा मिलता है।