बाराबंकी। मेंथा यानि पिपरमिंट की खेती करने वाले किसानों और इससे जुड़े कारोबारियों के लिए अच्छी ख़बर है। पांच साल बाद मेंथा के तेल की कीमत 1700 रुपए के पार पहुंच रही हैं। बाराबंकी में शुक्रवार को मेंथा 1720 रुपए प्रति किलो बिका है। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में कीमतें 2000 का भी आंकड़ा छू सकती हैं।
भारत दुनिया में सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक मेंथा के कारोबार में 75 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी भारत की है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सिंथेटिक मेंथा के आने के बाद से कारोबार में लगातार गिरावट हो रही थी और पिछले कई वर्षों में मेंथा ऑयल 700-1000 रुपए के बीच बिक रहा था।
सुबह 1720 पर रेट खुला जो शाम को 1680 रुपए प्रति किलो पर बंद हुआ, ये बाजार के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इससे पहले साल 2012 और उससे पहले 1991 में मेंथा काफी महंगा बिका था, जब किसान और कारोबार सबको फायदा हुआ था।
प्रेम किशोर, वर्मा ट्रेडिंग कंपनी, बाराबंकी, यूपी
मेंथा का गढ़ कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में शुक्रवार की सुबह जब मेथा का कारोबार शुरु तो कीमतें 1720 रुपए प्रति किलो पर खुलीं। वर्ष 2012 के बाद ये पहली बार था जब रेट यहां तक पहुंची। मेथा का कारोबार करने वाली फर्म वर्मा ट्रेडिंग कंपनी के प्रेम किशोर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “ आज सुबह 1720 पर रेट खुला जो शाम को 1680 रुपए प्रति किलो पर बंद हुआ, ये बाजार के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इससे पहले साल 2012 और उससे पहले 1991 में मेंथा काफी महंगा बिका था, जब किसान और कारोबार सबको फायदा हुआ था। इसका सीधा असर अब बुआई पर पड़ेगा।’
देश में सबसे ज्यादा मेंथा की बुआई बाराबंकी और उसके आसपास होती है। यहां के जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह बताते हैं, हमारे जिले में पिछले वर्ष 67 हजार हेक्टेयर का रकबा था, जो इस बार 75 हजार हेक्टेयर तक पहुंच जाएगा। हालांकि अब रेट बढ़ने से ज्यादा फायदा बड़े किसानों को होगा, क्योंकि छोटे किसान पेराई के कुछ दिनों पर बाद तेल बेच देते हैं।’
किसानों की मेहनत से हार गया शायद सिंथेटिक मेंथा
मेंथा के इस रेट से कारोबारियों के साथ मेंथा के प्रचार प्रसार में जुटे केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिक भी काफी खुश हैं। सीमैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सौदान सिंह बताते हैं, “ आप इसको किसान और सीमैप की जीत कह सकते हैं, क्योंकि सिंथेटिक मेंथा कारोबार को चौपट कर दिया था, लेकिन सीमैप की नई किस्सों और अगेती मिंट की सस्ती तकनीकी के जरिए किसान कम लागत में मेंथा उगाते रहे और फैक्ट्रियों में तैयार हो रहे सिंथेटिक मेंथा मुकाबला करते रहे, अब लगता है वो फैक्ट्री वाले किसान के प्राकृतिक उत्पाद के आगे हार गए हैं।’
आप इसको किसान और सीमैप की जीत कह सकते हैं, क्योंकि सिंथेटिक मेंथा ने कारोबार को चौपट कर दिया था, अब लगता है वो फैक्ट्री वाले किसान के प्राकृतिक उत्पाद के आगे हार गए हैं, इससे मेंथा की तरफ किसानों का रुझान बढ़ेगा।
डॉ. सौदान सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सिमैप
वो फोन पर आगे बताते हैं, “ ये वो कमोडिटी है, जहां चीन भारत के आगे कहीं नहीं टिकता। ये किसानों के लिए अच्छी ख़बर, आने वाले दिनों में रेट और बढ़ने चाहिए, क्योंकि अंतराष्ट्रीय मार्केट में भारत सबसे बड़ा निर्यातक है। 1990 के दशक में चीन था अब भारत का दबदबा है। आप ये समझ लीजिए करीब 7 हजार करोड़ का कारोबार है, जिसमें से चार से साढ़े हजार करोड़ भारत से है, इसलिए मुझे उम्मीद है आगे और रेट बढ़ सकते हैं। इस बार रोपाई का रकबा भी बढ़ेगा।’ इकनॉमिक्स टाइम्स ने एंगल कमोडिटी के डीएवी रिसर्च कमोडिटी के अऩुज गुप्ता के हवाले से लिखा है कि दिसंबर के आखिर में रेट 1900 तक पहुंच सकते हैं,यहां तक की ये आंकड़ा 2000 तक भी पहुंच सकता है।
सौंदर्य उत्पाद ( कॉस्मेटिक), औषधि समेत कई क्षेत्रों में मेंथा का इस्तेमाल होता है। यूपी में बाराबंकी, कन्नौज, बदायूं समेत कई जिलों में इसकी खेती होती है, तो अब उत्तराखंडा उधमसिंह नगर भी बड़ी मंडी बनता जा रहा है। सीमैप के मुताबिक बिहार में काफी तेजी से रकबा बढ़ा है तो पंजाब के कुछ इलाकों में भी किसान मेंथा उगा रहे हैं।