टेक्सटाइल्स, एफएमसीजी और ऑटोमोबाइल्स सेक्टर के बाद अब देश की टी इंडस्ट्री (tea industry ) पर भी मंदी का खतरा मंडराने लगा है। बढ़ती उत्पादन लागत और घटती मांग के कारण लगभग 30 लाख लोगों को रोजगार देने वाला चाय उद्योग सरकार से खुद को बचाने की गुहार लगा रहा है।
अखबारों में बाकायदा विज्ञापन देकर टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सरकार से मदद की अपील की है। 10 लाख लोगों के रोजगार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। टी सेक्टर के कारोबारी राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं।
चाय उत्पादकों का कहना है कि उनकी स्थिति इतनी खराब है कि वे इस साल दुर्गापूजा में मजदूरों को बोनस तक नहीं दे पाएंगे। चाय के उत्पादन लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही जबकि चाय की कीमतें स्थिर हैं। इस संकट के लिए इसे सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है।
भारतीय चाय संघ के अनुसार 2013-14 में चाय का औसत बिक्री मूल्य 150 रुपए प्रति किलोग्राम से ज्यादा था, जबकि उत्पादन लागत 150 रुपए प्रति किलोग्राम से थोड़ी कम थी। वहीं 2018-19 में इसकी उत्पादन लागत 200 रुपए प्रति किलोग्राम के ऊपर पहुंच गयी जबकि बिक्री मूल्य 160 रुपए के स्तर पर ही है। इससे चाय उद्योग घाटे में जाने लगा।
नार्थ ईस्ट टी एसोसिएशन असम के सलाहकार विद्यानंद बरकाकती गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, ” हमने अपनी स्थिति को लेकर केंद्रीय उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों से बात की है। अब देखते हैं कि आगे क्या होगा। “
वे आगे कहते हैं, ” हम हर साल श्रमिकों को 20 फीसदी तक बोनस देते हैं, लेकिन इस बार हमारी हालत खराब है। चाय उत्पादकों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। इसलिए हम इस साल कोई बोनस नहीं दे पाएंगे। पिछले कई वर्षों से चाय की कीमत बढ़ी ही नहीं है। ऐसे में हमारे लिए मुनाफा तो दूर की बात हो गई है।”
भारतीय चाय संघ (आईटीए) ने अपने विज्ञापन में सरकार से तीन साल के लिए चाय बागान श्रमिकों का भविष्य निधि में जाने वाले हिस्से का योगदान करने का अनुरोध किया। इसके अलावा उसने पांच साल के लिए अधिक आपूर्ति को रोकने के लिए चाय क्षेत्र के विस्तार पर भी रोक लगाने की मांग की है।
साथ ही सरकार से देश की चाय के जेनेरिक संवर्द्धन के लिए एक पर्याप्त निधि बनाने पर विचार करने के लिए भी कहा है। संगठन ने सरकार से चाय की नीलामी में न्यूनतम आरक्षित मूल्य तय करने के लिए भी कहा जो उत्पादन लागत पर आधारित हो।
अपनी अपील में आईटीए ने यह भी कहा है कि 10 लाख से अधिक से लोगों का रोजगार संकट में है। ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
इस विज्ञापन में एक ग्राफ भी दिया गया है जिसमें पंजीकृत चाय बागानों में चाय की औसत उत्पादन लागत और उसके औसत बिक्री मूल्य का अंतर बताया गया है। यह तुलना 2013-14 और 2018-19 के आंकड़ों के बीच की गयी है।
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भारतीय लघु चाय उत्पादक संघ के अध्यक्ष बिजोय गोपाल चक्रबोर्ती चाय उत्पादन की लागत और मुनाफे की पूरी गणित समझाते हैं। वे सबसे बड़े चाय उत्पादक राज्य असम का हवाला देते हुए गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, ” वर्ष 2013-14 में एक किलो चाय की औसत कीमत 153.70 रुपए थी। वर्ष 2015 में ये कीमत 153.46 पैसे प्रति किलो पर आ गई। फिर 2017 में यह 152.75 रुपए और 2018 में थोड़ी बढ़ोतरी के साथ कीमत 156.43 रुपए प्रति किलो पर पहुंचती है।”
वे आगे कहते हैं, ” पिछले पांच सालों में प्रति किलो ग्राम चाय की कीमत में .44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जबकि कोयला और गैस की कीमतें में 6-7 फीसदी बढ़ी हैं। उत्पादन में आने वाली लागत बढ़ती जा रही है।”
” अब इस दौरान आप लागत पर नजर डालिए। पश्चिम बंगाल में 2014 में मजदूरों को एक दिन की मजदूरी 90 रुपए से बढ़ाकर 132.50 रुपए कर दी गई। इसके बाद 2017 में इसे बढ़ाकर 150 रुपए फिर 2018 में 159 रुपए कर दिया गया। और अब यह मजदूरी दर 176 रुपए हो गई है। असम में भी मजदूरी दरों में 20 फीसदी की ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।” बिजोय गोपाल आगे कहते हैं।
बिजोय गोपाल अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं इस इंडस्ट्री में बड़ी कंपनियां भी खेल कर रही हैं। वे चाय की कीमतें बढ़ने नहीं दे रहे हैं। वे चाय खरीदते समय ही कीमतों पर नियंत्रण कर लेते हैं। लेकिन जब वे चाय बेचते हैं तब उसमें ज्यादा मुनाफा कमाते हैं। सबसे ज्यादा संकट तो छोटे चाय उत्पादकों पर है जो देश के चाय उत्पादन में 50 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे हमें राहत पैकेज दे ताकि हम इस संकट से उबर पाएं।
चाय उत्पादन में दुनिया में दूसरे नंबर पर आने वाले भारत में कई चाय बागानों के अस्तित्व पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा है। चाय बोर्ड के अनुसार भारत में जितने में भी चाय बागान हैं उसमें से 18 प्रतिशत की स्थिति बहुत ही दयनीय है। देश के 16 राज्यों में चाय के बागान हैं।
इंडियन टी बोर्ड के अनुसार असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में देश का 95 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। 701 मिलियन किलो ग्राम के उत्पादन के साथ असम देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक प्रदेश है। 344 मिलियन किलो ग्राम के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे नंबर पर।
वर्ष 2017 में चीन में कुल 2609 मिलियन किलो चाय का उत्पादन होता है और विश्व के कुल निर्यात में उसकी 20 फीसदी हिस्सेदारी थी। 1322 मिलियन किलो उत्पादन और विश्व निर्यात में 14 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत दूसरे स्थान पर रहा।
लेकिन अगर चाय के कुल उत्पादन के हिसाब से निर्यात के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो पूरी तस्वीर साफ हो जायेगी।
वर्ष 1998 में देश में 874 मिलियन किलो ग्राम चाय की पैदावार होती है और इसमें 210 मिलियन किग्रा चाय का निर्यात होता है। वर्ष 2017 में कुल 1322 मिलियन किलो ग्राम में 252 मिलियन किलो का ही निर्यात हो पाता है। वर्ष 2018 में ही स्थिति ज्यादा नहीं बदलती और 1339 मिलियन किलो ग्राम में मात्र 256 मिलियन किलो चाय का ही निर्यात हो पाता है।
वर्ष 2016 में भारत में कुल चाय की पैदावार 1267 मिलियन किलो हुई थी यानि 2017 में उत्पादन में कुल 55 मिलियन किलो ग्राम की बढ़ोतरी हुई जबकि कीमतें और खपत इस हिसाब से नहीं बढ़ी।
विद्यानंद बरकाकती कहते हैं कि मांग से ज्यादा उत्पादन हमारी बर्बादी का बड़ी वजह है। वर्ष 2009 में 979 मिलियन किलो ग्राम से 2018 में हमारा उत्पादन 1339 मिलियन किलो ग्राम तक पहुंच जाता है जबकि हमारी घरेलू खपत 786 ग्राम प्रति व्यक्ति ही है जो बहुत कम है। जब तक हमारी खपत नहीं बढ़ेगी तब तक इस सेक्टर की स्थिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं होगी
अगर औसतन कीमतों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि भारत में वर्ष 2016 में एक किलो चाय की कीमत 134.26 रुपए थी। वर्ष 2017 में इसकी कीमत 1.15 रुपए की गिरवाट आई और यह 133.11 रुपए पर आ गयी जबकि इस दौरान श्रीलंका में 151 रुपए और केन्या में 52 रुपए की बढ़ोतरी प्रति किलो चाय पर हुई।
इंडियन टी बोर्ड के उप निदेशक डॉ ऋषिकेश राय चाय इंडस्ट्री में आये संकट के लिए कुछ कारणों को भी जिम्मेदार बताते हैं। वे गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, ” चाय उद्योग के सामने गुणवत्ता सबसे बड़ी समस्या है। 47 फीसदी लघु उत्पादक हैं जिनके पास तीन हेक्टेयर से कम के बागान हैं। इन लोगों में जागरुकता की कमी है। वे कम कीमत में ही स्थानीय कंपनियों को पत्तियां बेच देते हैं जो गुणवत्ता का ध्यान नहीं देते।हमारे कई निर्यातक देशों में यह नियम है कि चाय में कीटनाशक नहीं होने चाहिए। उन्होंने इसके लिए एमआरएल (Minimum Residue limit) का मानक तय कर रखा है जिसका पालन हमारे यहां नहीं कि जा रहा। “
वे आगे कहते हैं, ” एफएसएसएआई ने भी गुणवत्ता में सुधार के लिए गाइडलाइंस जारी की है लेकिन छोटे चाय उत्पादक इस ओर ध्यान ही नहीं देते। इसके अलावा सही मूल्य का न मिलना भी बड़ी समस्या है। चाय की झाड़ियां बहुत पुरानी हो गई हैं जिसे बदलने की जरूरत है। इसके लिए टी बोर्ड इस ओर योजना बनाकर काम कर रहा है।”