मिथिलेश धर दुबे / अरविंद शुक्ला / दिति बाजपेई
“वो तारीख थी 02 दिसंबर-2018। मैं मंडी में लगभग 20 कुंतल प्याज लेकर गया। अगली फसल की तैयारी के लिए पैसे चाहिए थे। सोचा था कि जो पैसे मिलेंगे उससे कुछ घर के काम भी करूंगा। लेकिन जब मंडी पहुंचा तो वहां प्याज की कीमत 50-80 पैसे प्रति किलो थी। मतलब 2000 किलो प्याज के बदले मुझे लगभग 1000 रुपए मिल रहा था। मंडी तक प्याज लाने में ही मेरा 600 रुपए खर्च हो गया था। इतने प्याज के पीछे जो खर्च आया उसकी तो बात ही छोड़ दीजिए।” मध्य प्रदेश के नीमच जिले के किसान कुलदीप पाटीदार कहते हैं।
मध्य प्रदेश के नीमच तहसील के गाँव भीमसुख के रहने वाले कुलदीप बताते हैं “अब इतने कम दाम में प्याज तो बेच नहीं सकता था। बहुत नाराजगी थी लेकिन इतना प्याज मैं रखता भी तो कहां? इसलिए उन्हें जानवरों को खिला दिया। उसके बाद प्याज की खेती की ही नहीं। अब आज देखिए, उसके ठीक 8 महीने बाद जब मैं बाजार जाता हूं तो उसी प्याज को खाने के लिए 70-80 रुपए प्रति किलो खरीद रहा हूं। मंडी में दाम तो खूब चढ़ गया है लेकिन अब किसानों के पास प्याज तो है नहीं।”
देश में इस समय प्याज की कीमतों को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। बाजारों में प्याज की कीमत कहीं 80 रुपए, तो कहीं 60 से 70 रुपए प्रति किलो है। प्याज की कीमत को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने 2,000 टन प्याज आयात करने का भी फैसला लिया है, पहली खेप अफगानिस्तान से आ चुकी भी है।
प्याज की इस बढ़ी हुई कीमत से आमजन भी परेशान हैं। लखनऊ के बादशाह नगर के रहने वाले शिव शंकर यादव कहते हैं, ” प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करता हूं। अब 80-90 रुपए किलो में प्याज खरीदकर कैसे खाउंगा। इससे सस्ता तो आजकल सेब है। इधर कुछ हफ्तों से हमने प्याज खाना बंद कर दिया है। अब जब कीमत कम होगी तब खरीदूंगा।
जिस प्याज की कीमतें आज आसमान छू रही हैं, मई-जून के महीनों में जब किसान इसे मंडियों में लेकर जाता है तो कीमत कौड़ियों में होती है। ऐसे में सवाल यह भी है कि जब किसान 50 पैसे किलो में प्याज बेचता है तो आम आदमी उसे 80 रुपए में खरीदने के लिए मजबूर क्यों हैं? और क्या इसकी बढ़ी हुई कीमत से किसानों को फायदा होता है?
बढ़ी कीमतों से किसानों को कितना फायदा ?
प्याज की बढ़ी कीमतों से किसानों को कितना फायदा हो रहा है? इस सवाल का जवाब हमें मध्य प्रदेश के इंदौर से लगभग 40 किमी दूर ब्लॉक महू के हरसोला गाँव के किसान कृष्णा पाटीदार देते हैं। ” आप फायदे की बात कर करे हैं। हमें तो लागत मूल्य मिल गया होता तो भी हम खुश हो जाते,” किसान कृष्णा पाटीदार बोलते हैं।
कृष्णा हमें प्याज की खेती का गणित समझाते हैं। वो बताते हैं कि कैसे प्याज की खेती उनके जैसे किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। एक बीघे प्याज की खेती में आने वाली लागत के बारे में कृष्णा कहते हैं “आधा एकड़ खेत में प्याज की खेती के लिए सबसे पहले तो पांच हजार रुपए का बीज ही लग जाता है। इसके बाद प्याज को रोपने (खेत में लगाने) की पूरी प्रक्रिया में चार से पांच हजार रुपए का खर्च आ जाता है। इसके बाद खाद और दवाओं का खर्च 15 हजार रुपए से ज्यादा हो जाता है।
आगे कहते हैं, “जब फसल पक जाती है तब निकालने के लिए जो मजदूर लगते हैं उसके पीछे भी सात से आठ हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। कुल मिलाकर आधे एकड़ खेत में 30 से 35 हजार रुपए का खर्च आ जाता है, जबकि पैदावार सवा सौ कुंतल (100 कुंतल से ज्यादा) के आसपास होती है। ऐसे में पांच रुपए के प्रति किलो के हिसाब कुल 50,000 रुपए की फसल हुई। इसमें ट्रैक्टर से मंडी तक जाना, सिंचाई आदि का पानी नहीं जुड़ा है। ऐसे में आप खुद फायदे और नुकसान का आंकलन कर सकते हैं।
कृष्णा कहते हैं, “एक किलो प्याज पैदा करने में कम से कम 10 से 11 रुपए तक खर्च आता है। ऐसे में हमें कीमत 1500 रुपए कुंतल तक मिले तो कुछ बात बनती। अब इस पर बात करने से भी क्या फायदा। अब जब कीमत बढ़ी है तो भला हमें क्या फायदा।”
पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र के किसान बसवान गौदार ने 1890 किलो प्याज 1681.50 में बेचा। इसमें उन्होंने 180 रुपए लेबर खर्च दिया, 55.70 रुपए तुलाई का खर्च दिया और 1994 रुपए ट्रांसपोर्ट का खर्च आया। मतलब कि कुल खर्च हुआ 2229.70 रुपए। अंत में किसान अपनी जेब से 548 देकर मंडी से घर वापस गया।
किसान सेवा संघ, महाराष्ट्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश काकड़े इस घटना के बारे में बताते हैं, “अब किसानों के पास प्याज है नहीं। अब कीमत इतनी बढ़ गई। सरकार इस ओर कुछ कर ही नहीं रही है। हमारी नीतियां ही गड़बड़ हैं। किसान अब बस नुकसान का ही हिस्सेदार रह गया है। जब हम उपज पैदा करते हैं तो उसकी कीमत घटा जाती है। उसी समय सरकार को इस पर नियंत्रण करना चाहिए।”
प्याज के खेल के बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एग्री बिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफेसर डॉ. सेन चंद्र कहते हैं, “सरकार से लेकर विपक्ष तक ने प्याज के नाम पर सिर्फ राजनीति की, लेकिन प्याज के नाम पर देश में क्या हो रहा है, इसकी सच्चाई कभी सामने लाने की कोशिश नहीं की। उपभोक्ता शहरों में रहते हैं, इसलिए उनकी आवाज बड़ी आसानी से सुन ली जाती है। जब दाम बढ़ता है तब उपभोक्ताओं के सामने सरकार झुक जाती है। किसान राजनीति के केंद्र में तो है लेकिन उसका इस्तेमाल बस वोटों तक ही सीमित है।”
महाराष्ट्र के नासिक में कनार्टक के बीजापुर से आए कई किसान एक सुर में बताते हैं, “प्याज के जो दाम बढ़े हैं, उससे उनको कोई फायदा नहीं हो रहा है। प्याज के बढ़े हुए दामों से बस वह कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं, जिसको हमने 5 से 15 रुपए में प्याज बेचे हैं। सरकार को चाहिए कि हम किसानों के लिए स्टोरेज की सुविधा प्रदान करे, जिससे हम प्याज स्टोर कर सकें और जब इसके दाम बढ़ें तो हम भी फायदा उठा सकें।”
आखिर प्याज की कीमतें क्यूं बढ़ीं ?
वर्ष 2018-19 में भारत ने 3,468 करोड़ रुपए में 2.1 करोड़ कुंतल प्याज निर्यात किया। जबकि इस वर्ष प्याज आयात करने की नौबत नहीं आई। इसके पिछले वर्ष 2017-18 में भारत ने लगभग 11 करोड़ रुपए से 65925.85 कुंतल प्याज आयात किया जबकि 3088 करोड़ रुपए का 15.88 लाख कुंतल प्याज निर्यात भी किया।
लेकिन 2019-20 की स्थिति ठीक नहीं लग रही। बढ़ी कीमतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार दो हजार कुंतल प्याज आयात करने जा रही है, जबकि हम इस सीजन में 35.23 लाख कुंतल प्याज निर्यात भी कर चुके हैं। इस वर्ष के निर्यात के आंकड़े अप्रैल से मई, 2019 के बीच के हैं।
इस साल जब हमने प्याज दूसरे देशों को बेचा तब हमारे देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव, नासिक में प्याज की कीमत 500 से 1000 रुपए प्रति कुंतल थी। आज मतलब निर्यात के ठीक तीन महीने बाद जब हम प्याज दूसरे देशों से मंगा रहे हैं, तब इसी मंडी में प्याज की कीमत 2300 से 4000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुकी है। मतलब जब किसानों के पास माल ज्यादा था तब हमने उसे सस्ते दामों में बेचा और वही प्याज ज्यादा कीमत में खरीद रहे हैं।
गाँव कनेक्शन के प्रधान संपादक डॉ. एस. बी मिश्र इसके लिए सरकार की आयात-निर्यात नीति को दोषी मानते हैं। वह कहते हैं, ” जब डिमांड बढ़ जाती है तो सप्लाई घट जाती है, तब सरकार शहरी लोगों को राहत देने के लिए आयात का सहारा लेती है, जैसे प्याज का आयात हो रहा है। जब इसकी पैदावार ज्यादा हुई तो से बाहर भेजने का फैसला सही समय पर नहीं हुआ। मतलब, अगर सही समय पर फैसले ले लिए जाएं कि निर्यात करना है या आयात करना, तो किसानों को बड़ा लाभ पहुंचाया जा सकता है और आम लोगों को बढ़ी हुई कीमतों से भी छुटकारा मिल जायेगा।”
हालांकि, नई दिल्ली की आजादपुर मंडी के कारोबारी और ऑनियन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा इसके लिए खराब मौसम को जिम्मेदार ठहराते हैं। राजेन्द्र शर्मा फोन ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया, “दक्षिणी राज्यों में बारिश के कारण इस बार प्याज की कीमतों में उछाल आई है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में भारी बारिश की वजह से प्याज की फसल बर्बाद हुई, साथ ही, उधर से आवक भी रुक गई है जिस कारण प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। उधर, मध्य प्रदेश में लगातार बारिश हो रही है जिस कारण वहां से भी प्याज दूसरे प्रदेशों तक नहीं पहुंच पा रहा है।”
इस साल मॉनसून सीजन में हुई बारिश के आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां सामान्य से सबसे अधिक बारिश हुई है। यहां के 51 जिलों में 22 में सामान्य से अधिक और 8 जिलों में अति वृष्टि हो चुकी है। बारिश अभी हो ही रही है और कई जिलों में तो भारी बारिश की चेतावनी मौसम विभाग द्वारा दी गई है।
महाराष्ट्र में भी सामान्य से अधिक बारिश हो रही है। यहां के 36 में से 8 जिलों में सामान्य से अधिक और 8 जिलों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हो रही है।
“अब अफगानिस्तान से प्याज की पहली खेप पंजाब पहुंच चुकी है। हालांकि उनके प्याज की कीमत 30 रुपए प्रति किलो है जो कि यहां के व्यापारियों के हिसाब से ज्यादा है। इसलिए आयात हुआ प्याज अभी ज्यादा बिक नहीं रहा। लेकिन जैसे ही बारिश रुकेगी और हमारा लोकल माल मंडियों तक पहुंचने लगेगा तो कीमत अपने आप ही गिरेगी,” राजेन्द्र शर्मा ने बताया।
पिछले साल के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो सितंबर महीने में हर साल औसतन 6 से 6.5 मीट्रिक टन प्याज की बिक्री 10 से 20 रुपए प्रति किलो हुई। लेकिन 2015 से स्थिति थोड़ी बदली। 2015 सितंबर में बाजार में 3.4 मीट्रिक टन प्याज ही बाजार पहुंचा। इस साल 24 सितंबर तक बाजार में 3.1 मीट्रिक टन प्याज ही बाजार तक पहुंच पाया है।
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“थोक मंडी में प्याज 40 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। रोजाना 20-25 टन के 50-60 ट्रक आ रहे हैं। अगर मौसम साफ रहता है तो हमें इसमें बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। इसके बाद कीमत नियंत्रित हो जायेगी।” राजेंद्र शर्मा कहते हैं।
दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी संघ (नाफेड) के अनुसार इनके पास अभी 30 हजार टन प्याज है। यहां से पश्चिम बंगाल, पंजाब, ओडिशा, असम नई दिल्ली और केरल को प्याज भेजा जा रहा है।
नाफेड ने पिछले दिनों अपने एक बयान में कहा था कि देश में प्याज का इतना स्टॉक है कि बाहर से मंगाने की जरूर ही नहीं पड़ती लेकिन यह सब कुछ कारोबारियों का किया कराया है। जब तक वे उपज मार्केट में छोड़ेंगे नहीं तब तक कीमत कम नहीं होगी। क्योंकि बाहर से प्याज आने में अभी समय लगेगा।
केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के वर्ष 2012 में किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में प्याज की कुल पैदावार का 20 फीसदी हिस्सा ही किसानों के पास होता है। जबकि 18.1 फीसदी हिस्सा कोल्ड स्टोरेजे में रखा होता है। थोक व्यापारियों के पास 38 और रिटेलर के पास 22.3 फीसदी स्टॉक होता है।
क्या स्टोरेज न होना भी है बड़ी वजह?
इमर्सन क्लाइमेट टेक्नोलॉजीज इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सालाना 44,000 करोड़ रुपए का फल-सब्जी और अनाज बर्बाद हो जाता है। सीफेट की ही एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 6.1 करोड़ टन कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है, ताकि बड़ी संख्या में फल, अनाज के साथ खाद्यान्न खराब न हो। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार में नहीं पहुंच पाता है।
नासिक महाराष्ट्र के सरस्वती वाडी देवला के रहले वाले किसान शिवाजी भिंबा आहेर कहते हैं, ” मेरे पास 1300 कुंतल प्याज था। जब बेचना शुरू किया था तब 900 रुपए प्रति कुंतल कीमत थी। अब कीमत 3640 रुपए है, इससे किसानों को फायदा तो हो रहा है लेकिन अब उनके पास माल ही नहीं है। जो है वो बिक नहीं रही। बारिश इतनी ज्यादा है कि हम माल लेकर मंडी ताक जा ही नहीं पा रहे और वहां से भी खेप दूसरे प्रदेश में नहीं जा पा रही है। मेरे पास अभी भी 20 से 30 कुंतल प्याज है जो खराब हो रहा।”
शिवाजी भिंबा के अपने घर पर सरकार से मिली सब्सिडी की मदद से स्टोर बना रखा है लेकिन यह भी उतना सफल नहीं है। इसमें प्याज कुछ दिनों तक ही रखा जा सकता है।
देशभर में फल-सब्जियों के भंडारण के लिए जितने कोल्ड स्टोरेज हैं, लगभग उतने ही और चाहिए। देशभर में इस समय भारत सरकार की रिपोर्ट की मानें तो 6300 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी भंडारण क्षमता 3.1 करोड़ टन है। जबकि देश में लगभग 6.1 करोड़ टन कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है ताकि बड़ी संख्या में फल, अनाज के साथ खाद्यान्न खराब न हो और किसानों को इसका लाभ मिले।
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मंदसौर के किसान कृष्णा कुमावत (39) कहते हैं, “कोल्ड स्टोरेज में जगह ही नहीं होती तो वहां प्याज रखने की कोई सवाल ही नहीं है। दूरी भी इतनी है कि वहां तक जाने में ही बहुत खर्च आ जाता है। अब जब कीमत अच्छी है तो हमारे पास प्याज है ही नहीं। अगर कोल्ड स्टोरेज में कुछ बचाकर रखा होता तो अच्छा मुनाफा कमा लेता।
उद्योग मंडल एसोचैम के पूर्व महासचिव डीएस रावत ने पिछले साल एक अध्ययन के हवाले से कहा था “भारत के पास करीब 6,300 कोल्ड स्टोरेज की सुविधा मौजूद है जिसकी कुल भंडारण क्षमता तीन करोड़ 1.1 लाख टन की है। इन स्थानों पर देश के कुल जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के करीब 11 प्रतिशत भाग का भंडारण कर पाता है।
अगले सीजन में भी बढ़ेगी कीमत ?
देश के सबसे बड़े दो प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में इस समय भारी बारिश हो रही है। बारिश के कारणद प्याज की नर्सरी खराब हो रही है। क्योंकि इन प्रदेशों में सितंबर के लास्ट तक प्याज की बोवनी शुरू हो जाती थी।
महाराष्ट्र नासिक के वडाली भुई की रहने वालीं मीणा जाधव अपने नर्सरी को लेकर चिंतित हैं। वे इस साल एक एकड़ में प्याज की खेती करने वाली थीं। वो बताती हैं, ” प्याज की नर्सरी खराब हो गई है। एक एकड़ में प्याज लगाने ज्यादा बारिश की वजह से पौधा दब गया। अब तो मुश्किल है कि 50 फीसदी भी प्याज लगा सकूं।”
बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के रिपोर्ट के अनुसार 16 सितंबर तक पूरे महाराष्ट्र में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई है। महाराष्ट्र में अभी तक 3,458.2 एमएम बारिश हो चुकी है। 3,451.6 एमएम बारिश मुंबई में पिछली बार 1954 में हुई थी।
मध्य प्रदेश के देवास जिले के गांव दत्तोतर के रहने वाले अशोक पाटीदार का भी कहना यही है। वे कहते हैं, ” मैंने पिछले साल 3 एकड़ में प्याज लगाया था। इस साल भी लगाता लेकिन नर्सरी वाले खेत में पूरा पानी भरा हुआ है। बाजार में नर्सरी की कीमत बहुत ज्यादा होती है और इस साल तो और महंगा मिलेगा। इसलिए मुश्किल है कि मैं इस साल प्याज लगा पाऊं।”
सरकार क्या कर रही है
सरकार कीमत नियंत्रित करने के लिए 2000 हजार टन प्याज का आयात कर रही है। इसकी पहली खेप अफागानिस्तान से आ भी चुकी है। केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने ट्वीटकर जानकारी दी कि बाजार में प्याज की आपूर्ति बढ़ाने के लिए दो अधिकारियों को महाराष्ट्र भेजा गया है। ये दोनों अधिकारी व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से बात करेंगे और प्याज की उपलब्धता का आकलन करेंगे साथ ही कोशिश करेंगे कि बाजार में अधिक से अधिक प्याज बाजार आ सके।
बाजार में प्याज की आपूर्ति बढ़ाने के लिए दो संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को महाराष्ट्र भेजा गया है। ये वहां के किसानों, व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से बात कर प्याज की उपलब्धता की समीक्षा करेंगे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा प्याज बाजार में लाने के लिए प्रेरित करेंगे। @PMOIndia
— Ram Vilas Paswan (@irvpaswan) September 26, 2019
सरकार ने राज्यों को भी निर्देश दिया है कि वो खुदरा बिक्री के लिए केंद्र सरकार के पास उपलब्ध बफर स्टॉक का उपयोग करें। इसके लिए मांग के अनुसार केंद्र सरकार को सूचित करने के लिए भी कहा गया है। अब तक हरियाणा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, त्रिपुरा और ओडिशा ने इस केंद्र सरकार के बफर से प्याज की मांग की है। वहीं नाफेड को दिल्ली में मदर डेयरी, सफल और स्वयं अपनी दुकानों के माध्यम से प्याज 24 रुपए प्रति किलो से ज्यादा नहीं बेचने के लिए कहा गया है।