लखनऊ। भारत में क्रिकेट एक पूजा की तरह है। जब भारत का मैच हो रहा होता है जो उस दिन माहौल छुट्टियों जैसे होता है। लेकिन क्रिकेट की दिवानगी बस पुरुष टीम के लिए ही है। हममें से बहुत लोगों को तो पता ही नहीं होगा कि महिला क्रिकेट का वर्ल्डकप खेला जा रहा है। महिला क्रिकेट टीम की हमेशा उपेक्षा होती रही है। जबकि उनका प्रदर्शन पुरुषों की टीम से किसी भी मामले में कम नहीं है।
आईसीसी वीमन वर्ल्डकप 2017 का आगाज हो चुका है। 24 जून को पहला मैच खेला गया। पहला मैच भारतीय महिला टीम और इंग्लैंड महिला टीम के बीच खेला गया। भारत ने इंग्लैंड को 35 रनों से हराकर टूर्नामेंट का शानदार आगाज किया है। भारत का अगला मैच 29 जून को वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला जाएगा। इस मैच में भारतीय टीम की कप्तान मिताली राज ने कई रिकॉर्ड बनाए। लेकिन ये दुर्भाग्य है। न तो मैच की कहीं चर्चा हुई और न ही मिताली की।
एक ही देश में, एक ही खेल का ये दूसरा पक्ष है। हम खेलों भी में दोहरा रवैया अपना रहे हैं। तमाम उपेक्षाओं के बावजूद भारतीय महिला क्रिकेट अच्छा खेल रही है। सच तो ये है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम पुरुषों की टीम से कहीं से भी पीछे नहीं है। कई महिला खिलाड़ियों का रिकॉर्ड पुरुष खिलाड़ियों की अपेक्षा कहीं बेहतर है।
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मिताली का रिकॉर्ड सचिन और कोहली से भी अच्छा
34 वर्षीय मिताली राज इस समय भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हैं। मिताली इस महिला क्रिकेट में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं। फिर भी बहुत से क्रिकेट प्रेमी इस नाम से परिचित नहीं होंगे। सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहा जाता है। लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी मिताली का वनडे मैचों एवरेज सचिन से कहीं बेहतर है। सचिन ने 463 वनडे में 44.83 के औसत से 18426 रन बनाए हैं जबकि मिताली ने 178 वनडे मैचों में 52.25 के औसत से 5852 रन बनाए हैं। बात अगर टेस्ट मैचों की जाए तो तो मिताली का प्रदर्शन भारतीय पुरुष टीम के कप्तान विराट कोहली से भी बेहतर है। 57 टेस्ट मैचों में विराट कोहली ने 49.41 एवरेज से 4497 रन बनाए हैं जबकि मिताली ने 10 टेस्ट मैचों में 51 की औसत 663 रन बनाए हैं। टेस्ट में मिताली का हाइएस्ट स्कोर 214 रन है जोकि महिला टेस्ट इतिहास का दूसरा सर्वाधिक स्कोर है। एक टेस्ट पारी में सबसे ज़्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड पाकिस्तान की किरन बलोच के नाम पर है. उन्होंने वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ टेस्ट में 242 रन बनाकर मिताली का रिकॉर्ड तोड़ा था
बीसीसीआई महिला क्रिकेट टीम के लिए प्रयास कर रही है। पहले की अपेक्षा काफी सुधार हुआ है। मैं बहुत दिनों तक राष्ट्रीय टीम की कोच रही। महिला खिलाड़ी तो चाहती हैं कि उन्हें खेलने का मौका मिले। उन्हें पैसे भले ही करोड़ों न मिले लेकिन लाखों तो मिलने ही चाहिए। हमारे मैच बहुत होते हैं। इस कारण हम लोकप्रिय नहीं हो पाते। हमारे खेल सराहना मिले, तवज्जों मिले। सरकार को या बोर्ड को पहल करनी होगी कि उन्हें रेलवे के अलावा अन्य विभागों में भी सरकारी नौकरी मिले। ताकि लड़कियां इसे करियर के रूप में ले सकें। मीडिया को रोल अदा करना होगा।
सुनीता शर्मा, राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व महिला कोच, द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित, नई दिल्ली
टीम का भी प्रदर्शन पुरुष टीम से बहुत बेहतर
तुलना अगर महिला और पुरुष टीमों के बीच की जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि कमाई और लोकप्रियता के मामले में महिला क्रिकेट टीम पुरुष क्रिकेट टीम के आगे कहीं नहीं टिकती। लेकिन बात अगर प्रदर्शन की करें तो महिला टीम के आगे पुरुषों की टीम कहीं नहीं टिकती। 2016 में पुरुषों की टीम ने कुल 13 वनडे मैच खेले, जिसमें से उसे केवल 7 मैचों में जीत मिली जबकि 6 में हार का मुंह देखना पड़ा, वहीं महिला क्रिकेट टीम ने अपने 9 मैचों में से 7 में जीत दर्ज है। वहीं 2017 में महिला टीम ने अब तक खेले गए कुल 12 मैचों में से 11 में जीत दर्ज की है जबकि पुरुषों को टीम को 10 में से 3 में हार का मुंह देखना पड़ा जबकि एक मैच बेनतीजा रहा।
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एक ही देश में, एक ही खेल का ये दूसरा पक्ष है। हम खेलों भी में दोहरा रवैया अपना रहे हैं। तमाम उपेक्षाओं के बावजूद भारतीय महिला क्रिकेट अच्छा खेल रही है। सच तो ये है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम पुरुषों की टीम से कहीं से भी पीछे नहीं है। कई महिला खिलाड़ियों का रिकॉर्ड पुरुष खिलाड़ियों की अपेक्षा कहीं बेहतर है।
झूलन गोस्वामी एक बड़ा नाम
भारतीय महिला क्रिकेट टीम में सिर्फ एक मिताली राज ही नहीं है, बल्कि कई बल्लेबाज और गेंदबाज भी हैं जिनकी तूती पूरी दुनिया में बोलती है। झूलन गोस्वामी का एक बड़ा नाम है, जिन्होंने 8 टेस्ट मैचों में 263 रन देकर 33 विकेट अपने नाम किए है। झूलन का सबसे बड़ा रिकॉर्ड इंग्लैण्ड के खिलाफ 78 रन देकर 10 विकेट लेने का है। जबकि उन्होंने 105 वनडे मैचों में 120 विकेट लिए। यह बात अलग है कि भारत के ज्यदातर क्रिकेट प्रेमी उनके बारे में नहीं जानते। भारत के ज्यादातर क्रिकेट प्रेमियों को यह भी नहीं मालूम कि सन् 2007 में आईसीसी ने विश्वि के जिन 9 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को पुरस्कार हेतु चुना था उनमें ऑस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग, मैथ्यू हेडन, शान टेट, केन्या के थामस ओडोया और पाकिस्तान के मोहम्मद युसूफ के साथ भारत का कोई पुरुष खिलाड़ी नहीं, बल्कि महिला गेंदबाज झूलन गोस्वामी का नाम था। भारतीय पुरुष टीम को हमेशा ब्रेट ली, एलेन डोनाल्ड, शोएब अख्तर और वसीम अकरम जैसे तेज गेंदबाजों की तलाश रही है। किन्तु इस क्रिकेट में यदि महिला-पुरुषों की सीमा रेखा नहीं हो तो 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करने वाली झूलन गोस्वामी इस कमी को दूर कर सकती है।
महिला टीम के साथ बोर्ड का दोहरा रवैया
भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ बोर्ड खुद दोहरा रवैया अपना रहा है। 1975 से 1986 के बीच भारतीय महिला टीम ने भारत को महत्वपूर्ण सफलताएं दिलवाई थी। बावजूद इसके उन्हें अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का मौका कम मिला। 2006 में भारतीय महिला क्रिकेट संघ को बीसीसीआई में शामिल कर दिया। इसके बाद ऐसी उम्मीद जताई गई थी महिला टीम की स्थिति में सुधार होगा लेकिन हुआ इसे विपरीत। बीसीसीआई के पास पैसे की कोई कमी नहीं है बावजूद इसके महिला क्रिकेट टीम की उपेक्षा की जा रही है। ए वर्ग की महिला खिलाड़ियों को सी वर्ग के पुरूष खिलाड़ियों से भी कम पारिश्रमिक दिया जाता है।
बीसीसीआई जहां सी वर्ग के पुरूष खिलाड़ियों को 25 लाख रूपए देती है, वहीं ए वर्ग की महिला खिलाड़ियों केा सिर्फ 15 लाख रुपए देती है। भारतीय पुरुष क्रिकेटरों को ए-ग्रेड के तहत 2 करोड़, बी-ग्रेड में 50 लाख और सी-ग्रेड में 25 लाख दिए जाते हैं। इसके अलावा मैच फीस भी प्रति टेस्ट 7 से बढ़ाकर 15 लाख, वन-डे में 4 से बढ़ाकर 6 लाख और टी-20 में 2 से बढ़ाकर 3 लाख रुपए कर दिए गए हैं। वहीं बात अगर महिला टीम करें तो इन्हें प्रति मैच का 1 लाख रुपए मिलेगा। जिसकी घोषण बीसीसीआई ने इसी महीने की। वहीं ग्रेड ए के खिलाड़ियों को सालाना 15 लाख जबकि ग्रेड के खिलाड़ियों को 10 लाख रुपए दिया जा रहा है।
दोनों टीमों के प्रति अपनाए जा रहे रवैये का अनुमान लगा ही सकते हैं। बीसीसीआई ने पहले की अपेक्षा महिला क्रिकेट पर ध्यान थोड़ा बढ़ाया है लेकिन इसकी गति बहुत मंद है। महिलाओं के मैच का प्रसारण लाइप प्रसारण भी कम होता है। कई महिला क्रिकेट खिलाड़ियों का बेहतर पुरुष खिलाड़ियों की अपेक्षा बहुत बेहतर है, बावजूद इसके महिला खिलाड़ियों को न तो पर्याप्त पारिश्रमिक मिलता है और न ही नाम।
महिला क्रिकेट के विषय मे बहुत कम लोग जानते हैं। टीवी चैनल और अखबारों में इसकी चर्चा ना के बराबर होती है। फलस्वरूप विज्ञापन नहीं मिलते। फिर भी यह सन्तोष का विषय है कि अब ज्यादा से ज्यादा लड़कियां क्रिकेट खेल रही हैं। अभी महिला क्रिकेट शैशव अवस्था में है, घुटनों के बल ही खिसक रहा है। अभी सिर्फ भारतीय रेल ही महिला क्रिकेटरों को नौकरी प्रदान करती है। अगर ज्यादा से ज्यादा कम्पनियां उन्हें नौकरी देने में रुचि लेंगीं तो ज्यादा लड़कियां इस खेल की तरफ आकृष्ट होंगीं।
रश्मि रविजा, लेखिका, स्तंभकार, मुंबई