हैप्पी बर्थडे सचिन… जब आधे घंटे तक ग्रिल पर फंसा था सचिन का सिर, सबकी सांसें थम गई थीं

sachin tendulkar

नई दिल्ली (आईएएनएस)। क्रिकेट में भगवान का दर्जा पा चुके दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर का आज जन्मदिन है। 22 गज पर लगभग हर रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले सचिन को क्रिकेट का ‘भगवान’ उनकी जिद ने बनाया। जिद रन बनाने की। जिद क्रिकेट को जीने की। इस जिद का नतीजा था कि वह बेहद सब्र के बाद आखिरकार 2011 में अपना विश्व कप जीतने का सपना पूरा करने में सफल रहे।

सचिन का जन्म मायानगरी मुंबई में 24 अप्रैल, 1973 को एक मराठी परिवार में हुआ था। सचिन अपने घर में सबसे छोटे और बेहद जिद्दी भी थे।

अपने जीवन के ऊपर लिखी किताब में सचिन ने अपने इसी जिद्दीपन का जिक्र भी किया है। बचपन में उनके दोस्त साइकिल चलाते थे, लेकिन सचिन के पास साइकिल नहीं थी। उन्होंने अपने पिता रमेश तेंदुलकर, जो एक मराठी कवि थे उनसे साइकिल खरीदने को कहा लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनके पिता ने इस बात को टाल दिया। इस बात से सचिन इतने नाराज हुए की सप्ताह भर घर से बाहर खेलने नहीं गए और घर की बालकनी से ही अपने दोस्तों को साइकिल चलाते हुए देखते थे।

इसी दौरान दोस्तों को साइकिल चलाते हुए देखते हुए उनका सिर बालकनी की ग्रिल में फंस गया था। उनके घर वाले बेहद परेशान हो गए थे और तकरीबन आधे घंटे बाद उनकी मां ने खूब सारा तेल डालकर सचिन का सिर रेलिंग से बाहर निकाला।

बिना इस बात को जाने की मेरे पिताजी को इसके लिए क्या करना होगा, मैं साइकिल की जिद पर अड़ा रहा और मैंने साइकिल न आने तक बाहर खेलने जाने से मना कर दिया। मैं सप्ताह भर तक बाहर खेलने नहीं गया। मैं बालकनी में ही खड़ा रहकर अपने दोस्तों को देखता था।

सचिन तेंदुलकर

अपनी किताब ‘प्लेइंग इट माई वे’ में घटना का किया जिक्र

सचिन ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब ‘प्लेइंग इट माई वे’ में भी किया है। सचिन की किताब के पहले अध्याय ‘चाइल्डहुड’ में सचिन ने इस घटना को विस्तार से बताया है। सचिन अपनी किताब में लिखते है, ‘मैं बचपन में काफी जिद्दी था। मेरे कई दोस्तों पर साइकिल थी, लेकिन मेरे पास नहीं। मैं किसी भी हाल में साइकिल चाहता था। मेरे पिता को मुझे न कहना अच्छा नहीं लगता था। मैंने जब उनसे कहा कि मुझे साइकिल चाहिए, तो उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ दिनों में वह मुझे साइकिल दिला देंगे। आर्थिक तौर पर चार बच्चों को पालना बेहद मुश्किल होता है।’

बकौल सचिन, ‘बिना इस बात को जाने की मेरे पिताजी को इसके लिए क्या करना होगा, मैं साइकिल की जिद पर अड़ा रहा और मैंने साइकिल न आने तक बाहर खेलने जाने से मना कर दिया। मैं सप्ताह भर तक बाहर खेलने नहीं गया। मैं बालकनी में ही खड़ा रहकर अपने दोस्तों को देखता था।’

आधे घंटे तक फंसा रहा सिर

सचिन लिखते हैं, ‘एक दिन मैंने अपने माता-पिता को डराने वाला अनुभव दिया। हम चौथी मंजिल पर रहते थे जिसकी बालकनी छोटी थी और उसमें ग्रिल थी। मैं उसके ऊपर से नहीं देख सकता था। इसलिए बाहर अच्छे से देखने के लिए मैंने ग्रिल में अपना सिर डाला। मैं अपना सिर उस ग्रिल में डालने में तो सफल रहा लेकिन, मैं उसमें सिर को बाहर नहीं निकाल पाया। मैं 30 मिनट तक उसमें फंसा रहा। मेरे घर वाले बेहद परेशान हो गए थे। काफी कोशिशों के बाद मेरी मां ने खूब सारा तेल डालने के बाद मेरा सिर उस ग्रिल में से बाहर निकाला।’

सचिन ने किताब में लिखा है, ‘मेरी जिद को देखते हुए और इस बात के डर से कि मैं कहीं दोबारा ऐसा कुछ न कर बैठूं, मेरे पिता ने किसी तरह पैसे इकट्ठा कर मुझे नई साइकिल खरीद कर दी। मैं अभी तक नहीं जानता कि उन्होंने साइकिल के लिए क्या किया था?’

सचिन हालांकि, ज्यादा देर तक साइकिल की खुशी नहीं बना पाए थे, क्योंकि साइकिल आने के कुछ घंटे बाद ही सचिन का साइकिल से एक्सीडेंट हो गया था। सचिन को चोटें लगी थी। उनके पिता ने उनसे कहा था कि जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते तब तक साइकिल नहीं चलाएंगे। इस बार सचिन को अपने पिता की बात माननी पड़ी। इस बात का जिक्र भी सचिन ने अपनी किताब में किया।

Recent Posts



More Posts

popular Posts