भंडारो (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। सोमवार की सुबह शाज़िया बानो हरा ब्रीफकेस हाथ में लिए अपनी क्लास के अंदर आती हैं। बच्चे बेहद खुश हैं। उन्हें पता है कि अब क्या होने वाला है। शाजिया मैडम उन्हें जल्द ही रंग-बिरंगी संख्या वाली टाइलें बांटेंगी और उनसे सवाल करेंगी। इनमें से कुछ अलग-अलग आकृतियों वाले षट्कोण और वर्ग हैं तो वहीं कुछ लाल, हरे और पीले रंग के बिल्डिंग ब्लॉक भी। फिलहाल उनसे इंतजार नहीं हो पा रहा है और वे बेसब्री से अपना नंबर आने का इंतजार करने में लगें हैं। शाजिया मैडम का ये ब्रीफकेस पहली क्लास के बच्चों के लिए किसी जादुई पिटारे से कम नहीं है।
36 साल की शाजिया उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जंगल कौड़िया ब्लॉक के भंडारो गाँव के एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं। उनकी कलास में 11 लड़कें और 18 लड़कियां जिन्हें वह एक साथ बिठा कर अक्षरों को पढ़ना और नंबरों की पहचान करना सिखा रही हैं।
बच्चों को ज्यादा इंतजार न कराते हुए बानो ने अपनी कक्षा के सभी बच्चों को छह ग्रुप में बांट दिया। और फिर उनके हाथों में ब्लॉक, टाइल्स और आकार की आकृतियां थमा दीं। वो उनसे कहती हैं, ” “कुछ समय बाद इन सभी आकृतियों और ब्लॉक को दूसरे ग्रुप को पास करना है।”
शाजिया के भंडारो प्राइमरी स्कूल से 12 किलोमीटर दूर, 35 प्रधानाध्यापकों और शिक्षक संकुलों के लिए ब्लॉक रिसोर्स सेंटर में एक प्रशिक्षण सत्र चलाया जा रहा है। संकुल अलग-अलग स्कूलों के कुछ बेहतरीन शिक्षक होते हैं, जिन्हें ब्लॉक स्तर के शिक्षा विभाग द्वारा चुना जाता है। संकुल शिक्षक अपने साथ-साथ दूसरे स्कूलों के शिक्षकों की भी टीचिंग में मदद करते हैं।
एक संकुल को 10-15 स्कूलों की जिम्मेदारी दी गई है, जहां वे फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी (एफएलएन) लागू करने में मदद कर रहे हैं। एफएलएन स्किल के जरिए अक्षरों को पढ़ने, पहचानने और गणित के साधारण सवालों को हल करने की बच्चे की क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
शाज़िया ने भी सितंबर 2022 में कक्षा I, II और III के शिक्षकों के लिए चलाए गए इसी तरह के चार दिवसीय प्रशिक्षण-कार्यक्रम में भाग लिया था। ‘एफएलएन स्किल में सुधार’ उनके सेशन एक हिस्सा था और शाज़िया को यह जादूई पिटारा यानी उनका हरा ब्रीफकेस इसी ट्रेनिंग का नतीजा था।
शिक्षकों की ट्रेनिंग
खंड शिक्षा अधिकारी अमितेश कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम चुनिंदा शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि हम एक बड़े लक्ष्य समूह को कवर कर सकें। हमें पूरी उम्मीद है कि ट्रेनिंग में शामिल हर प्रधानाध्यापक और संकुल प्रशिक्षण सत्र के दौरान दी गई महत्वपूर्ण जानकारी को शिक्षकों तक आगे पहुंचाएगा।”
केंद्र सरकार की ओर से हाल ही ‘निपुण भारत पहल’ शुरू की गई थी। इस पहल के अंतर्गत जिला प्रशासन एक गैर-लाभकारी संस्था ‘सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन’ के साथ मिलकर प्रशिक्षण सत्र को आयोजित कर रहा है। सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने वाला एक गैर-लाभकारी संस्थान है।
निपुण भारत’ देश के सभी प्राइमरी स्कूलों में बुनियादी स्तर पर बच्चों की अक्षरों की पहचान करने, पढ़ने और नंबरों की समझने की क्षमता यानी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी में सुधार करना चाहता है।
सीएसएफ बताता है कि भारत में एफएलएन का स्तर काफी कम है। इस अंतर को पाटने के लिए ही शिक्षकों को वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति से पढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
सरकारी शिक्षा निकायों को डेटा का विश्लेषण करने, समस्या की पहचान करने और कार्रवाई करने के लिए जिला एवं ब्लॉक अधिकारियों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को परिभाषित करने में सहायता करने के लिए एक जिला निपुण सेल का गठन किया गया है। जिला निपुण सेल टीचिंग/लर्निंग मटेरियल(टीएलएम) तक पहुंच में मौजूदा अंतर को दूर करने और प्रशिक्षण की सुविधा देने के लिए DIET(जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान) के साथ मिलकर काम कर रहा है।
टीएलएम एक तरह से निर्देशात्मक सामग्री है, मसलन पोस्टर, ब्लॉक और टाइलें आदि। एक शिक्षक द्वारा इन सभी सामग्रियों को इस्तेमाल बच्चों को नए तरीके से पढ़ाने और सिखाने के लिए किया जाता है।
शिक्षकों को हर रोज पढ़ाए जाने वाले पाठ को लेकर एक विस्तृत योजना तैयार की गई है कि किस दिन उन्हें बच्चों को क्या और कैसे पढ़ाना है। इसकी मदद से शिक्षक को पहले से पता होता है कि आज उन्हें क्या करना है और वह इसके लिए अपने आपको पहले से तैयार करके आते हैं।
शाज़िया को भी पढ़ाए जाने वाले चैप्टर के लिए तैयार की गई योजनाओं और ट्रैकर्स की हार्ड कॉपी दी गई थी, जिससे उनको काफी मदद मिली। शाज़िया ने कहा, “निपुण अगस्त (2022) में शुरू किया गया था। शिक्षक एक महीने के लिए सॉफ्ट कॉपी और ऑनलाइन सामग्री पर निर्भर थे और यह काफी चुनौतीपूर्ण था।”
बानो ने कहा, “पाठ योजनाएं वास्तव में सहायक रहीं। इससे पहले हमें खुद से सोचना पड़ता था कि क्या, कैसे और कब पढ़ाना है। लेकिन इसने हमारी काफी मुश्किलें आसान कर दी।”
ब्लॉक एकेडमिक रिसोर्स पर्सन फॉर साइंस के संतोष कुमार राव शिक्षकों की शंकाओं को दूर करने और निपुण को लागू करने में उनकी मदद करने के लिए एक संपर्क बिंदु थे उन्होंने स्वीकार किया कि जब तक हार्ड कॉपी नहीं दी गई थी, तब तक शिक्षकों के मन में बहुत सारी शंकाएं थीं। राव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “लेकिन प्रशिक्षण के बाद उनकी काफी शंकाएं दूर हो गई। अब चीजें उनके लिए ज्यादा स्पष्ट हैं।”
अमितेश कुमार ने कहा, “निपुण के कार्यान्वयन की प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण किया जाएगा और सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली की ताकत और कमजोरियों को पहचाना जाएगा। इसके बाद इन्हें अन्य ब्लॉकों में दोहराया जाएगा और फिर पूरे जिले को कवर किया जाएगा।”
एनआईपीयूएन लक्ष्य (आंकड़ा देखें) प्राप्त करने के लिए जंगल कौड़िया ब्लॉक के लिए निर्धारित समय सीमा दिसंबर 2023 है, जबकि पूरे गोरखपुर जिले के लिए यह समय सीमा दिसंबर 2024 है। और अगर समय सीमा पर खरा उतरना है तो शाजिया बानो जैसी शिक्षिकाएं इसके लिए खासी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। उन्हें ही यह सुनिश्चित करना है कि हर छात्र जो कुछ भी पढ़ रहा है, सुन रहा है या देख रहा है उसे समझ भी पा रहा है या नहीं।
शाज़िया ने कहा, “उनके देखकर सीखने की क्षमता में सुधार हो रहा है। उन्हें पता है कि मैडम उनसे जरूर सवाल करेंगी कि आज उन्होंने स्कूल के रास्ते में क्या देखा। इसलिए वह हर तरफ नजर रखते हुए चलते हैं।” जब वह अपनी नई शिक्षण पद्धति के बारे में हमें बता रही थी, तब उनकी एक छात्रा अर्पिता ने उनके दुपट्टे को धीरे से खींचा। वह अपनी टीचर को रेलगाड़ी दिखाना चाहती थी जिसे उसने लाल, नीले और पीले बिल्डिंग ब्लॉक्स से बनाया था। उसमें एक इंजन भी लगा था।
बानो ने ट्रेन की ओर देखा और अपनी आंखों को हैरानी से बड़ा करते हुए कहा, “अरे, वाह! मैंने आज तक इतनी सुंदर ट्रेन कभी नहीं देखी थी।”