कई बार प्रतियोगी परीक्षाओं में लोग इसलिए भी सफ़ल नहीं हो पाते हैं, क्योंकि उनके पास तैयारी के लिए किताबें ही नहीं होती हैं। ऐसे ही लोगों को सहारा देने के लिए सरबजीत सिंह ने शुरू किया है बुक बैंक।
पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब में चल रहा है ये अनोखा बुक बैंक, जहाँ से लोग किताबें लेकर जाते हैं। साल 2019 में शुरू हुए इस बैंक की कहानी के बारे में सरबजीत गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मैं जब प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा था तो मेरे एक टीचर ने बोला कि किसी और को पढ़ाओगे तो तुम्हारी नॉलेज और बढ़ेगी इसलिए मैंने सोचा क्यों न बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया जाए।”
पढ़ने और पढ़ाने के इस दौर में सरबजीत के पास जो भी किताबें होती, जब उनका काम ख़त्म हो जाता तो उसे रद्दी में बेच देते, लेकिन इसी दौरान उन्हें एहसास हुआ कि यही किताबें किसी और के भी काम आ सकती हैं। सरबजीत बताते हैं, “जो हम किताबें बेच देते हैं उसकी ज़रूरत जिसे हो उसे मिल जाए तो कितना बढ़िया होगा। बस यहीं से मैंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर बुक बैंक की शुरुआत की।”
शुरू में सरबजीत पुराने अख़बार को बेचकर जो पैसे इकट्ठा होते उनसे बैंक के लिए किताबें खरीदते, अब सवाल ये था कि कोई ऐसी जगह हो जहाँ से सबको आसानी से किताबें मिल सकें। इसलिए मोहल्ले के बीच में एक दुकान को केंद्र बनाया गया, जहाँ से हर कोई आसानी से किताब ले सके या दान कर सके। सरबजीत कहते हैं, “शुरुआत में लोगों को लगा कि ये कैसा काम है, रद्दी जुटाकर फिर उससे किताबें इकट्ठा कर रहे हैं। कुछ लोगों ने तारीफ़ की तो किसी ने बुरा भी कहा।”
बीच में कोविड महामारी के दौरान कुछ समय के लिए बुक बैंक बंद भी करना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान लोगों का आना बंद हो गया। यही नहीं सरबजीत के कुछ साथियों की शादी हो गई और कई लोग अपने काम धंधे में लग गए, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इनके साथ खड़े थे।
“कुछ लोगों ने कहना शुरू किया कि आपका काम बहुत बढ़िया था, तो फिर फिर से बुक बैंक पर ध्यान देना शुरू किया और बच्चों और किताबों पर काम करने लगे , फिर से हमारा बुक बैंक पहले की तरह चमकने लगा,” सरबजीत ने बताया।
इस बुक बैंक की मदद से कई लोगों की ज़िंदगियाँ भी बदली हैं, उन्हीं में से 22 साल के मलकीत सिंह भी हैं। मलकीत दोनों आँखों से देख नहीं सकते। मलकीत के बारे में सरबजीत बताते हैं, “वो हमेशा एक ग्रुप में हमारे यहाँ किताबें लेने आता था, उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो बच्चे का इलाज करा सके फिर भी बच्चा पढ़ाई में बहुत ही होशियार है। जब वो मेरे पास आया तब वो 11वीं क्लास में था।”
मलकीत के लिए ब्रेल लिपि की किताबों का इंतज़ाम किया गया, मलकीत ने भी मेहनत की और उनकी मेहनत रंग भी लायी, आज उनकी सरकारी नौकरी लग गई है।
मलकीत गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “जब मैं 12 साल का था, तब से मुझे दिखाई नहीं देता है। 11वीं क्लास में था तब सरबजीत सर से मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने मेरी बहुत मदद की, बोर्ड एग्जाम अच्छे से हुए और मैंने बीए किया।”
वो आगे कहते हैं, “सर की मदद से मैं आगे भी तैयारी करता रहा और 2021 में मेरी सरकारी नौकरी लग गई। मेरी नौकरी के दो साल हो गए और मेरा प्रमोशन भी हो गया। अब मैं एमए की पढ़ाई भी करने वाला हूँ।”
बुक बैंक के साथ सरबजीत अपनी बेकरी भी चलाते हैं, ऐसे में आर्मी से रिटायर्ड बख्तावर सिंह बुक बैंक में उनकी मदद करते हैं। सरबजीत बताते हैं, “बुक बैंक चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है, इसलिए साथ में मैं बेकरी भी चलाता हूँ, जब मैं बेकरी पर होता हूँ तो बख्तावर अंकल बुक बैंक संभालते हैं।”
सरबजीत के इस बुक बैंक में वो लोग ज़्यादा किताबें दान करते हैं, जो आगे की पढ़ाई के लिए पंजाब से बाहर जाते हैं, इस बुक बैंक में अभी 2000 के करीब किताबें इकट्ठा हो गईं हैं। कई लोग किताबें लेकर जाते हैं वो वापस ही नहीं करते हैं।
ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस बुक बैंक के बारे में पता चले इसके लिए सरबजीत ने अनोखी तरकीब निकाली है। सरबजीत बताते हैं, “स्कूल के बच्चों से कहते हैं जिन बच्चों के पास किताबें ना हो वो यहाँ से किताबें ले जाकर पढ़ सकते हैं। हम फेसबुक पर भी पोस्ट डालते हैं जिन्हें भी किताबों की ज़रुरत हो तो आकर ले जाएँ।”