गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। जब ममता पांडेय अपने आठ और नौ साल के छात्रों को पढ़ाकर स्कूल से बाहर निकलती हैं, तो वह जानती हैं कि एक शिक्षक के रूप में उनकी ज़िम्मेदारी यहीं ख़त्म नहीं होती। अभी उन्हें देर रात तक काम करना है।
वे मुस्कराते हुए कहतीं हैं, “मुझे रात की ख़ामोशी ख़ुशी का अहसास कराती है और मैं सबसे ज़्यादा इसी समय पर क्रिएटिव सोच पाती हूँ।” दरअसल वह रात के समय में आगे पढ़ाने के लिए ‘पाठ योजना’ के अनुसार चार्ट तैयार करती हैं। साथ ही छात्रों को किस तरह से पढ़ाना या सिखाना है इस पर भी काम करती हैं।
प्राथमिक कन्या विद्यालय में सहायक शिक्षिका ममता ने कहा कि 2019 से 260 पेजों की ‘पाठ योजना’ किताब उनकी दोस्त, गाइड और उद्धारक बनी हुई है। उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में कहा कि वह कभी भी राज्य सरकार द्वारा दी गई किताब से इतर होकर नहीं चली हैं। क्लास में बच्चों को किस तरह से पढ़ाना है, इसे लेकर किताब में दृश्य संदर्भ और सिफारिशें दी गई हैं।
पांडेय ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पाठ योजना स्पेसिफिक लर्निंग आउटकम पर आधारित है। यह किताब बताती है कि कुछ अवधारणाओं को किस तरह से क्लास में पढ़ाया जा सकता है, ताकि छात्र उन्हें बेहतर ढंग से समझ सकें।” इसके अलावा अलग-अलग योग्यता रखने वाले बच्चों को किस तरह से सिखाया जाना है, उसके बारे में भी किताब में विस्तृत जानकारी मौजूद है। यहां आपको टीएलएम (टीचिंग लर्निंग मटेरियल) के बारे में भी बताया गया है। बच्चों की योग्यता बढ़ाने के लिए पाठ्यपुस्तक और वर्क बुक से कौन से उदाहरणों को लिया जाना है, इसका भी ज़िक्र किया गया है।
46 वर्षीय पांडेय जिस प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं, वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर के बगल में है। आस-पास की कॉलोनियों से छात्र यहाँ पढ़ने आते हैं। बच्चे झुँड बनाते हुए जैसे ही स्कूल में प्रवेश करते हैं, लोहे के गेट के पास असेंबली के लिए उनकी सहायक अध्यापिका इंतज़ार करती नज़र आती हैं । असेंबली के बाद वे कक्षाओं में जाते हैं। और तभी पाठ योजनाओं के जादू का पिटारा उनके सामने खुलने लगता है।
पांडेय तीसरी क्लास के बच्चों को पढ़ाती हैं और उनकी कक्षा में 53 छात्र हैं। वे अपनी कक्षा में जो एक्टिविटी कराती हैं, वे पाठ योजनाओं से ली गई होती हैं। बच्चों को प्रभावी ढंग से सिखाने के लिए वह उनका इस्तेमाल करती हैं। ये एक्टिविटी बच्चों को एक-दूसरे के साथ आने में मदद करती हैं। साथ ही उन बच्चों को प्रोत्साहित करती हैं जो क्लास में कुछ भी बोलने या करने में शर्माते हैं।
उनके ऐसे ही छात्रों में से एक आर्यन यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं अपने स्कूल के पहले दिन सबसे पीछे की बेंच पर बैठा था, क्योंकि मैं बहुत शर्मीला था। फिर मुझे एक सहपाठी मिला, जो मेरा हमनाम था और हम दोस्त बन गए।” आर्यन ने कहा, “मैडम नियमित रूप से कक्षा में क्विज कंपटीशन कराती रहती हैं और हम दोनों टीम बनाकर एक दूसरे से सलाह करने के बाद सवालों के जवाब देते हैं। इन प्रतियोगिताओं ने मुझे आत्मविश्वास दिया है और मेरी शर्माने की आदत कहीं दूर चली गई है।”
पाठ योजना पुस्तक में सुझाई गई प्रश्नोत्तरी ममता पांडेय के छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। एक अन्य छात्र दिलशाद आलम ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे अच्छा लगता है, जब मेरी ओर से दिया गया एक सही ज़वाब मेरी टीम को जीत की ओर ले जाता है। मेरे दोस्त सही ज़वाब के लिए मेरी तरफ देखते हैं। इससे मुझे और ज़्यादा पढ़ाई करने का हौसला मिलता है।”
पांडेय ने कहा कि इस तरह के सवाल/ज़वाब वाला खेल नए तथ्यों को सीखने और याद रखने का एक मज़ेदार तरीका है। यह बोरिंग डेटा को याद करने के तरीके से कहीं अधिक मज़ेदार है।
पाठ योजनाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा
एनआईपीयूएन (नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्यूमरेसी) द्वारा पाठ योजनाओं के इस्तेमाल की पुरजोर सिफारिश की जाती है। ‘निपुण’ योजना देश के सभी प्राइमरी स्कूलों में बुनियादी स्तर पर बच्चों की अक्षरों की पहचान करने, पढ़ने और नंबरों की समझने की क्षमता यानी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्युमरेसी में सुधार करने और उसे मज़बूत करने पर केंद्रित है। छात्रों में इन कौशलों को विकसित करने में शिक्षकों की मदद के लिए पाठ योजनाओं के ज़रिए ख़ास दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
चाहे छात्रों को फलों, सब्जियों या जानवरों के नाम याद कराने हो या उन्हें किसी ख़ास अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के बारे में बताना हो, पांडेय अपनी क्लास के बच्चों को मनोरंजक तरीके से ही पढ़ाती हैं। पाठ योजनाओं में दी गई गाइडलाइन के मुताबिक़ वह अपने छात्रों को उनके कम्युनिकेशन स्किल, रचनात्मक सोच और क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करती है। निश्चित तौर पर उनका मक़सद सभी बच्चों की बुनियादी अवधारणा को मज़बूत करना है।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “कक्षा में कैसे और क्या पढ़ाना है, इस बारे में पल भर में नहीं सोचा जा सकता है। इस सब की तैयारी पहले से करनी होती है।” पांडेय ने आगे कहा कि वह पाठ योजनाओं से कुछ न कुछ लेती रहती है और फिर जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाना होता है उसके लिए बताई गई एक्टिविटिज के साथ आगे बढ़ती हैं। “यह संख्या, शब्द, फूलों के नाम और किसी के लिए भी हो सकता है …”
उन्होंने समझाते हुए कहा, उदाहरण के लिए मुझे इस सप्ताह जो भी पढ़ाना है, उसके लिए मेरा उद्देश्य छात्रों को एक निश्चित समय सीमा में उस पाठ की अवधारणा को समझाने में मदद करना है। वह कहती हैं, “सिखाने की समय सीमा ऊपर-नीचे होती रहती है। कुछ अवधारणाओं को सीखने और समझने में दूसरों की तुलना में अधिक समय लगता है। लेकिन ठीक है,इतना तो चलता है।”
वे बच्चों को गणित की कुछ मौलिक अवधारणाएँ सिखाने के लिए दोस्तों को पैसे, फ़ल या चॉकलेट उधार देने या साझा करने जैसे वास्तविक जीवन के उदाहरणों का सहारा लेती हैं।
दिनवार और सप्ताहवार कार्यक्रम
पाठ योजना के अंतर्गत बच्चों के लिए एक साप्ताहिक कार्यक्रम तैयार किया जाता है।
छात्र आर्यन यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सप्ताह के पहले चार दिनों के लिए, हम नए पाठ पढ़ते हैं। फिर शुक्रवार को सब कुछ रिवाइज करते हैं। शनिवार को मूल्यांकन यानी टेस्ट का दिन होता है, और इस दिन हम सभी थोड़े नर्वस होते हैं।” छात्र ने कहा, “हमे क्लास टेस्ट देना होता हैं और फिर मैडम बताती हैं कि उस सप्ताह हमें जो सिखाया गया था, उसे कौन- कौन नहीं समझ पाया है। छुट्टी के बाद कभी-कभी हमें (रेमेडियल क्लास के लिए) रुकना पड़ता है”
पांडेय ने कहा, “मूल्यांकन वाले दिन हमें बच्चों की परफॉर्मेंस को लेकर एक आइडिया हो जाता है। इससे हमें रेमेडियल क्लास लेने में मदद मिलती है। साप्ताहिक मूल्यांकन के बिना, रेमिडियल क्लासेज पर काम करना असंभव है।”
हर सप्ताह लिए जाने वाले टेस्ट में छात्रों के प्रदर्शन के बारे में उनके माता-पिता को भी बताया जाता है। एक अभिभावक जुनैद आलम ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इससे पहले, मैं कभी नहीं बता सकता था कि मेरा बेटा दिलशाद पढ़ाई में कैसा है और वह कुछ सीख भी रहा है या नहीं। लेकिन अब मुझे सब पता होता है।”
साप्ताहिक योजना के अलावा, रोज़ाना क्या पढ़ाया जाएगा, इसके लिए भी योजना तैयार की जाती है। पांडेय अपने क्लास के बच्चों के आठ पीरियड लेती हैं। उन्होंने समझाया कि पहले तीन पीरियड में भाषा पढ़ाई जाती हैं जबकि अंतिम तीन संख्यात्मक कौशल के लिए हैं। उन्होंने कहा, ” बाकी बचे दो पीरियड में व्यक्तिगत स्वच्छता, सामान्य ज्ञान सिखाने के साथ-साथ क्लास डिस्कशन भी किया जाता है।”
‘आई डू, यू डू, वी डू’
पांडेय पाठ योजना पुस्तक के मुताबिक ‘आई डू, यू डू, वी डू’ के दिए गए नियमों का पालन करती हैं। उन्होंने कहा, “मैं सबसे पहले उन्हें दो सँख्याओं को जोड़ना सिखाती हूँ । उसके बाद, मैं एक छात्र को ऐसा करने के लिए बुलाती हूँ । फिर, पूरी कक्षा एक स्वर में उत्तर को दोहराने में जुट जाती है। यह कक्षा में एकता की भावना पैदा करता है।”
सहायक शिक्षिका ने कहा, “बचपन में सरकारी स्कूल में मुझे जिस तरह से पढ़ाया जाता था, यह उससे बहुत अलग है। मुझे बहुत खुशी है कि ‘टॉप-डाउन अप्रोच’ अब नहीं है।” उन्होंने आगे कहा, “आज, हमारा सबसे बड़ा काम सभी छात्रों को पढ़ने के लिए आकर्षित करना और उन्हें कक्षा की गतिविधियों में शामिल करना है। दरअसल हम उन्हें महसूस कराते हैं कि वो इस प्रक्रिया के बड़े भागीदार हैं। इसका छात्रों पर काफी सकारात्मक असर पड़ा है। ”
सिलसिलेवार तरीके से सिखाना
पाठ योजना-आधारित शिक्षा के प्रमुख सिद्धांतों में से एक ठोस ज्ञान से अमूर्त ज्ञान की ओर जाना है। इसमें चार मुख्य चरण शामिल हैं – अनुभव, भाषा, चित्र और प्रतीक। अनुभव ठोस है जबकि प्रतीक अमूर्त है।
एक छात्र हिमांशु राव ने गाँव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने कैसे जोड़ना और घटाना सीखा। वह कहते हैं, “मैम पहले ऐसे दो फलों के नाम लेती हैं जिसे कम बच्चे जानते हैं जैसे स्ट्रॉबेरी (ठोस घटक)। फिर, वह हमें बताती हैं कि फल को हिंदी और अंग्रेजी भाषा (भाषा) में क्या कहते हैं। वह हमें फल की एक फोटो दिखाती है और फिर हमें फलों की सँख्या को जोड़ना या घटाना सिखाने (नंबर) के लिए उनका इस्तेमाल करती है।”
पाठ योजना के ज़रिए जीवन के पाठ
पाठ योजना का ‘योग्यता-आधारित शिक्षण’ पहलू यह सुनिश्चित करता है कि कक्षा में निगेटिव थिंकिंग को बढ़ावा दिए बिना छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक व्यवहार विकसित हो।
पांडेय ने कहा, “कभी-कभी एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता बच्चों में जीतने के जज़्बे को बढ़ा देती है, तो वहीं कुछ बच्चे बुरी तरह हार जाते हैं। लेकिन, प्रतियोगिता बच्चों को जीत और हार के बारे में भी सिखा सकती है।” उन्होंने कहा, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा एक अच्छी बात है और फिर वह कक्षा में लड़कियों और लड़कों के बीच चल रही बहस को शांत करने के लिए मुड़ गईं।
आर्यन यादव ने शिकायत की, “लड़कियाँ हम लड़कों को बोलने नहीं देतीं।” इसके तुरंत बाद, उसकी सहपाठी अनुष्का राजमती ने चिल्लाकर कहा। “ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें तुमसे ज़्यादा जवाब पता हैं।”
जोर से हँसते हुए पांडेय ने कहा, “क्या आप देख रहे हैं कि प्रतियोगिता बच्चों को सफलता और असफलता दोनों को नेविगेट करने की क्षमता देती है और ठीक उसी समय एक टीम के रूप में काम भी करती है?”