आपने कभी हँसने-खेलने या उछल कूद वाला स्कूल देखा है? नहीं न। लेकिन हक़ीक़त में यूपी के कानपुर में ऐसा ही एक स्कूल है। इस स्कूल में वो सब कुछ करने की छूट है जिसके लिए दूसरे स्कूलों में डाँट और सज़ा मिल जाती है।
“हम क्लास के हिसाब से नहीं बैठते, इंट्रेस्ट के हिसाब से बैठते हैं।” दसवीं में पढ़ने वाली नेहा राजपूत कहती हैं। नेहा इसी गुरुकुलम स्कूल की छात्रा हैं।
यहाँ के बच्चे वो करते हैं, जो उनका दिल करता है, कोई डांस कर रहा है तो कोई गाने गा रहा है। हर एक बच्चा अपना पसंदीदा विषय पढ़ रहा है। लेकिन ये मुमकिन हुआ है 24 साल के युवा उद्देश्य सचान की वजह से। जिन्होंने एक पेड़ के नीचे 5 बच्चों को पढ़ाने से इसकी शुरुआत की थी, अब 150 बच्चे पढ़ते हैं।
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली प्रिया साहनी के पिता ड्राइवर हैं, इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि किसी महँगे स्कूल में उन्हें पढ़ा पाएँ, लेकिन अब तो गुरुकुलम-ख़ुशियों वाला स्कूल में उन्हें बेहतर शिक्षा मिल रही है।
अपनी क्लास में चुपचाप बैठकर सिर्फ सुनने वाली प्रिया साहनी अब बिना झिझके सवाल पूछती हैं, प्रिया में बदलाव तब आया जब चार साल पहले उन्होंने गुरुकुलम-ख़ुशियों वाला स्कूल में आना शुरू किया।
14 साल की प्रिया साहनी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “मैं पिछले चार साल से गुरुकुलम में पढ़ रही हूँ, पहले जिस स्कूल में जाते थे, वहाँ सुबह प्रार्थना होती, 15 मिनट की क्लास चलती फिर लंच का टाइम हो जाता, दिन भर यही चलता रहता। एक दिन उद्देश्य सर मेरे स्कूल आए उन्होंने गुरुकुलम के बारे में बताया, बस उसी दिन मैंने सोच लिया अब मैं यहीं पढूंगी।”
गुरुकुलम को उद्देश्य सचान ने एक मार्कर और बोर्ड के साथ साल 2019 में शुरू किया था। जिस उम्र में युवा अपना करियर बनाने में जुट जाते हैं वहीं उद्देश्य सचान बच्चों को पढ़ाने में ख़ुद को लगा दिया।
फिलॉसफी से स्नातक उद्देश्य गुरुकुलम के शुरुआत की कहानी बताते हैं, “मैं बहुत साधारण परिवार से आता हूँ, पिता दर्ज़ी हैं और माँ घर संभालती हैं। स्कूल की एक बात मुझे हमेशा परेशान करती थी, एक बार माँ बीमार थीं और मैं फीस नहीं दे पाया तो मुझे स्कूल से निकाल दिया गया। जैसे-जैसे बड़ा हुआ समय के साथ वो बात और ज़्यादा परेशान करती थी।”
वो आगे कहते हैं, “मैं शुरू से पढ़ने में अच्छा था, ग्रेजुएशन के बाद समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना हैं स्किल के अनुसार नौकरी नहीं मिल रहीं, बस इसी उधेड़बुन में हम भाग रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? बाद में एहसास हुआ की बदलाव की ज़रूरत है, स्वार्थ में जीवन जी कर नहीं बिताना है। जीना है तो कुछ नया करके लोगों का नज़रियाँ बदलना है, परिवर्तन लाना है तो विद्यालय से ही इसकी शुरुआत करना है।”
फिर ऐसे शुरु हुई उद्देश्य के स्कूल की कहानी। 9वीं और 10वीं के बच्चों को पढ़ाने के लिए सबसे पहले उद्देश्य ने पैंप्लेट बनवाए जगह-जगह बाँट दिए, और पहले दिन काफी इंतज़ार के बाद सिर्फ पाँच बच्चे आए।
उस दिन के बारे में वे बताते हैं, “स्कूल के पहले दिन सिर्फ 5 बच्चे ही आए, थोड़ा बुरा लगा। लेकिन मैंने उन बच्चों को पढ़ाया। फिर तो धीरे-धीरे सफ़र आगे बढ़ने लगा। शुरू में पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू किया, एक कमरा किराए पर ले लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कोविड के कारण अचानक एक दिन लॉकडाउन लग गया।”
वो आगे कहते हें, “लॉकडाउन में तो ऐसा लगा कि सब कुछ ख़त्म हो गया, लेकिन मैंने फिर से शुरुआत की और फिर 70 बच्चे हो गए। बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, जिन्हें मैं अकेले पढ़ाता था। दोबारा कोविड की लहर आ गई। हमारी गाड़ी रुक-रुक कर चलती रही। लेकिन बच्चों के साथ जो कनेक्शन जुड़ा वो हमेशा के लिए जुड़ गया, एक समय ऐसा भी आया, जब मकान मालिक ने कहा कि अब हमारा कमरा खाली कर दो। ” उद्देश्य ने उदासी में कहा।
उद्देश्य के सामने ये मुश्किल थी कि कमरा खाली कर दिया, पैसे थे नहीं। ऐसे में उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया, इंस्टाग्राम पर वीडियो बनाकर शेयर करना शुरू किया, कुछ वीडियो तो वायरल भी हो गए। उद्देश्य बताते हैं, “इंस्टाग्राम पर वीडियो वायरल होने लगे सुपर स्टार आर माधवन ने भी हमारा वीडियो शेयर किया। ऐसे ही तमाम मशहूर लोगों ने वीडियो शेयर किया, अब तो लोगों का प्यार मिलने लगा, जिससे कुछ हिम्मत मिली।”
उद्देश्य आगे कहते हैं, “मेरा जितना भी परिश्रम रहा हैं वो इस जनरेशन के बच्चों के लिए बेस्ट साबित हो ये मेरा प्रयास है। इस भागदौड़ की दुनिया में कोई सुकून से जीवन जी सके, यही मेरा प्रयास है।”
गुरुकुलम में पढ़ने वाले ज़्यादातर ऐसे परिवारों से आते हैं, जिनके माता-पिता या तो घरों में काम करते हैं, या दिहाड़ी मज़दूरी। लेकिन आज हर एक बच्चे को बेहतर शिक्षा मिल रही है। उनके स्कूल में एक ऐसा भी बच्चा है, जो नशा करने लगा था। सचान कहते हैं, “वो बच्चा मुझसे कहने लगा कि सर मुझे इन सब चीजों से निकालिए, हम उसे क्लास में लेकर आए, धीरे-धीरे उसमें सुधार हुआ। अब पढ़ने में सबसे अच्छा है और इस बार दसवीं में पढ़ रहा है।”
कभी पेड़ के नीचे शुरू हुए गुरुकुलम में आज टीवी, वाईफाई, कंप्यूटर जैसी सुविधाएँ हैं, बच्चों को श्रीमद् भागवत गीता भी पढ़ाई जाती है। दूर से आने वाले बच्चों के लिए वैन की भी सुविधा है।
उद्देश्य कहते हैं, “इन पाँच सालों में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन हमने अपना रास्ता नहीं छोड़ा। ज़्यादातर बच्चे बहुत ही साधारण परिवार के हैं। कुछ बच्चों के माता-पिता नहीं हैं, उनके लिए माता और पिता और दोस्त भी मैं ही हूँ। बच्चों को मानसिक रूप से सक्षम बनाना मेरा प्रयास है। जिससे बच्चे हमेशा पॉजिटिव रह सकें। मैं बच्चों के लिए पूरे देश में ऐसा स्कूल खोलना चाहता हूँ। जिसमें सारे बच्चे बहुत पढ़ाई भी करें और हँसते मुस्कुराते भी रहें।”