रामूघाट, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)। टीचर निधि चतुर्वेदी ने महसूस किया है कि पहले अपने शर्मीले छात्रों को आपस में बात करने के लिए सहज बनाना सबसे ज़रूरी है, इससे पहले कि उनका पढ़ने में मन लगे।
“जब मैं उनसे पूछती हूँ कि क्या मैंने जो कुछ सिखाया है, उन्हें वह समझ में आया है तो बच्चे अक्सर अपना सिर हिला देते हैं। जबकि सारे बच्चे एक बार में समझ जाएँ ऐसा नहीं होता है, ”रामूघाट के प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका चतुर्वेदी ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“एक छात्र, प्रतीक साहनी जो कि बहुत शर्मीला था। अगर मैं उससे पूछती कि समझ में आ रहा तो वह हमेशा अपना सिर हिलाता। लेकिन, जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि वह असल में इसे समझ में नहीं आया है, ”उन्होंने आगे कहा।
चतुर्वेदी को एहसास हुआ कि प्रतीक जैसे कई बच्चे हैं, जो अगर कोई चीज नहीं भी समझ पाते हैं तो बोलने के बजाय चुप रहना रहते हैं।
“अगर बच्चों को वह नहीं मिल रहा है जो मैं उन्हें बताती हूँ तो इसका क्या मतलब है? तभी मुझे एहसास हुआ कि मुझे सबसे पहले उन्हें बिना किसी डर के क्लास में पढ़ाना होगा। अगर वे नहीं बोलते हैं, तो मुझे कभी पता नहीं चलेगा कि उन्हें समझ में आया है या नहीं, ”चतुर्वेदी ने कहा।
“सौभाग्य से, NIPUN कार्यक्रम की मदद से हम आकलन कर सकते हैं कि हमने उन्हें जो समझाया वह समझ में आया कि नहीं। इस तरह मुझे एहसास हुआ कि केवल ‘हाँ, मैम’ इस बात की गारंटी नहीं है कि वे समझ गए हैं, ”उन्होंने आगे कहा।
NIPUN, समझ और संख्यात्मकता के साथ पढ़ने में प्रवीणता के लिए राष्ट्रीय पहल का संक्षिप्त रूप है, जिसे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा 2021 में लॉन्च किया गया था। कार्यक्रम कक्षा एक, दो और तीन के छात्रों की साक्षरता और संख्यात्मक कौशल को समेकित और मजबूत करने पर केंद्रित है।
निधि चतुर्वेदी ने फैसला किया कि क्लास में ऐसा माहौल बनाएगी, जिससे बच्चे बिना किसी झिझक के बोल पाएँ।
इसलिए उन्होंने बच्चों से बाजार, उनकी दादी-नानी, मंदिर की यात्रा के बारे में पूछना शुरू किया… उन्होंने वहाँ क्या किया, उन्होंने वहाँ क्या खाया और उनकी चाल काम कर गई! बच्चे अपने अनुभव बताकर खुश हुए।
“टीचर्स गाइड में ऐसे सरल तरीके से बताया गया है कि कैसे ऑब्जेक्टिव सवाल आसानी से समझ में आ जाते हैं। इनसे हम धीरे-धीरे कठिन सवाल की ओर ले जाते हैं, उन्होंने आगे कहा।
उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा राज्य भर के शिक्षकों को दी जाने वाली गाइडों में वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिपरक प्रश्नों की सिफारिश की जाती है।
चतुर्वेदी ने बताया कि कैसे, “एक बार जब वे इस बारे में बात करना शुरू कर देते हैं कि उन्होंने बाज़ार में क्या खाया, तो वे मुझे यह बताने में बहुत खुश होते हैं कि उन्होंने कैसे यात्रा की, उन्होंने क्या-क्या देखा । उनसे ये छोटी-छोटी बातें समझाने से पूरी बातचीत शुरू हो जाती है और वे अब शर्माते नहीं हैं!”
उनके अनुसार, एक बार जब झिझक खत्म हो जाती है और बच्चे बात करने में सहज हो जाते हैं, तो यह उनके लिए एक छोटा कदम है कि वे अपने हाथ ऊपर कर दें और कहें कि उन्हें शिक्षक द्वारा कही गई कोई बात समझ नहीं आई है।
“इससे उन्हें बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है, क्योंकि उन्हें शिक्षक के साथ अपने सवालों को समझने में कोई झिझक नहीं होती है। हमने देखा है कि जब हमने उन्हें और अधिक बात करने के लिए प्रोत्साहित किया तो उनकी समझ कितनी बेहतर हो गई है, ”उन्होंने कहा।
वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिपरक प्रश्नों और उत्तरों का शर्मीले प्रतीक पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। प्रतीक ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैम ने मुझसे गोरखनाथ मंदिर की मेरी यात्रा, मेरे पसंदीदा स्नैक्स, उन कार्टूनों के बारे में पूछा जिन्हें मैं देखना पसंद करता हूँ… मैं पहले की तरह शर्मीला नहीं हूँ।”
निधि ने सुनिश्चित किया है कि शनिवार बातचीत का दिन है और उनके बच्चे इसे पसंद कर रहे हैं। उनके छात्र मोहम्मद तस्दीक ने कहा, “यह हमारे लिए सबसे अच्छा दिन होता है।
“शनिवार को हम उन चीज़ों के बारे में बात करते हैं जिनका पढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं है। हम चर्चा करते हैं कि गाँव में क्या हो रहा है। यही कारण है कि हमें स्कूल में शनिवार का दिन सबसे अच्छा लगता है, ”तस्दीक ने कहा।
निधि बच्चों की प्रगति देखकर खुश होती हैं, वो खुशी से कहती हैं, “शनिवार को बच्चे हर दिन के मुकाबले ज्यादा आते हैं। जब बच्चे स्कूल आना चाहते हैं तो मुझे अच्छा लगता है।