इस अनूठे बाल मेले में बच्चे लगाते है स्टॉल और सीखते हैं खरीद बिक्री का गणित

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का ये सरकारी प्राथमिक विद्यालय देखने में दूसरे विद्यालयों की तरह ही है, लेकिन यहाँ पर लगने वाला बाल मेला इसे दूसरे स्कूलों से अलग बनाता है ।
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14 नवंबर यानी बाल दिवस पर लगने वाले मेले को अभी कई दिन हैं, लेकिन बच्चे और उनकी मैम अभी से तैयारी में लग गईं हैं, क्योंकि उन्हें इस बार मेले को ख़ास जो बनाना है।

आपको यही लग रहा होगा कि किसी बड़े मेले की बात हो रही है, ये मेला बहुत बड़ा तो नहीं होता है, लेकिन बच्चों के लिए बहुत ख़ास होता है। ये है उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले के फुलवरिया के प्राथमिक विद्यालय में लगने वाला मेला।

पाँचवीं में पढ़ने वाली नौ साल की दिव्या भी मेले में ख़ुद की दुकान लगाती हैं, “हमारी मैम स्कूल में बहुत अच्छा मेला लगवाती हैं, जिसमें बहुत मजा आता है; अभी शिवरात्रि पर भी मेला लगाया था, उसमें मैंने खिलौने की दुकान लगाई थी और खिलौनों के साथ खरीदने वाले को रसीद भी दिया।” दिव्या ने गाँव कनेक्शन से कहा।

प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका शीला मौर्या ऐसे छोटे-छोटे कार्यक्रमों के जरिए बच्चों को नई-नई चीजें सिखाती रहती हैं। शीला मौर्या गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “बच्चे मेले के लिए हमेशा तैयार रहते हैं बच्चों के साथ मैं भी बहुत खुश रहती हूँ। मेले में बहुत सारे लोगों को बुलाते हैं; बच्चों के लिए बहुत सारी चीजें होती, ऐसा माहौल होता है कि बच्चे यहाँ पर कुछ सीख पाएँ।”

स्कूल में एक महीने पहले से मेले की तैयारियाँ शुरू हो गईं हैं, स्कूल को सजाने की ज़िम्मेदारी बच्चों की होती है। कौन बच्चा कौन सी दुकान लगाएगा सब तैयारी हो गई है।

शीला आगे कहती हैं, “बच्चों को रसीद बनाकर देती हूँ, जिससे जब बच्चे कोई सामान बेचेंगे और जब हिसाब लगाएँगे तो गिनती याद हो जाएगी और स्कूल को सजाने में कलाकारी करते हैं तो कला भी सीखते हैं।”

शीला कहती हैं, “कुछ बच्चे पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं; पढ़ाना आसान नहीं, लेकिन उन्हें उन चीजों में ढालने की कोशिश करती हूँ। इसलिए बच्चों को जो पसंद है जो वो करना चाहते हैं, वही कराती हूँ।” वो आगे बताती हैं, “मेरे स्कूल में एक बच्ची थी सलोनी, जो क्लास में बिल्कुल भी नहीं बोलती थी। बच्चों ने बताया कि सलोनी बहुत अच्छा डांस करती है; मैंने उससे पूछा कि क्या वो फेयरवेल में डांस करेंगी।”

शीला कहती हैं, “कुछ बच्चे पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं; पढ़ाना आसान नहीं, लेकिन उन्हें उन चीजों में ढालने की कोशिश करती हूँ। इसलिए बच्चों को जो पसंद है जो वो करना चाहते हैं, वही कराती हूँ।” वो आगे बताती हैं, “मेरे स्कूल में एक बच्ची थी सलोनी, जो क्लास में बिल्कुल भी नहीं बोलती थी। बच्चों ने बताया कि सलोनी बहुत अच्छा डांस करती है; मैंने उससे पूछा कि क्या वो फेयरवेल में डांस करेंगी।”

“जब सलोनी से कहा गया कि डांस करके दिखाए तो वो डांस करने को तैयार नहीं थी, लेकिन जब उसने डांस किया तो सबने उसकी तारीफ़ की।” शीला ने आगे कहा।

शीला बच्चों को व्यवहारिक रूप से पढ़ाना चाहती हैं, जैसे किचन में जब रोटियाँ बनती हैं तो उनसे कहती हैं कि रोटियों को गिनकर बताएँ कि कितनी हैं। शीला बताती हैं, “बच्चे गिनते गिनते सीखते भी हैं और खुशी से पढ़ाई भी करते हैं ऐसी चीजों से कोशिश करती हूँ।”

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