देश की राजधानी दिल्ली, जहाँ देश ही नहीं दुनिया भर से लोग आते हैं; कोई अपने सपनों को तलाशने, तो कोई बेहतर ज़िंदगी की तलाश में। उन्हीं में से लाखों ऐसे भी लोग हैं जो मेहनत मजदूरी करने आते हैं।
झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग जब काम की तलाश में बाहर चले जाते हैं, तो पीछे रह जाते हैं उनके बच्चे, इनमें से कई तो कभी स्कूल ही नहीं गए; उन्हीं बच्चों के लिए एक ख़ास पाठशाला चलती है। ये है थान सिंह की पाठशाला।
लालकिला के पार्किंग ग्राउंड में चलने वाली इस पाठशाला की शुरुआत चार बच्चों के साथ साल 2015 में हुई थी; आज यहाँ पर 100 से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं। इस पाठशाला में बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल-कूद, ड्राइंग-पेंटिंग के साथ ही सामाजिक मूल्य भी सिखाये जाते हैं, जिससे बच्चे समाज में सर उठा कर चल सकें।
मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले हेड कांस्टेबल थान सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “बचपन में ही दिल्ली आना पड़ गया था, यहीं से पूरी पढ़ाई हुई; मैं भी इन्हीं बच्चों के बीच से निकला हूँ, मेरे माँ-बाप इस्त्री का काम करते थे और मेरे पिता का सपना था पुलिस में जाना; लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सही ना होने के कारण उनका सपना अधूरा रह गया। इसलिए मेरे अंदर भी पुलिस में जाने का जुनून पैदा हो गया।”
वो आगे कहते हैं, “मैं पुलिस में भर्ती होना चाहता था, दो बार असफल होने के बाद 2010 में दिल्ली पुलिस ज्वाइन किया; साल 2015 में जब मेरी पोस्टिंग लालकिला के पास हुई तो मैंने देखा कि वहाँ पर बच्चे स्कूल जाने की जगह अपने माता पिता के साथ काम पर जाते थे, नहीं तो कूड़ा बीनते थे, चार पैसे मिलते भी तो गुटका खैनी जैसा नशा करने लगे थे।”
“इन बच्चों में भी बहुत हुनर होता है; लेकिन कुछ वजह से ये बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं, “वो आगे कहते हैं।
जब बच्चे उनके पास बच्चे पढ़ने आने लगे तो उन्होंने ये पाठशाला खोलने का फैसला किया। जगह के तौर पर लाल किला पार्किंग ग्राउंड के पास एक मंदिर बंद पड़ा था। उन्होंने सोचा कि इसे ही क्यों ना शिक्षा का मंदिर बनाया जाए। शुरुआत में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, इन्हें लिखना तो दूर की बात सही से बात करना भी नहीं आता था; क्योंकि इनकी पूरी पीढ़ी शुरू से मजदूरी के काम में ही लगी रही।
वो आगे कहते हैं, “इसीलिए मुझे समझ आ गया था कि जब तक बच्चों में पढ़ाई के लिए जागरूकता नहीं आएगी, तब तक ये नहीं पढ़ेंगे; तभी मैंने इनके घर-घर जा कर इनको पढ़ाई के महत्व को समझाया और पाठशाला में पढ़ने का मौका दिया, साथ ही बच्चों ने भी पढ़ने का उत्साह दिखाया।”
जैसे-जैसे लोगों को पाठशाला के बारे पता चला, वैसे ही बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है; आज जब इन बच्चों को बैंक खाता खुलवाना होता है तो किसी की मदद की जरुरत नहीं होती है, ये बच्चे अपने में ही सक्षम बन रहे है।
नीलम अहिरवार थान सिंह की पाठशाला में पाँचवीं कक्षा में पढ़ती हैं। वो कहती हैं, “थान सिंह सर ने मेरी बहुत मदद की और मेरा एडमिशन भी करवाया अब मैं पढ़ लिखकर आईपीएस बनना चाहती हूँ।
नीलम के पिता नहीं है और माँ मजदूरी करके पैसे कमाती हैं। थान सिंह, नीलम की बारे में बताते हैं, “नीलम होशियार बच्ची है, फादर्स डे वाले दिन सभी बच्चे अपने पिता को विश कर रहे थे; तो नीलम का मेरे पास फ़ोन आया बहुत नम आवाज़ में कहा कि सर क्या में आपको फादर्स डे विश कर सकती हूँ, मैंने उसे बोला बिल्कुल बोल सकती हो।”
“मैं सिर्फ एक टीचर नहीं बल्कि यहाँ पर किसी का पिता और भाई भी हूँ; मेरी पाठशाला में जितने भी बच्चे पढ़ते हैं, वो मेरी जिम्मेदारी हैं, मेरा रिश्ता इनसे सिर्फ पाठशाला तक नहीं है; मैं इनके माता पिता से भी जुड़ा हुआ हूँ और इन बच्चों को अपने आप में ही सशक्त बनाना चाहता हूँ, ” थान सिंह ने आगे कहा।
थान सिंह की पाठशाला में बच्चों को फ्री में शिक्षा दी जाती है; यहाँ तक की पढ़ने के लिए किताबें और पेन्सिल, पेन, यूनिफार्म भी दी जाती है। थान सिंह अपनी इस पहल का श्रेय दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को भी देते हैं, वो कहते हैं, “हमें कोई भी कार्यक्रम हो या इन बच्चों का अच्छे स्कूलों में एडमिशन कराना, दिल्ली के पुलिस अधिकारी हमारी बहुत मदद करते हैं।”
पाठशाला में गुरुद्वारा से लंगर भी आता है, पाठशाला तीन से पाँच बजे तक की होती है। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो स्कूल के बाद पाठशाला में पढ़ने आते हैं।
हेड कांस्टेबल थान सिंह के अनुसार उनकी दिल्ली पुलिस की नौकरी भी बेहद खास है, लेकिन उनके लिए बच्चों का भविष्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उनका मानना है कि जब हम कोई नेक काम करते हैं तो रास्ते अपने आप बनते जाते हैं लोग आपसे खुद जुड़ने लग जाते हैं। उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। माता सुंदरी कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रही छात्राएँ वॉलिंटियर के तौर पर थान सिंह के स्कूल में पढ़ाने आती हैं।
इन्हीं में से एक टीचर प्रीत शुक्ल ने तीन साल पहले थान सिंह पाठशाला में पढ़ाना शुरु किया था। प्रीत शुक्ल गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “शुरू में जब मैंने पाठशाला आना शुरू किया था तब यहाँ पर सही से छत भी नहीं थी; बारिश और धूप के समय पढ़ाने में बहुत मुश्किल होती थी; फिर धीरे-धीरे हमने इसे बदला अब यहाँ पर सही छत और दीवारें है।
आखिर में थान सिंह कहते हैं, “अगर देश में ऐसी और भी पाठशाला खुल जाए तो देश का हर बच्चा पढ़ लिख कर कुछ बन सकता है और देश को प्रगति की और ले जा सकता है।