पत्रकारों के लिए विशेष सुरक्षा नीति का विचार नहीं, उप्र, पश्चिम बंगाल से नहीं मिलती सही जानकारी: सरकार 

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नई दिल्ली (भाषा)। सरकार ने आज कहा कि पत्रकारों के लिए किसी विशेष सुरक्षा नीति का फिलहाल कोई विचार नहीं है और मौजूदा कानून पत्रकारों सहित नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर हमलों के बारे में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को छोडकर शेष सभी राज्य सही रिपोर्ट भेजते हैं।

गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने राज्यसभा में पूरक प्रश्नों के जवाब में भारत को पत्रकारों के लिए खतरनाक देश मानने से इनकार किया और कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ा मामला राज्य सरकारों का है और ऐसी कोई शिकायत नहीं मिलती कि पत्रकारों पर हमलों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में कोई आनाकानी की जाती है।

उन्होंने कहा कि पत्रकारों के लिए किसी विशेष सुरक्षा नीति का फिलहाल कोई विचार नहीं है और मौजूदा कानून पत्रकारों सहित नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं।

मंत्री ने बताया कि वर्ष 2014 में पत्रकारों पर हमलों के 114 मामले सामने आए थे और 2015 में इस तरह के मामलों की संख्या 28 थी। उन्होंने कहा कि 2014 में उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमलों के 63 मामले थे, जबकि इस साल वहां से सिर्फ एक मामला बताया गया है और उन्हें नहीं लगता कि यह आंकड़ा सही है।

उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर हमलों के मामले में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को छोड़कर शेष सभी राज्यों से सही जानकारी मिलती है। पश्चिम बंगाल सरकार हमें कोई रिपोर्ट नहीं करती। दिलीप कुमार तिर्की के प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा पत्रकारों पर हमलों का अलग से ब्योरा नहीं रखा जाता था। हालांकि, वर्ष 2014 से राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो पत्रकारों पर हमलों के आंकड़े रखता है।

मंत्री ने कहा कि मौजूदा कानून पत्रकारों सहित नागरिकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त हैं और इस तरह की शिकायत प्राप्त होने पर भारतीय प्रेस परिषद तत्काल कार्रवाई करती है।

विभिन्न मीडिया मंचों के जरिए गलत टिप्पणी करने वालों से संबंधित एक पूरक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाई जा सकती। हालांकि, गलत टिप्पणी पर कार्रवाई की जा सकती है।

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